views

सीधा सवाल। निम्बाहेड़ा।
स्थानीय शांति नगर स्थित नवकार भवन में चल रहे चातुर्मासिक प्रवचन श्रृंखला में जैन संत मुनि श्री युग प्रभ जी म.सा. ने श्रावक-श्राविकाओं को संबोधित करते हुए कहा कि संसार में दो प्रकार के मानव होते हैं, सौभाग्यशाली और दुर्भाग्यशाली। उन्होंने कहा कि सौभाग्यशाली मानव अपने जीवन रूपी घर को भगवान की मूर्ति बनाते हैं, जबकि दुर्भाग्यशाली मानव उसी जीवन को शैतान का घर बना देते हैं।
मुनि श्री ने कहा कि जब तक मानव के जीवन में सहजता और सौम्यता नहीं आती, तब तक वह स्वयं को नकारात्मक प्रवृत्तियों से नहीं बचा पाता। उन्होंने विशेष रूप से श्रावक धर्म के तीसरे गुण-सौम्यता पर बल देते हुए कहा कि सच्चा श्रावक वही है जिसकी प्रकृति सहज और सौम्य हो। ऐसा व्यक्ति जल्दी पापकर्मों की ओर प्रवृत्त नहीं होता।
मुनि श्री ने स्पष्ट किया कि जिसके जीवन में सौम्यता नहीं होती, वह मानव सौभाग्यशाली नहीं बल्कि अभागा होता है। आज का मानव क्रोध और आवेश के कारण अशांत है। उन्होंने कहा कि संतोष, प्रसन्नता और आंतरिक शांति के बाद ही सच्चा सौभाग्य जागृत होता है।
ज्ञानियों के वचनों का उल्लेख करते हुए मुनि श्री ने बताया कि नरक गति के जीवों में क्रोध कषाय, तिर्यंच गति में माया कषाय, मनुष्य गति में मान कषाय, तथा देव गति में लोभ कषाय प्रमुख होती हैं।
उन्होंने कहा कि जब कोई व्यक्ति आपके सामने क्रोध करता है, तो यह समझें कि यह उसके पूर्व जन्म के स्वभाव का प्रभाव है। यदि उस समय हम चिंतन करें, तो विषम परिस्थितियों में भी समता का भाव बना रह सकता है, और समता के माध्यम से ही मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। मुनि श्री ने कहा कि सौम्यता वाला श्रावक सहज जीवन जीता है, और आवेश या उत्तेजना में नहीं आता।
प्रवचन के प्रारंभ में मुनि श्री अभिनव मुनि जी म.सा. ने कहा कि पर-निंदा संसार का कारण है और स्व-निंदा मुक्ति का कारण। अतः मनुष्य को चाहिए कि वह दूसरों की निंदा छोड़कर स्वयं की त्रुटियों का आत्मचिंतन करे।
सभा में फतहनगर श्री संघ, बीकानेर, पुणे आदि क्षेत्रों से पधारे श्रावक-श्राविकाएं उपस्थित रहे। फतहनगर श्री संघ के अध्यक्ष विकास मारू ने संघ की ओर से मुनि संघ के समक्ष विनती प्रस्तुत की। चंदनमल ने एक भावगीतिका प्रस्तुत कर भावों की अभिव्यक्ति दी। सभा का संचालन राजेंद्र मारू द्वारा किया गया।
