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सीधा सवाल। चित्तौड़गढ़। राम भक्ति महारानी का श्रृंगार भक्तों को अति प्रिय लगता है अंग पोछन के बाद भक्ति वस्त्र ( नम्रता) धारण करती है l व्यक्ति की प्रतिज्ञा दृढ़ होनी चाहिए जिस प्रकार चकोर पक्षी प्यासे मर जाता है लेकिन वह स्वाति नक्षत्र की बूंद के अलावा जमीन पड़े जमीन पर पड़े जल को स्वीकार नहीं करता है l व्यक्ति की भक्ति कच्ची होती है वह संसार के थोड़े से दुख आने पर भक्ति को त्याग देता है यानी उसका विश्वास ईश्वर से उठ जाता है जबकि पशु पक्षी अपनी दृढ़ता को नहीं त्यागते पर इंसान इतना स्वार्थी होता है कि वह भगवान की सत्ता को भी नकार देता है थोड़ा दुख आने पर व्यक्ति अपनी दृढ़ता को त्याग देता है l तुलसीदास जी ने मानस में कहा है की प्राण जाए पर वचन न जाए अर्थात व्यक्ति की भक्ति दृढ़ होनी चाहिए भक्ति के प्रति व्यक्ति का समर्पण होना चाहिए अगर व्यक्ति ईश्वर में पक्का विश्वास रखता है तो ईश्वर उसकी नैया पार कर देता है l राम स्नेही संप्रदाय के अाधाचार्य श्री रामचरण जी महाराज ने कहा था कि अपने गुरु, अपने आराध्य के प्रति एक प्रतिशत भी अविश्वास नहीं करना चाहिए यदि एक प्रतिशत भी अविश्वास हो तो वह 99% विश्वास को ले डूबेगा जैसे नाव में एक छोटा सा छेद होने पर वह पूरी नाव को डुबो देता है l संसार में जो राम का आसरा लेता है उसकी नैया पार हो जाती है l भक्तमाल में प्रिया दास जी कहते हैं कि यदि भक्ति करना है तो दृढ़ता से करो किसी भी प्रकार का अविश्वास ईश्वर में नहीं करना चाहिए भक्ति के मार्ग में परीक्षाएं पग पग पर होती है जीवन में प्रतिकूलता में भी भगवत आराधना करना ही सच्चे भक्त की पहचान है l भगवान व्यक्ति को समस्याएं देते हैं लेकिन उन समस्याओं के साथ-साथ भगवत भजन दृढ़ता से करना चाहिए व्यक्ति को अपने प्रण में शिथिलता नहीं बरतनी चाहिए प्रण भी ऐसा होना चाहिए जो निभाया जा सके ऐसा प्रण भी नहीं होना चाहिए जो कभी पूरा नहीं किया जा सके, नियम ऐसा हो जो भगवत प्राप्ति का रास्ता दिखाता हो l भक्ति महारानी के आभूषण (भगवान का नाम ) है कुंडल --- भक्ति महारानी अपने दोनो कानों में कर्ण फुल पहनती है जिसका अर्थ है हरी सेवा व दूसरा साधू सेवा l आभूषण के बाद भक्ति महारानी अपने आंखों में अंजन लगाती है यहां अंजन का तात्पर्य सत्संग से है यानी वह सत्संग रूपी अंजन अपनी आंखों में लगाती है जिससे सभी अवरोध दूर हो जाते हैं और प्रीतम (ईश्वर) प्रसन्न होते है,सत्संग से मनुष्य को कई प्रकार का लाभ होता है ,संसार का वास्तविक सुख व्यक्ति को सत्संग में ही मिलता है सत्संग में जो सुख व्यक्ति को मिलता है वह सुख व्यक्ति को कहीं पर भी नहीं मिल सकता l सत्संग में व्यक्ति संसार के प्रपंच से बचता है सत्संग की महिमा सबसे अधिक है एक क्षण का सत्संग भी व्यक्ति के कितने ही दुखो और विपदाओं का नाश करता हैl सारे तीर्थो का लाभ एक तरफ और सत्संग का लाभ एक तरफ तोला जाय तो सत्संग का पलड़ा भारी रहता है अतः जहां कहीं भी व्यक्ति को सत्संग में जाने का लाभ मिले उसे लाभ को प्राप्त कर लेना चाहिए l