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मेवाड़ भीलों के गौरवशाली इतिहास से छेड़छाड़ पर कार्यवाही की मांग

सीधा सवाल। चित्तौड़गढ़। राणा पूंजा भील को राजपूत बताये जाने तथा वर्तमान समय में कुछ असामाजिक तत्वों पर मेवाड़ के भीलों के गौरवशाली इतिहास से छेड़छाड करने का आरोप लगाते हुए भील सेना चित्तौड़गढ़ द्वारा जिला कलेक्टर के माध्यम से राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल मुख्यमंत्री आदि को ज्ञापन सौंप कर असामाजिक तत्वों पर कार्यवाही किये जाने की मांग की।
सौंपे ज्ञापन में बताया कि मेवाड़ का इतिहास भीलों के बिना और भीलों का इतिहास पूंजा भील के बिना अधूरा है। भील आदिवासी का इतिहास लोक गीतों के माध्यम से आज भी जीवित है। राजस्थान एवं मेवाड़ के संबंध में वर्षों पुरानी पुस्तकें जिनमें भोमट के शासक को भील बताया गया है, ना की सोलंकी राजपूत।
इतिहास के पन्नों में भारत के भीलों का गौरवशाली इतिहास रहा है। भील भारत के कई राज्यों एवं छोटी बड़ी रियासतों के राज्य रहे। भारत में कई स्थानों, शहरों में संस्थापना भील राजाओं के द्वारा की गयी है। राजस्थान में भी कई जिले एवं शहर है जिसकी स्थापना भील राजाओं ने की है। मेवाड़ के भोमट क्षेत्र के राजा पूंजा भील हुए, जिन्होंने हल्दी घाटी के युद्ध में मेवाड़ के शासक का सहयोग अकबर के विरूद्ध किया था। मेवाड़ के हल्दीघाटी में भीलों की सेना का नेतृत्व स्वयं भोमट के राजा पूंजा भील ने किया था।
हल्दीघाटी के युद्ध के दौरान भीलों ने महाराणा प्रताप एवं मेवाड़ की सेना को अपने क्षेत्र भोमट में संरक्षण दिया। मेवाड़ के असीम प्रेम को देखते हुए महाराणा प्रताप की माता द्वारा पूजा भील को ‘राणा’ की पदवी दी। इसका इतिहास में भी वर्णन है। मेवाड़ में हल्दीघाटी युद्ध में राणी जाया-भीली जाया भाई-भाई का नारा लगाया गया था।
वीर विनोद पुस्तक जो मेवाड़ के वर्षों पुराने इतिहास को बताती है। इस पुस्तक के पृष्ठ संख्या 122-23 में भीलों को भोमिया कहा गया है एवं पृष्ठ संख्या 416 में भीलों के सरदार मेरपूर के राणा पूंजा का उल्लेख है।
मुहणोत नेणसी री ख्यात में स्पष्ट रूप से पनोरा (पानरवा) को भीलों का बताया जिसका उल्लेख पेज नं. 39 पर है। पेज संख्या 45 पर राणा दयालदास भील का उल्लेख मिलता है जिसके पास 94 का उल्लेख मिलता है। इसके साथ ही उदयपुर राज्य का इतिहास पुस्तक 1928 के संदर्भ में पेज नम्बर 432 में भी मेरपूर के राजा को भील समुदाय से बताया एवं 444 में युद्ध में घायल की सहायता भीलों ने की, इसका भी उल्लेख किया गया है।
महाराणा प्रताप स्मारक में भी पूंजा भील की प्रतिमा स्थापित की गयी जिसका उद्घाटन प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा 8 फरवरी 1989 को किया गया जिसमें उन्हें पूंजा भील ही बताया गया है। दिवेर युद्ध स्थल पर भी पूंजा भील की तस्वीर में उन्हें भील बताया गया है। यहाँ तक कि मेवाड़ में हल्दीघाटी युद्ध में राणी जाया भीली जाया भाई-भाई का नारा लगाया गया था।
इतिहास से छेड़छाड़ करने वालों के विरूद्ध संज्ञान लेकर कानूनी कार्यवाही किये जाने की मांग की गई।
इस दौरान सुनील चौहान भील निम्बाहेड़ा, गोपाल भील आकोड़िया, हितेश भील आतरी, रोहित भील नीमच, नारायण भील नगावली, विमल भील, पूरण भील, सुनील भील, मुकेश भील, पप्पू भील, नारायण भील गंगरार, कालूराम भील, श्यामलाल, नारायण भील कपासन, उदयलाल भील, नारायण भील, राजू भील, रमेश भील, रतन भील निम्बाहेड़ा, पन्नालाल भील, हीरालाल भील, बाबूलाल भील, मोहनलाल भील भूपालसागर, लादूलाल भील, रतन भील बेगूं, भेरूलाल भील, रतन भील कनेरा, राजवीर कटारिया, बाबूलाल खराड़ी, राकेश माल, जमनालाल भील, बाबूलाल भील, गिरधारीलाल भील, शांतिलाल भील, हीरालाल भील, कालू महाराज, प्रकाश भील, राजू भील चित्तौड़गढ़ मौजूद रहे।