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सीधा सवाल। चित्तौड़गढ़। जिले में संचालित किसानों के हित के उपक्रम चित्तौड़गढ़ प्रतापगढ़ डेयरी संयंत्र में लगातार भ्रष्टाचार कर ठेकेदारों को फायदा पहुंचाने का खेल खेला जा रहा है। इसमें स्थिति यह है कि सिर्फ ठेकेदारों को फायदा हो और उनके जरिए कुछ कार्मिक और अधिकारी चांदी कूट सके इसके लिए मनमर्जी की दरों के टेंडर किया जा रहे हैं। जिसमें ना तो संघ के हितों का ध्यान है और ना ही डेयरी के फायदे से कोई लेना देना है। हालात यह है कि डेयरी को जमकर होने वाले वाले नुकसान के बावजूद ऊंची दरों पर टेंडर किए गए। टेंडर करने के दौरान नियमों का कोई ध्यान रखा गया और ना ही आरसीडीएफ की गाइडलाइन की पालना हुई है। इससे साफ है कि मिली भगत करते हुए केवल निजी फायदे के लिए राजनीतिक शह पर भ्रष्टाचार और लूट का खसोट का खेल लागातार जारी है। वही लगातार मामले सामने आने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं होना इस बात का इशारा है कि सीधे-सीधे डेयरी में भ्रष्टाचार करते हुए घर भरने के निर्देश जारी किए गए हैं। पूरे मामले में एक और जहां सत्ता पक्ष के कथित किसान नेता जहां चुप्पी साथ कर बैठे हैं वहीं अब विपक्ष भी इस मामले में कुछ भी नहीं बोल रहा है। इससे लगने लगा है कि किसानों के फायदे से किसी को कोई लेना-देना नहीं है केवल किसान सबके लिए वोट के फायदे का सौदा है। जिसे समय-समय पर भुनाया जाता है।
यह है मामला
चित्तौड़गढ़ प्रतापगढ़ दुग्ध उत्पादक संघ द्वारा संचालित इस डेयरी संयंत्र में दूध के परिवहन के लिए टेंडर किए गए है। यहां से मध्य प्रदेश के विभिन्न मार्गों के साथ ही गुजरात में भी कथित रूप से दूध भेजने के टेंडर किए गए हैं। हालांकि सीधा सवाल के पास इस बात के पर्याप्त साक्ष्य है कि यह टेंडर केवल कागजी है। निर्धारित मार्गो पर कोई दूध नहीं जा रहा है। बल्कि सस्ता दूध देकर नियमों के विपरीत टेंडर करते हुए केवल ठेकेदारों के मोटे फायदे का खेल खेला जा रहा है जिसमें सभी का फायदा है। सीधा सवाल के पास उपलब्ध दस्तावेजों के अनुसार शिवपुरी प्रथम मार्ग के लिए ₹7 रुपये 98 पैसे प्रति लीटर की दर से टेंडर किया गया है। वहीं अन्य सभी मार्गों पर 6 रुपये 80 पैसे की दर से टेंडर किए गए हैं। यानी की ट्रांसपोर्टेशन का खर्चा न्यूनतम सात रुपए के आसपास हो रहा है। वही मध्य प्रदेश के शिवपुरी में दूध पहुंचाने के लिए लगभग आठ रूपए का खर्चा प्रति लीटर ट्रांसपोर्ट के लिए हो रहा है। जबकि आरसीडीएफ के नियमों के जानकारों की माने तो बूथ संचालक के कमीशन के प्रति लीटर ₹2 रुपये जोड़कर अधिकतम ₹6 में टेंडर किया जाता है। क्योंकि दूध पर अधिकतम आय के आधार पर भुगतान किया जाता है। यहां सीधे तौर पर शिवपुरी के लिए बनाए गए प्रथम मार्ग पर ₹10 सस्ता और अन्य मार्गों पर ₹8 रुपये 80 पैसे सस्ता दूध ठेकेदारों को मिल रहा है। जो सीधा-सीधा डेयरी के लिये नुकसान का सौदा है। लेकिन इसके बावजूद नुकसान के टेंडर का संचालन आखिर क्यों किया जा रहा है इसे आसानी से समझा जा सकता है। फिर भी सीधे-सीधे नुकसान के इस खेल को लेकर कोई कार्रवाई नहीं होना यह साफ तौर पर इंगित करता है की इस इकाई को किसानों के फायदे के लिए नहीं बल्कि ठेकेदारों और कुछ अधिकारियों के फायदे के लिए संचालित किया जा रहा है।
आरसीडीएफ भी बना मूकदर्शक
