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सीधा सवाल। चित्तौड़गढ़। संसार में जब गुरु कृपा होती है तो व्यक्ति के सभी कार्य भी पूर्ण हो जाते हैं, जब व्यक्ति को गुरु का सानिध्य मिलता है तो सतगुरु उसको भवसागर पार लगा देते है l कथायें व्यक्ति के अभिमान को समाप्त करती है, कथा सुनने के बाद व्यक्ति को उसे पर मनन करना चाहिए मनन करने के बाद कथा को जीवन में धारण करने का प्रयत्न करना उचित रहता है कथा हमेशा तनमनस्त होकर सुनना चाहिए उसके बाद दया रूपी पाछन ( अंगोछा ) से अंग( मन ) साफ करना चाहिए l गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा कि दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान तुलसी दया ना छोड़िए जब लघ गठ में प्राण अर्थात तुलसीदास जी कहते हैं कि धर्म का मूल भाव ही दया है इसलिए मनुष्य को कभी दया नहीं त्यागना चाहिए इसी प्रकार अहम अर्थात अभिमान का भाव ही पाप का मूल (जड़) है अत: हमें शरीर में प्राण रहने तक दया भाव को नहीं त्यागना चाहिए l भक्त प्रह्लाद ने भी भगवान से ना राज्य चाहा ने स्वर्ग चाहा ना मोक्ष चाहा केवल यह मांगा की मुझे इस संसार के सभी प्राणियों के दुख मुझे दे दो और उनको दुखो मुक्त कर दो l महाभारत में कुंती ने भी भगवान कृष्ण से कहा कि इस संसार के सारे दुख मुझे दे दो क्योंकि व्यक्ति दुख में परमात्मा को याद करता है और ऐसा सुख किस काम का जो व्यक्ति को परमात्मा से दूर कर दे अतः कुंती ने कहा मुझे दुख ही दीजिए ताकि मैं आपको याद कर सकूं l
संसार में जो प्राप्त है वह पर्याप्त है ऐसी भावना हर मनुष्य को रखनी चाहिए क्योंकि जो प्राप्त है उसका आनंद भी मनुष्य नहीं ले सकता क्यों कि वह और पाने की लालसा में हमेशा दुखी रहता है इसलिए मनुष्य को जो आज प्राप्त है उसका आनंद लेना चाहिए l स्वामी रामचरण जी महाराज ने भी कहा था कि मानव वही सफल है जिसके मन में दया है महापुरुषों ने कहा कि प्राकृतिक साधनों का दुरुपयोग मनुष्य को नहीं करना चाहिए l दया धर्म की नीव है, दया करुणा का मंदिर है, दया ज्ञान का मंदिर है, जिसके मन में दया होती है उसका इस संसार में कोई शत्रु नहीं होता है जो व्यक्ति नम्र होता है उसके मन में भक्ति का मंगलाचरण शीघ्र होता है व्यक्ति को तर्ण ( तिनका ) की तरह अपने आप को छोटा मानना चाहिए जीवन में भक्ति का प्रण दृढ़ता से होना चाहिए जिस प्रकार मीरा ने कृष्ण की भक्ति का प्रण दृढ़ता लिया था और कहा था कि यह सर झुकेगा तो केवल गिरधर के सामने ही झुकेगा l इसी प्रकार पशु भी अपने मालिक के प्रति अपनी निष्ठा में दृढ़ता रखते हैं उसी प्रकार व्यक्ति को अपने ईश्वर में दृढ़ता रखनी चाहिए l