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सीधा सवाल। चित्तौड़गढ़। जापान की राजधानी टोक्यो आज भारतीय संस्कृति और अध्यात्म की अनूठी छवि का साक्षी बना, जब संत श्री रमता राम जी एवं उनके शिष्य श्रद्धेय संत श्री दिग्विजय राम जी महाराज के सानिध्य में 84 भक्तों का दल तिरंगा यात्रा के साथ सड़कों पर उतरा। यह दल 9 दिवसीय जापान यात्रा पर गया हुआ है।
तिरंगा यात्रा में जापान में बसे भारतीय मूल के नागरिकों एवं भारत से गए श्रद्धालुओं ने भाग लिया। सभी ने हाथों में तिरंगा लेकर ‘भारत माता की जय’ और ‘वंदे मातरम्’ के जयघोष किए। यात्रा के दौरान अल्लामा इकबाल की प्रसिद्ध पंक्तियाँ “सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा...” गुनगुनाई गईं। जापानी नागरिकों ने फूल बरसाकर और तालियों की गड़गड़ाहट से इस यात्रा का गर्मजोशी से स्वागत किया। टोक्यो में एक भव्य सत्संग का आयोजन भी किया गया, जिसकी शुरुआत जापान में रह रहे श्री मनीष अग्रवाल द्वारा भावपूर्ण भजन “मेरी झोपड़ी के भाग आज खुल जाएंगे, मेरे घर राम आएंगे” से हुई। सत्संग में जापान की ‘हिंदू स्वयंसेवक संघ’ (HSS) के लगभग 4000 कार्यकर्ताओं में से कई सदस्य भी उपस्थित थे, जिनका सम्मान संतों द्वारा ऊपरना ओढ़ाकर किया गया। इसी क्रम में ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ मंदिर के संतों का भी अभिनंदन हुआ।
संत श्री दिग्विजय राम जी महाराज ने इस यात्रा को एक आध्यात्मिक अनुभव बताया। उन्होंने कहा, “जापान आकर हमें वैसी ही प्रसन्नता हुई, जैसे एक पिता को खोया बेटा मिलने पर होती है।” उन्होंने समझाया कि यात्रा का वास्तविक उद्देश्य तब सार्थक होता है जब वह संतों के सानिध्य में होकर भजन, कीर्तन और सत्संग से जुड़ती है।
उन्होंने श्री राम स्नेही संप्रदाय के आधाचार्य श्री रामचरण जी महाराज की वाणी का उल्लेख करते हुए कहा कि मनुष्य जीवन दुर्लभ है और इसमें राम भजन, साधु-संग एवं सत्संग सबसे आवश्यक हैं। यही संदेश हमारे धर्म ग्रंथ—रामायण, श्रीमद्भागवत गीता, और विवेक चूडामणि में भी मिलता है।
संत का यह भी कहना था कि जैसे जीवन रूपी विमान के पायलट भगवान हैं, वैसे ही श्रद्धा और भजन जीवन की दिशा तय करते हैं। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि भजन न केवल आत्मिक आनंद देता है बल्कि विज्ञान भी इसकी पुष्टि करता है।