views
इनामी और भगोड़े पकड़ने का दावा, खुद के थाने में ही नहीं हो रही कार्रवाई

सीधा सवाल। चित्तौड़गढ़/निम्बाहेड़ा।
जिले के चर्चित और मीडिया की सुर्खियां बने रहने वाले हार्डकोर, भगोड़े और इनामी अपराधियों को पकड़ने के लिए निंबाहेड़ा कोतवाली थाना प्रभारी राम सुमेर और उनकी होनहार टीम बेकार साबित हुई है। जहां एक ओर दलित नाबालिक बेटी के मामले में गंभीर लापरवाही जिसमें नियम विरुद्ध खुद के पास फाइल रोक कर रखी और बाद में जब उच्च अधिकारियों के पास फ़ाइल पहुंची तो कार्रवाई हुई। इसी प्रकार के एक मामले में कोतवाली थाने में दर्ज रिपोर्ट पर थाना अधिकारी राम सुमेर, उनकी टीम के जांबाज और कथित विशेषज्ञों के विफल होने से आहत होकर एक पिता ने अपनी बेटी के लिए माननीय उच्च न्यायालय से गुहार लगाई है। न्यायालय ने याचिका स्वीकार कर तथ्यात्मक रिपोर्ट मंगवाली है, वही इस मामले में न्यायालय से एजीजी के माध्यम से समय मांगा गया है। अब जून के दूसरे सप्ताह में इस मामले में सुनवाई निर्धारित की गई। लेकिन इस पूरे मामले से एक बार फिर स्पष्ट हो गया है कि निंबाहेड़ा कोतवाली थाने की स्थिति थोथा चना बाजे घणा की है। यहां अन्य राज्यों से तो हार्डकोर और भगोड़े अपराधी पकड़ने के प्रेस नोट जारी किए जा रहे हैं लेकिन खुद के थाने में दर्ज मामलों में कार्रवाई करने में थाना अधिकारी राम सुमेर और उनकी जांबाज, होशियार, विशेषज्ञ टीम केवल घर का पूत कुँवारा डोले पाडोसी ने फेरा की कहावत को चरितार्थ कर रही है।
यह है मामला
जानकारी के अनुसार निंबाहेड़ा कोतवाली थाने में दर्ज प्रकरण संख्या 117/25 के अनुसार क्षेत्र का एक युवक कमल और एक स्कूली छात्रा गायब हो गए । जिस पर पहले तो प्रकरण की गंभीरता को देखते हुए विशेषज्ञ सहायक उपनिरीक्षक सूरज कुमार को अनुसंधान अधिकारी लगाया गया, लेकिन जब सूरज कुमार की जांच का नतीजा ढाक के तीन पात वाला रहा तो पुलिस अधीक्षक सुधीर जोशी के आदेश से अपह्रता और आरोपी पर पांच-पांच हजार का नगद इनाम घोषित किया गया। लेकिन जब इनाम घोषित करने के बाद भी कोई जानकारी नहीं मिली तो परिजनों की ओर से राजस्थान उच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई, जिस पर माननीय उच्च न्यायालय ने इस प्रकरण में जून के दूसरे सप्ताह में सुनवाई निर्धारित की है। वही इस पूरे मामले में चर्चा है कि जिस जांच अधिकारी को अनुसंधान दिया गया है उसे बड़े इनाम लेने की आदत है और ऐसे में यह राशि कम है। यदि राशि बढ़ाई जाए तो संभावना है कि मामले में कार्रवाई हो सकती है या फिर माननीय उच्च न्यायालय की लताड़ पड़ने पर संभावना है। और पूरे मामले से यह प्रतीत होने लगा है की निंबाहेड़ा कोतवाली थाने में कंपाउंडर को अस्पताल का प्रभारी बना दिया गया है जिसे छोटे-मोटे पेट दर्द के उपचार की जानकारी है। परंतु फिर भी खुद को विशेषज्ञ की टीम का प्रभारी समझ रहा है। नतीजा यह है कि ना तो व्यवस्था बन पा रही है और ना ही ऐसे कंपाउंडर को प्रभारी बनाने वालों की प्रतिष्ठा बच रही है। बल्कि लगातार ऐसे मामले सामने आने से कानून व्यवस्था और पुलिस की कार्यशैली के साथ-साथ सरकार की मंशा पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।
झोला छाप इलाज, एमबीबीएस का बोर्ड !
एक ओर लगातार पुलिस अधीक्षक सुधीर जोशी, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक सरिता सिंह तो कभी मुकेश सांखला और पुलिस उप अधीक्षक बद्रीलाल राव के निकटतम सुपरविजन और थाना अधिकारी राम सुमेर के निर्देशन में इनामी और हार्डकोर अपराधी पकड कर गाहे बगाहे मीडिया की सुर्खियां बनने वाले कोतवाली थाने के कार्मिक और विशेष तौर पर सोशल मीडिया के ऐसे मामलों के 'कनिष्ठ विशेषज्ञ' सहायक उप निरीक्षक सूरज कुमार की स्थिति और कोतवाली थाने की स्थिति इस मामले के बाद ऐसी प्रतीत हो रही है, मानो गांव खेड़े में कोई झोलाछाप है। जिसने अपने क्लीनिक के बाहर बड़े-बड़े अक्षरों में अपनी विशेषज्ञता दर्शा रखी है। जिसका वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं है। ऐसे में थाने के इनामी विफल विशेषज्ञ की डिग्री और उनके द्वारा उपचारित किए गए मरीजों की भी विस्तृत जांच की आवश्यकता प्रतीत हो रही है। कहीं ऐसा तो नहीं है कि झोलाछाप इलाज के जरिए बीमारी को छोड़ दिया गया हो और न्यायालय में जाकर इनकी गलती कथित रूप से जो बहादुरी बताई गई है अपराधियों लिए लाभकारी सिद्ध ना हो, अन्यथा पुलिस विभाग की स्थिति ऐसी होगी मानो चौबे जी छब्बे जी बनने गए और दुबे जी बनकर रह गए। हालांकि सूत्रों का कहना है कि पूर्व में इस तरह के मामले हुए हैं जहां श्रेय लेने के चक्कर में हुई गलतियों से अपराधी न्यायालय से बच गए। इसलिए आवश्यकता है कि समय-समय पर विभिन्न क्षेत्रों में झोलाछाप की जांच के लिए चलाए जाने वाला अभियान की तर्ज पर एक उच्च स्तरीय जांच अभियान इनामी प्रकरणों की जांच के लिए चलाया जाना चाहिए। जिससे कि पता लग जाए कि कितने झोलाछाप विशेषज्ञ बनकर घूम रहे हैं। इससे यह संभावना प्रबल है कि जो खुद अपने थाने के और अपने नाम पर किए गए प्रकरण की जांच और कार्रवाई नहीं कर पा रहे हैं, उन्हें औरों के काम का रिवॉर्ड थाना अधिकारी राम सुमेर की सेवा पर तो नहीं दिया जा रहा है। क्योंकि अनुशंसा तो साहब ही कर रहे हैं।