चित्तौड़गढ़ / निंबाहेड़ा - मंत्री जी की चुप्पी, भ्रष्टाचारियों की मौज! सहकारिता मंत्री के गृह क्षेत्र में उड़ रही नगर नियोजन के नियमों की धज्जियां, शिकायत पर निरस्त हुई स्वीकृति
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वसूली मामले में नेशनल इंश्योरेंस कंपनी का कार्यालय सील, न्यायालय का आदेश

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सीधा सवाल। निंबाहेड़ा। अपने सपनों का आशियाना बनाने के लिए यदि आप कहीं भूमि या भूखंड खरीदने जा रहे हैं तो सावधान हो जाइए क्योंकि अब विकसित निंबाहेड़ा के दावों की पोल खुलती जा रही है। सहकारिता मंत्री उदयलाल आंजना की नाक के नीचे करोड़ों के वारे न्यारे कर चांदी कूटने का खेल बदस्तूर जारी है। विभिन्न प्रयोजनार्थ रूपांतरित भूखंडों में अनियमितताओं की पोल अब खुलने लगी है। निंबाहेड़ा नगर में एक ऐसा मामला सामने आया है जहां एक शिकायतकर्ता की शिकायत के बाद रूपांतरित की गई आराजी के अप्रूव प्लान को तकनीकी राय के लिए भेजे जाने के बाद निरस्त करने की जानकारी सामने आई है। मामले में बड़ी बात यह है कि जिस संविदा कर्मी ने इस प्लान को पहले अप्रूव किया उसी ने अब उसे निरस्त करने के लिए अधिशासी अधिकारी निंबाहेड़ा को पत्र लिखा है। और नए प्लान की जांच के बाद भूमि रूपांतरण की प्रक्रिया पूरी करने के लिखित निर्देश जारी किए गए हैं। ऐसे में अब लगने लगा है कि न केवल यूआईटी बल्कि नगर पालिका निंबाहेड़ा तक पूरे कुएं में भांग घुली हुई है और शिकायतकर्ता की शिकायत के बाद मजबूरीवश यह प्रक्रिया अपनाई गई है। ऐसे में सवाल यह भी खड़ा होता है कि आखिर ऐसे कितने भू रूपांतरण प्रकरण है जिनमें अनियमितता बरती गई है और भू माफियाओं के दबाव में उन प्रकरणों पर कार्रवाई नहीं की जा रही है। क्योंकि जो प्रकरण सामने आया है उसमें प्रारंभिक स्तर पर शिकायत कर दी गई जिससे मामला पकड़ में आ गया लेकिन दूसरी ओर ऐसी कई रूपांतरण फाइलें हैं जो दबाव या प्रभाव के चलते विभिन्न कार्यालय में धूल खा रही है। फिलहाल इस एक मामले के सामने आने के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि भू रूपांतरण के मामले में जमकर अनियमितता बरती गई है जिसे लेकर एक उच्चस्तरीय जांच होने पर खुलासा हो सकता है।

