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सीधा सवाल। भीलवाड़ा/ गंगापुर। बिना भाग्य व प्रारब्ध के किसी को कुछ भी प्राप्त नहीं होता है। समय से पहले वह भाग्य से ज्यादा किसी को कुछ नहीं मिलता है, जो व्यक्ति के भाग्य में नहीं होता है वह नहीं मिलता और जो भाग्य में है वह गया हुआ भी लौट कर वापस आ जाता है। भाग्य और कर्म एक सिक्के के दो पहलू है। न भाग्य को नकारा जा सकता है न ही कर्म को भुलाया जा सकता है। यह बात रामद्वारा चित्तौड़गढ़ के संत दिग्विजयराम महाराज ने गंगापुर में आयोजित कथा में कही।
उन्होंने आगे कहा कि व्यक्ति के जीवन में कर्म की प्रधानता है। अतः व्यक्ति को अच्छे कर्म करना चाहिए। व्यक्ति को कर्म करते हुए परिणाम ईश्वर पर छोड़ देना चाहिए। व्यक्ति को जो कुछ भी जीवन में प्राप्त होता है वह उसके प्रारब्ध का ही फल होता है। कभी-कभी व्यक्ति की सूली की सजा सूल में बदल जाती है। अतः भगवान की न्याय प्रणाली को दोष नहीं देना चाहिए। जीवन में माया कभी-कभी अभिशाप बन जाती है इस संसार में किसी का काम रुकता नहीं है जो नहीं है वह 'माया' है भागवत महापुराण में कहा गया है कि किसी को दान में दी गई वस्तु पुनः स्वीकार करने से 60 हजार वर्ष तक मल का कीड़ा बनना पड़ता हैl इस संसार में मांगने से कुछ नहीं मिलता यदि मांगने से ही सब कुछ मिल जाता तो उस ईश्वर को कौन याद करता है। उन्होंने कहा कि सुख-दुःख, संपत्ति, वैभव सब व्यक्ति को प्रारब्ध अनुसार प्राप्त होते हैं, जो प्रारब्ध भाग्य में लेकर आए हैं उनको भोगना ही पड़ता है। चिंता करने से कुछ नहीं होता। होता वही है, जो हमारे भाग्य में लिखा हैl भाग्य जीव को कहां से कहां ले जाता है। आदमी का जन्म कहां होता है, कहां बड़ा होता है और कहां वह रहता है यह सब भाग्य का खेल है। इधर, मुख्य जजमान नाथूलाल मूंदड़ा द्वारा राधा कृष्ण वाटिका गंगापुर में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा में कई कई श्रद्धालु पहुंचे। इस अवसर पर नाथूलाल मुंन्दडा, रतनलाल मुंन्दडा, गोपाल मुंन्दडा, राजेश, राकेश, बसंतीदेवी, दुर्गालाल, सावित्री, अनीता, दीपा, मुंन्दडा, मुकेश डाड, कृष्णा डाड दक्षिणी राजस्थान प्रादेशिक महेश्वरी सभा के प्रदेश मंत्री देवेंद्र सोमानी,
नव भारतपुर भीलवाड़ा नगर मार्केट सभा उपाध्यक्ष महावीर समदानी, श्याम ट्रस्ट पूर्व अध्यक्ष प्रकाशचंद्र पोरवाल सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहे।
भागवतजी की आरती कर संत से आशीर्वाद दिया
संत ने कहा कि इस संसार में भक्ति करने वाले व्यक्ति को भी बहुत दुख प्राप्त होते हैं। यह सब प्रारब्ध का ही फल है। भाग्य किसी ने खोल कर नहीं देखा क्या पता व्यक्ति के भाग्य में क्या लिखा है। सुख-दुख पाप पुण्य संपत्ति यह सब व्यक्ति के पुण्य से प्राप्त होते हैं। इस संसार में जीव का सामर्थ्य नहीं कि वह प्रभु कृपा के बिना एक स्वास भी ले सके।परमात्मा की कृपा के बिना जीव एक क्षण भी जी नहीं सकता। कथा प्रसंग में भगवान कृष्ण के विवाह, जरासंध वध, कृष्ण सुदामा मित्रता, राजा परीक्षित का मोक्ष प्रसंग सुनाते हुए भागवत कथा को विश्राम दिया गया। वहीं कथा में आए श्रद्धालुओं ने संत से आशीर्वाद लिया।