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सीधा सवाल। चित्तौड़गढ़। अपनी जिव्हा से हरि का नाम लेना ही मनुष्य के कल्याण का मार्ग है सद्गुरु जब तक मार्ग नहीं बताएंगे तब तक व्यक्ति ईश्वर को प्राप्त नहीं कर सकता हैं , ईश्वर व्यक्ति के अंतःकरण में है जबकि व्यक्ति उनको बाहर खोजता है l भक्तमाल अनुसार भगवान बहुत ही सरल है लेकिन व्यक्ति के हृदय में उनके प्रति सच्ची श्रद्धा होनी चाहिए सच्ची निष्ठा होने पर भगवत कृपा मिलती है l इस संसार में कोई भगवान की भक्ति करता है तो लोग उसे पागल या बावरा कहते हैं, व्यक्ति के जीवन में अनुकूलता व प्रतिकूलता तो प्रारब्ध अनुसार आती रहती है लेकिन जब जीवन में प्रतिकूलता हो तो व्यक्ति को भगवत भजन नहीं छोड़ना चाहिए l भगवत भक्त ही मंगल के रूप है तुलसीदास जी ने रामायण में लिखा है- मुद मंगलमय संत समजू l जो जग जंगल तीरथ राजू l l राम भक्ति जहां सूर सरी धारा l जिसका अर्थ है संतों का समाज आनंद और कल्याण मय है जो जगत में चलता फिरता तीर्थराज (प्रयाग) है l संसार में हरी से बड़ा हरिदास होता है क्योंकि हरि का निवास भक्ति के हृदय में होता है भक्तमाल ग्रंथ में भक्तों का यश गान किया गया है, भगवान का यश गान तो कई ग्रंथों में गाया गया है लेकिन जब भक्तों का यश गाया जाता है तो स्वयं ईश्वर आकर उसको सुनते हैं l भवसागर से तरने के लिए भगवान व भगवान के भक्तों का यश गान व्यक्ति को जीवन में सुनना चाहिए l
