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सीधा सवाल। चित्तौड़गढ़। जीवन में सत्संग रूपी अंजन व्यक्ति की आंखें खोलता है और व्यक्ति को भक्ति की ओर अग्रसर करता है l सत्संग बुद्धि की जड़ता( अज्ञान )को हरता है, सत्संग से व्यक्ति में श्रद्धा उत्पन्न होती है और श्रद्धा से ज्ञान (विवेक) आता है l तुलसीदास जी की प्रसिद्धि चौपाई है" बिनु सत्संग विवेक न होई,राम कृपा बिनु सुलभ न सोई" अर्थार्त बिना सत्संग के विवेक( ज्ञान) नहीं होता है और राम की कृपा बिना सत्संग मिलना मुश्किल है l सत्संग से व्यक्ति शक्ति को प्राप्त करता है, सम्मान पाता है, उन्नति करता है और चित्त प्रसन्न रहता है l इस संसार में प्रसन्न रहना वह चित्त को प्रसन्न करना करना भी बहुत बड़ी साधना है l सत्संग से व्यक्ति की कीर्ति फैलती है हर प्रकार का लाभ व्यक्ति को मिलता है जिस प्रकार आंखों में लगाए काजल को आंखें नहीं देख सकती उसके लिए दर्पण की आवश्यकता रहती है उसी प्रकार जीवन में साधु के सत्संग के बिना हरि की छवि को नहीं देखा जा सकता है, हरि का दीदार करने के लिए साधु का सत्संग जीवन में जरूरी है l रामस्नेही संप्रदाय के आधाचार्य श्री राम चरणजी महाराज ने अपनी वाणी ग्रंथ में सभी साधनों के ऊपर सत्संग को बताया है जो आनंद सत्संग में है वह आनंद व्यक्ति को कहीं पर भी नहीं मिल सकता है, सत्संग से जीवन के कुकर्मों का नाश होता है, भगवान का नाम जीवन में हमेशा प्रसन्नता प्रदान करता है l सत्संग एक बगीचा है जिस प्रकार एक सुंदर बगीचे को देखकर व्यक्ति आनंद अनुभव करता है उसी प्रकार सत्संग से व्यक्ति के अंतःकरण में आनंद प्राप्त होता है, सत्संग प्रत्येक व्यक्ति के लिए जीवन में आवश्यक है l सेवा, सुमरिन, सत्संग यह तीनों व्यक्ति के लिए जीवन में आवश्यक बताए गए हैं l व्यक्ति अमृत की चाह रखता है लेकिन अमृत ने तो चंद्रमा में है ना समुद्र में है ना सर्प लोक में है ना स्त्री के मुंह में है ना स्वर्ग में है वास्तव में यदि अमृत है तो वह भगवत भक्तों के कंठ में है जो व्यक्ति को राम नाम देकर व्यक्ति का लोक व परलोक दोनों सुधार देते है जिस प्रकार गंधी नाली का पानी भी अगर गंगा में मिल जाए तो वह गंगाजल बन जाता है उसी प्रकार व्यक्ति कितना ही अज्ञानी क्यों न हो अगर वह संतों का सत्संग करता है तो जीवन में उसको लाभ ही लाभ प्राप्त होता है अतः सत्संग के लाभ को कभी नहीं छोड़ना चाहिए l
कथा के दौरान सैकड़ो भक्तजन व संत श्री रमता राम जी भी मौजूद थे।