जानकारी की माने तो आरसीडीएफ पूरे राजस्थान में संघो द्वारा संचालित इन इकाइयों की नियंत्रित करने वाली संस्थान है। जो टेंडर और अनियमितता को लेकर कार्यवाही करती है। नियमों के जानकारों का कहना है कि दूध के भाव ऊपर नीचे होते हैं क्योंकि डेयरी किसानों से दूध लेकर उपभोक्ताओं तक पहुंचती है। परंतु फिर भी दिए जाने वाले कमिशन और ट्रांसपोर्टेशन को लेकर गाइडलाइन बनाई गई है जिसमें अधिकतम कमीशन के साथ 6 रुपए के खर्च किए जाने के प्रावधान है। लेकिन इसके बावजूद चित्तौड़गढ़ में हुए टेंडर इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि नियमों के विपरीत टेंडर करते हुए कमीशन के साथ 8 से ₹10 रुपए प्रति लीटर नुकसान हो रहा है। केवल स्कीम मिल्क में ₹5 का प्रावधान है लेकिन इसके बावजूद जमकर मनमर्जी करते हुए चांदी कूटने का खेल भ्रष्टाचार के रास्ते बदस्तूर जारी है।
अन्य उत्पादों में है कमाई
डेयरी उद्योग से जुड़े लोगों से जानकारी लेने पर सामने आया कि किसी भी इकाई को दूध उत्पादन और परिष्करण के रूप में मुनाफा कम होता है। वहीं इसके अन्य उत्पाद जिनमे दही छाछ घी पनीर और अन्य उत्पादन करने पर मुनाफा अधिक होता है। लेकिन चित्तौड़गढ़ प्रतापगढ़ दुग्ध उत्पादक संघ की इस इकाई में केवल दूध परिवहन के नाम पर खुली लूट मची हुई है। अन्य राज्यों में जाने वाले उत्पादों में बात की जाए तो चित्तौड़गढ़ डेयरी द्वारा केवल दूध ही भेजा जा रहा है, जो मुनाफे के स्थान पर घाटे का सौदा है। सूत्रों का कहना है कि वहां न तो कोई बूथ संचालित हो रहे हैं और ना ही यह दूध उपभोक्ताओं के पास जा रहा है। बल्कि इन्हीं लोगों ने कागजी बूथ बनाकर कमीशन ऐंठने के साथ ऊंची दरों पर टेंडर उठाए हैं। यह प्रक्रिया भ्रष्टाचार के साथ-साथ धोखाधड़ी की श्रेणी का भी अपराध है। वही सुनियोजित तरीके से षड्यंत्र करते हुए आर्थिक अपराध को भी अंजाम दिया जा रहा है।
.......श श श सब खामोश है!
इतने बड़े भ्रष्टाचार को लेकर किसानों के हित का दंभ भरने वाले पक्ष विपक्ष के सभी किसान नेता गूंगी का गुड़ खाकर बैठे हुए हैं। किसानों को लेकर सरकार को कोसने वाले विपक्ष के नेता भी इस पूरे मामले में चुप्पी साध कर बैठे हुए हैं। इससे लगने लगा है कि जिले में किसान केवल राजनीतिक उपयोग का माध्यम बन कर रह गए है। किसानों के हित से किसी को कोई लेना-देना नहीं है।
किसानों के उत्थान के संस्थान में भ्रष्टाचार का बोल-बाला
प्रदेश और केंद्र की सरकार लगातार किसानों के हित में कल्याणकारी योजनाओं का संचालन कर रही है। साथ ही दोनों सरकारों का बालिकाओं के लिए भी विशेष योजना केंद्रीकरण कार्यक्रम भी चल रहा है। दुग्ध उत्पादक संघ के माध्यम से सरकार की इन योजनाओं को बल मिलता है जहां किसान कल्याण बालिका शिक्षा और जीवन बीमा जैसी योजनाओं का फायदा मिलता है। बीएमसी के माध्यम से किसान डेयरी से जुड़ता है इन किसानों को बेटी के जन्म, विवाह, आकस्मिक दुर्घटना, परिवार के सदस्यों का जीवन बीमा, पशुधन का बीमा, बोर्ड परीक्षाओं में किसानों के बच्चों के उत्कृष्ट प्रदर्शन पर प्रोत्साहन राशि जैसी योजनाएं संचालित की जाती है। और त्वरित रूप से किसानों को इसका फायदा भी मिलता है। वहीं केंद्र और राज्य की सरकार भी किसान कल्याण के लिए लगातार योजनाएं बना रही है और उनको धरातल पर लागू किया जा रहा है। ऐसी स्थिति में केंद्र और राज्य सरकार की मंशा और किसानों के सीधे फायदे की इस इकाई में भ्रष्टाचार का यह खेल दोनों सरकारों की मंशा को धूमिल करने का कुत्सित प्रयास है। केवल कतिपय लोगों के फायदे के लिए दो जिलों के किसानों के उत्थान कार्यक्रम को पलीता लगाने का काम किया जा रहा है।