views

सीधा सवाल। कपासन। श्रमण संघीय द्वितीय पट्टधर आचार्य सम्राट पूज्य श्री आंनदऋषिजी म.सा. की 126वीं जयंति के उपलक्ष्य में श्रीवर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ द्वारा अंबेश सौभाग्य स्वाध्याय भवन मे धर्मसभा तपस्वी रत्ना पूज्या श्री कंचन कवर जी म.सा. आनंद ऋषि जी के जीवन पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि वह श्रमण संघ के प्राण थे।वो सच्चे अर्थो मे संत रत्न थे। सहजता,सरलता व समरसता की प्रतिमूर्ति थे। जीवन संघ समाज व मानवता के लिए समर्पित रहा। उन्होंने हमेशा समाज की एकता मजबूत करने के लिए कार्य किया। उनके नाम के अनुरूप ही उनके जीवन से आनंद की अनुभूति होती थी।उन्होंने महाराष्ट्र हो या राजस्थान या देश का कोई भी क्षेत्र जहां भी चातुर्मास किए वहां जिनशासन की प्रभावना करने के साथ आमजन को धर्म का मर्म समझाने के साथ सत्य व अहिंसा से परिपूर्ण जीवन जीने के लिए प्रेरित किया। ऐसे महान संत का जीवन हमेशा हमारे लिए प्रेरणादायी रहेगा। डाँ सुलोचन श्री जी म.सा. ने कहा कि पुत्र ऐसा हो जो धरती पर भार नही बनकर धरती का श्रंगार बने।इस धरती पर कोई राम या महावीर पैदा होता है। उन्हे 13 वर्ष की उम्र मे दीक्षा लेकर संघ के नायक बने। उन्होंने शिक्षा का बिगुल बजा समाज को मार्ग दर्शन दिया।संघनायक व आचार्य आनंद गुरू जैसे उन महापुरूषों को उनके गुणों के कारण दुनिया जाने के बाद भी याद करती हैं।उनके गुणों का जितना गुणगान करे कम होगा। डॉ सुलक्षणा श्री ने कहा कि आचार्य के जीवन में कठोरता व कोमलता दोनों शामिल थे। जहां कठोर होने की जरूरत होती वहां कठोरता बरतते ओर जहां कोमलता दिखाने की जरूरत होती वहां वैसा भाव भी प्रदर्शित करते थे। गुरू ही होता है जो अपने शिष्य को सुयोग्य बनाता हैं। ओर संसार सागर से पार करने का मार्ग दिखाता है। गुरू के बिना हमारा जीवन अधूरा ही रहेगा। उन्होंने मानव सेवा व जीव दया के लिए सदा प्रेरणा प्रदान की। उनकी प्रेरणा ने लाखों लोगों के लिए मार्गदर्शन का कार्य किया ओर लोग धर्म से जुड़ने के लिए प्रेरित हुए। उनके नाम के अनुरूप ही उनके जीवन से आनंद की अनुभूति होती थी।संघ अध्यक्ष सूर्य प्रकाश सिरोया ने भी उनके जीवन पर विचार रखे और बताया कि वह श्रमण संघ के प्राण थे और लब्धिधारी महापुरुष थे। उनके जीवन को ज्ञान तप जप की त्रिवेणी बताया। महाराष्ट्र के लोग आज भी आनंद बाबा के नाम से जानते है उन्होंने शिक्षा के लिए पाथर्डी परीक्षा बोर्ड बनाना आचार्य श्री की दूरदर्शिता का द्योतक है । उन्होंने शिक्षा, अस्पताल, वर्धाआश्रम, गरिबो के जिनोउद्धार के लिए सस्थाएँ आदि आज भी उनके नाम से कही संस्थाऐ चल रही है। साधुमार्गी मेवाड संघ के पुर्व अध्यक्ष अशोक चण्डालिया ने आचार्य श्री पर विचार रखे।कई श्रावक श्राविकाओं ने उपवास, एकासन,आयम्बिल, उपवास आदि तप के प्रत्याख्यान भी लिए। जंयति पर अनेक पदाधिकारी शंकर लाल लोढा,अनिल बाघमार,एस पी सिरोया,प्रकाश आंचलिया,रूप लाल डांगी,अशोक बाफना,मदन लाल दुग्गड,मदन लाल चण्डालिया,सम्पत लाल हिगड़, रणजीत चण्डालिया एवं महिला मण्डल से सुनिता सांवला,चंद्र किरण चण्डालिया,सपना सिरोया,कान्ता ढीलीवाल,अनिता बाफना,चंदा सावला आदि अनेक श्रावक श्राविकाएँ उपस्थित थे। संचालन संघ अध्यक्ष सूर्य प्रकाश सिरोया ने किया।