यह है मामला
निंबाहेड़ा नगरपालिका क्षेत्र के इशाकपुरा में आराजी संख्या 122 के अनुमोदित प्लान की जिला नगर नियोजक को शिकायत की गई। जानकारी में सामने आया है कि इस भूमि के रूपांतरण के दौरान 100 फीट सड़क मार्ग को लेकर शिकायत दर्ज करवाई गई थी जो कि मास्टर प्लान में 120 फीट चौड़ी रोड प्रस्तावित है जिसे पहले ही 100 फिट ही दर्शाया गया जो कि पूरी आराजी नंबर 122 में हो कर ही गुजरनी चाहिए किंतु इसे पड़ोसी आराजियत में डाल दिया गया, जिसकी जांच के पश्चात सड़क को लेकर अनियमितता सामने आई जिस पर सहायक नगर नियोजक द्वारा पत्र जारी कर तकनीकी राय का हवाला देते हुए आसपास की 500 मीटर की भूमि पर सर्वे करने के पूर्व में हुए अनुमोदित प्लान की जांच के बाद तकनीकी राय के लिए भेजा जाने का आदेश जारी किया गया है। ऐसे में पूर्व में अनुमोदित प्लान में या तो जानबूझकर लापरवाही बरती गई या फिर भू माफिया को फायदा पहुंचाने के लिए नियमों को ताक में रख दिया गया यह भी जांच का विषय है। लेकिन अनुमोदित प्लान के निरस्त होने और तकनीकी राय के उपरांत जिला नगर नियोजक को शिकायत करने के बाद साफ हो गया है कि भूमि रूपांतरण में नियमों को ताक में रखकर भू माफिया को फायदा पहुंचाने के लिए काम किया जा रहा है। जिससे भू माफिया करोड़ों की चांदी कूट रहे हैं और इसका दूरगामी नुकसान उन लोगों को होने वाला है जिन्होंने अपने सपने के आशियाने बनाने के लिए ऐसी कॉलोनी में भूखंड खरीदे हैं। लेकिन फिलहाल महज एक अनुमोदित प्लान के निरस्त होने से यह साफ हो गया है कि अनियमितता की गई है और यह बात इसलिए भी बड़े सवाल खड़े करती है क्योंकि यह क्षेत्र प्रदेश के सहकारिता मंत्री उदयलाल आंजना का गृह क्षेत्र है जहां गाहे-बगाहे मंत्री आंजना खुद विकास पर पैनी नजर होने का दावा करते सार्वजनिक मंचों से देखे जा सकते हैं। इन परिस्थितियों में साफ हो जाता है कि मंत्री आंजना की नाक के नीचे यह अनियमितता का खेल खेला जा रहा है पूर्व में भी ऐसे मामले सामने आए हैं जो न्यायालय में गए हैं और इनके ही क्षेत्र के प्रशासनिक अधिकारियों ने गड़बड़ियों को लेकर खुद पार्टी बन निरस्तीकरण की कार्रवाई करने की अनुशंसा की है। ऐसे में परिस्थितियां कुछ और ही बयान कर रही है जिसका दूरगामी परिणाम निंबाहेड़ा के निवासियों को भुगतना पड़ेगा इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।

कहीं कार्रवाई, कहीं मेहरबानी

सुनियोजित नगर विकास के धागों की पोल खुलने की यह तो महज बानगी है। पूर्व में निंबाहेड़ा नगर पालिका क्षेत्र में आराजी संख्या 1498, 3277/1500, 3276/1500 के संदर्भ में नगर पालिका निंबाहेड़ा के अधिशासी अधिकारी, उप नगर नियोजक नगर विकास न्यास चित्तौड़गढ़, नगर नियोजक उदयपुर को लिखित शिकायतें दर्ज करवाई गई लेकिन इन सबके बावजूद उक्त आराजी के संदर्भ में किसी जिम्मेदार के कान पर कोई जूं तक नहीं रेंगी, हालाकि आशंका है कि अंदर खाने मामले में लीपापोती कर दी गई। लेकिन शिकायतकर्ता को की गई कार्रवाई से अवगत तक नहीं कराया गया। ऐसे हालातों में साफ है कि रसूखदरों के दबाव और प्रभाव के आगे चांदी कूटने वाले भूमाफियाओं को कहीं ना कहीं अधिकारियों ने शरण दे रखी है। शिकायतकर्ता ने शिकायत के दौरान बताया था कि मास्टर प्लान के अनुरूप आराजी में भूमि को सरकार ने विशेष प्रयोजन हेतु आरक्षित किया है लेकिन नक्शे में तोड़ मरोड़ कर तथ्य प्रस्तुत करते हुए प्लान को अनुमोदित करा लिया गया और कार्रवाई करने से परहेज किया गया। ऐसे में साफ है कि जानबूझकर नियमों को दरकिनार करते हुए सुनियोजित नगर नियोजन को पलीता लगाने का कार्य बदस्तूर जारी है। ऐसे में इस मामले में त्वरित कार्रवाई की जाकर इस आराजियात में पट्टों को रद्द कर बेचान रजिस्ट्रेशन और तामीर इजाजद पर पाबंदी लगाई जाए। इस आराजी के संबंध में संपूर्ण निष्पक्ष जांच कराई जा कर जवाबदेही तय करते हुए दोषी अधिकारियों के विरुद्ध यथा अधिशासी अधिकारी निंबाहेड़ा, तत्कालीन उप नगर नियोजक चित्तौड़गढ़ पर कार्यवाही की जावे, साथ ही शिकायत के दौरान जांच में गंभीर लापरवाही बरतने वाले गलत तथ्य प्रस्तुत कर विधि विरुद्ध फायदा पहुंचाने वाले जेईएन, एईएन की भूमिका सामने आने पर उनके विरुद्ध भी पद के दुरुपयोग के मामले में विभागीय कार्यवाही सुनिश्चित कराई जावे जिससे कि सुनियोजित नगर विकास की प्रक्रिया में बाधित करने का प्रयास दोबारा नहीं किया जा सके।

जो चोर वही सिपाही!

