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निम्बाहेड़ा।
स्थानीय शांतिनगर स्थित नवकार भवन में चल रहे चातुर्मासिक प्रवचन क्रम में जैन संत मुनिश्री युग प्रभ महाराज साहब ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि "संसार में तीन प्रकार के भक्त होते हैं- पुजारी भक्त, भिखारी भक्त और सदाचारी भक्त।" उन्होंने स्पष्ट किया कि जो भगवान को "मानता" है, वह पुजारी भक्त है; जो भगवान से "मांगता" है, वह भिखारी भक्त है; और जो भगवान की "मानता" है, वह सदाचारी भक्त है।
मुनिश्री ने कहा कि जीवन की महानता भगवान को मानने में नहीं, बल्कि उनकी वाणी को स्वीकार कर आचरण में लाने में है। जो व्यक्ति भगवान की मानता है, वह अपने जीवन से समस्त दुखों का अंत कर सकता है।
प्रवचन में उन्होंने कहा कि आज संसार में साधना तो हो रही है, लेकिन सफल साधना बहुत कम है। कई बार साधना का स्वरूप विपरीत हो जाता है, जिससे दुर्गति का मार्ग प्रशस्त होता है। उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि चण्डकौशिक नाग ने साधु अवस्था में क्रोध किया, फलस्वरूप वह तिर्यंच योनि में गया, लेकिन सर्प के रूप में जब उसने भगवान की वाणी को स्वीकार किया, तो वह देवगति को प्राप्त हुआ।
मुनिश्री ने श्रावक के पाँचवें गुण - अक्रूरता पर बल देते हुए कहा कि "क्रूरता सभी दुर्गुणों की जननी है।" जहां क्रूरता होती है, वहाँ ईर्ष्या, द्वेष, उत्तेजना और प्रतिस्पर्धा जैसे विकार स्वतः पनप जाते हैं। सफल साधक के भीतर करुणा होती है, कोमलता होती है; जबकि असफल साधना मनुष्य को कठोर और क्रूर बना देती है।
उन्होंने कहा कि क्रूरता का मूल कारण राग होता है। जैसे-जैसे राग बढ़ता है, वैसे-वैसे क्रूरता भी बढ़ती है। आज मनुष्य का सबसे बड़ा राग 'पैसे' के प्रति है। जब कोई अन्य व्यक्ति पैसे की गणना करता है, तो उसमें ईर्ष्या और क्रूरता जाग उठती है, जिससे वह हिंसा तक करने को तैयार हो जाता है। इसलिए यदि जीवन में क्रूरता से बचना है, तो राग से बचना अनिवार्य है।
आज की प्रवचन सभा में सुश्री निकिता सिसोदिया (पुत्री श्रीमती पुष्पा देवी-शांतिलाल सिसोदिया, मंगलवाड़) ने आठ उपवासों का प्रत्याख्यान कर धर्म आराधना की।
सभा में आसावरा, मंगलवाड़, चिकारड़ा सहित आसपास के क्षेत्रों से बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाएं उपस्थित रहे। संचालन का उत्तरदायित्व शुभम छाजेड़ ने निभाया।
