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शिक्षा विभाग के अधिकारी बने 'सर्कस के शेर' मंत्रालयिक कर्मचारियों की मौज

सीधा सवाल
चित्तौड़गढ़
एक और जहां जिले के शिक्षा विभाग के अधिकारी निजी स्कूलों पर स्कूल बंद करने के लिए लगाम कसने की तैयारी कर रहे हैं। वहीं दूसरी और यही अधिकारी अपने ही अधीनस्थ आने वाले कार्मिकों से काम नहीं करवा पा रहे हैं। विद्यालय में कार्यरत संस्था प्रधान जिले के उच्च अधिकारी और बाबुओं के कतिपय संगठनों की मिली भगत के चलते अवकाश नहीं होने के बावजूद यह मंत्रालय कर्मचारी या सीधे शब्दों में कहे तो बाबूजी नौकरी पर जाने से परहेज कर रहे हैं। हालत यह है की जिम्मेदार अधिकारी कार्रवाई करने से डर रहे हैं। इसे स्पष्ट है कि सरकार के नियम एक और जान निधि स्कूल नहीं मान रहे हैं वहीं सरकार के बाबू भी संगठनों की धौंस दिखाकर नियमों पर हावी है।
यह है नियम
सरकारी नियमों की बात करें तो शिक्षण कार्य करने वाले शिक्षकों को दीपावली के अवकाश का फायदा दिया जाता है। वही कार्यालय का काम करने वाले मंत्रालय कर्मचारी श्रेणी के कार्मिक इस दौरान अपने कार्यालय में उपस्थित देंगे और आने जाने दोनों समय के हस्ताक्षर करेंगे। लेकिन चित्तौड़गढ़ जिले के विद्यालयों में जिन कार्मिकों को अपनी सेवा देनी है छुट्टी मार रहे हैं। इससे स्पष्ट है कि शिक्षा विभाग के अधिकारी या तो इन्हें मोन स्वीकृति दे रहे हैं। या फिर विभाग के अधिकारी केवल औपचारिक है जो बिना नाखून के शेर की तरह सर्कस के शेर बन गए हैं जिन्हें संगठन के कतिपय स्वयंभू पदाधिकारी अपने इशारों पर नचा रहे हैं।
संस्था प्रधानों को नहीं है
भूपाल सागर के गुंदली विद्यालय के संस्था प्रधान से जानकारी लेने पर सामने आया की कल उनके कार्यालय में कार्मिक नहीं था आज की उनको जानकारी नहीं है। हालांकि नियम यह भी कहते हैं यह संस्था प्रधान जो कार्यालय अध्यक्ष है उन्हें भी कार्यालय में मौजूद होना चाहिए लेकिन जो खुद ही कार्यालय में नहीं है वह अपने कार्मिकों से कार्यालय आने के लिए कैसे कह सकते हैं यह एक बड़ा सवाल है।
सरकार ने दिया रंग रोगन के आदेश घरों में चल रहा है काम
उल्लेखनीय है कि दीपावली अवकाश में विद्यालय को सुरक्षित रखने और सामाजिक संदेश देने के उद्देश्य से सरकार द्वारा विद्यालयों में साफ सफाई रंग रोगन का कार्य करने के दीपावली अवकाश के दौरान निर्देश दिए गए लेकिन क्योंकि अभी घरों में भी यही कार्य चल रहा है इसलिए कार्यालय को केवल रोजी-रोटी का माध्यम मानने वाले लोगों के लिए उसकी स्वच्छता और सुंदरता से कोई लेना-देना नहीं है इसके चलते अधिकांश विद्यालय रिक्त हैं जहां कोई काम नहीं हो रहा है। इससे स्पष्ट है कि सरकार लाख आदेश निकाल दे लेकिन इन्हीं शिक्षकों से निकलकर अधिकारी बनने वाले हैं लोग कुर्सियों पर पहुंचने के बाद इन्हीं के बचाव में जुड़ जाते हैं भले ही सरकार के नियम इसके लिए बाईपास करना पड़े उन्हें इससे भी कोई गुरेज नहीं है।