चित्तौड़गढ़ नगर विकास न्यास में लंबे समय से सचिव का पद खाली होने और संविदा कार्मिक मनमोहन कुमावत के मनमानी रवैया को लेकर लगातार मीडिया की सुर्खियां बनती रही है। इस मामले में भी पूर्व में प्लान अनुमोदन करने वाले के रूप में उप नगर नियोजक का पद संभाल रहे संविदा कार्मिक मनमोहन कुमावत ने ही प्लान को अनुमोदित किया था और बाद में शिकायत मिलने पर उन्हीं के हस्ताक्षर से पूर्व में अनुमोदित प्लान को निरस्त करने का पत्र अधिशासी अधिकारी को लिखा गया है। ऐसे में साफ है कि नगर विकास न्यास में लंबे समय से मनमानी चरम पर थी हालांकि अब प्रदेश सरकार द्वारा नगर विकास न्यास में सचिव और नगर नियोजक को भी स्थाई रूप से पदस्थापित किया गया है ऐसे में यह अनियमितताएं अब खुलकर सामने आने लगी है। निंबाहेड़ा ही नही बल्कि सूत्रों का कहना है कि चित्तौड़गढ़ में भी कई अनुमोदित कॉलोनियों को जांच के घेरे में रखा गया है और यहां भी अनुमोदित किए गए प्लान निरस्त होने की पूरी संभावना है। बड़ी बात यह है कि चित्तौड़गढ़ में भी प्लान अनुमोदन करने वाले के रूप में संविदा कार्मिक मनमोहन कुमावत के हस्ताक्षर है। ऐसे में यदि ऐसी कॉलोनियों के पट्टे निरस्त होते हैं या अनुमोदित प्लान परिवर्तित किए जाते हैं तो ना तो कॉलोनाइजर का कुछ बिगड़ेगा, ना ही संविदा कार्मिक मनमोहन कुमावत के खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई हो सकती है। केवल उन लोगों को भुगतना पड़ेगा जिन्होंने ऐसी कॉलोनी में भूखंड खरीद रखे हैं और पूरे मामले में साफ है कि लंबे समय से यूआईटी में बिल्ली को ही दूध की रखवाली का काम सौंपा गया था जिसकी पोल अब धीरे-धीरे खुलने लगी है। हालांकि सूत्र यह भी बताते हैं कि यूआईटी में संविदा पर कार्यरत मनमोहन कुमावत का कार्यकाल पूरा होने वाला है ऐसी परिस्थितियों में उसके द्वारा की गई अनियमितताओं और नियम विरुद्ध रूपांतरित की गई आवासीय, व्यवसायिक कॉलोनियों को लेकर मामले न्यायालय की चौखट तक भी पहुंच सकते हैं।

पहले से न्यायालय में विचाराधीन प्रकरण, हो रहे हैं निर्माण
जानकारी में यह भी सामने आया है कि नगर पालिका क्षेत्र निंबाहेड़ा में मास्टर प्लान के नियमों के उल्लंघन को लेकर पूर्व में भी कई मामले माननीय उच्च न्यायालय तक पहुंचे हैं और सुनवाई की जा रही है लेकिन इसके बावजूद ऐसे स्थानों पर धड़ल्ले से निर्माण कार्य किए जा रहे हैं। लगभग दो दर्जन मामले हैं जिनमें न्यायालय में विभिन्न अनियमितताओं को लेकर सुनवाई की जा रही है ऐसी परिस्थितियों में आने वाले समय में न्यायालय के निर्णय का सीधा नुकसान उन लोगों को उठाना पड़ेगा जिन्होंने उन विवादित क्षेत्रों में भूखंड खरीद लिए हैं या अपने भवनों का निर्माण कर लिया है। उल्लेखनीय है कि पूर्व में जयपुर, भीलवाड़ा और कोटा क्षेत्रों में नियमों की अवहेलना को लेकर हाईकोर्ट ने सख्त रवैया अपनाते हुए कई गगनचुंबी इमारतों को धराशाई करने का निर्देश दिया था और उन्हीं अधिकारियों को जिन्होंने कभी ऐसे मामलों में स्वीकृति जारी की थी या कार्रवाई करने से परहेज किया था, हाईकोर्ट की फटकार पढ़ने के बाद न्यायालय के आदेशों की पालना करने के लिए मजबूर होना पड़ा था। ऐसे में संभावना है कि एक और जहां न्यायालय में मामले विचाराधीन है वहीं अधिकारियों की अनदेखी और लापरवाही के चलते इसे कई अन्य मामले में सुनवाई के लिए प्रस्तुत हो सकते हैं और जिन का परिणाम आने वाले समय में निंबाहेड़ा क्षेत्र के स्थानीय निवासियों को भुगतना पड़ेगा।

आखिर ऐसी लापरवाही क्यों?
शिकायतों के बाद जब जिम्मेदार कार्रवाई करते हैं तो यह समझ से परे है कि पूर्व में इन्हें अनियमितताओं की जानकारी क्यों नहीं हो पाती है। अध्यक्ष के रूप में जिला कलक्टर यूआईटी का कार्यभार संभाल रहे हैं ऐसे में पूर्णकालिक कर्मचारी आने के पश्चात इस तरह की अनियमितताएं सामने आना साफ तौर पर जाहिर करता है कि लंबे समय से सर्वे सर्वा बने संविदा कार्मिक की मनमानी अब सामने आने लगी है। लेकिन समय पर ध्यान नहीं देने के चलते सुनियोजित नगर विकास की परिकल्पना में हुई अनियमितताओं की संपूर्ण जांच होने पर ही खुलासा हो सकता है कि नगर विकास न्यास के नाम पर कितनी चांदी कूटी गई है और कौन-कौन लोग इस गड़बड़ झाले में शामिल रहे हैं।

आखिर भुगतना लोगों को ही है
चाहे उच्च न्यायालय का निर्णय हो या भविष्य में यूआईटी की पूरी जांच के बाद अनियमितताओं का खुलासा होने पर अंतिम तौर पर इस लापरवाही और मिलीभगत का खामियाजा आमजन को ही भुगतना है। क्योंकि भविष्य में बढ़ती आबादी के साथ कम चौड़ाई की सड़कें, सार्वजनिक उपयोग की भूमियों की बंदरबांट के दूरगामी परिणाम जनसंख्या घनत्व बढ़ने पर लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ेगा तब तक यह कथित जिम्मेदार अपने पदों से जा चुके होंगे।

तय की जाए जिम्मेदारी
लगातार मास्टर प्लान में हुई अनियमितता के मामले सामने आने के बाद अब इस बात की संभावना बढ़ गई है कि आने वाले समय में जो लोग अपना आशियाना सजाने का सपना देख रहे हैं कभी भी किसी कानूनी कार्रवाई के शिकार हो सकते हैं। और न्यायालय का सख्त रवैया देखते हुए तोड़ने के आदेश भी जारी किया जा सकते हैं इससे बचने के लिए है अब यह मांग भी बढ़ने लगी है कि भूमि क्रय विक्रय का काम कर रहे विक्रेता/ कॉलोनाइजर से भूखंड खरीदने वाला इस बात का शपथ पत्र ले कि यदि खरीदे गए भूखंड में किसी प्रकार की कानूनी समस्या उत्पन्न होती है तो उसे इसका समस्त नुकसान कॉलोनाइजर अथवा भूखंड विक्रेता द्वारा दिया जाएगा क्योंकि यह भी उल्लेखनीय है कि जिले में रजिस्टर्ड कॉलोनाइजर सक्रिय नहीं है बल्कि भूमाफिया द्वारा कृषि भूमियों को खरीदकर उन्हें रूपांतरित करवाकर बेचने का खेल चल रहा है। इसलिए अपने खून पसीने की कमाई को सुरक्षित रखने के लिए इस दिशा में प्रयास किया जाना चाहिए कि कॉलोनाइजर की या भूमि बेचने वाले की जिम्मेदारी और जवाबदेही शपथ पत्र के माध्यम से तय की जाए और खरीदार पूरी जागरूकता के साथ इस दिशा में काम करें तो उनका समय धन और भवन सुरक्षित रह सकता है।


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