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सीधा सवाल। चित्तौड़गढ़। संत, वृक्ष, नदी , पहाड़, धरती यह सब अपना जीवन परोपकार हेतु जीते हैं l राम चरित्र मानस में तुलसीदास जी लिखते हैं 'पर हित सरिस् धर्म नहीं भाई l पर पीड़ा सम नहीं अधमाई ' इसका अर्थ है कि दूसरों की भलाई के समान कोई धर्म नहीं है और किसी को दुख पहुंचाने से बढ़कर कोई दूसरा अधर्म नहीं है l दिग्विजय राम जी ने कहा कि जीवन में सतगुरु एक पंखे के समान है जिस प्रकार पंखे की हवा में बैठकर व्यक्ति आनंद अनुभव करता है उसी प्रकार सद्गुरु अपने पर आश्रित साधक को आनंद प्रदान करते हैं l जिस प्रकार एक माली खेत तैयार कर उसमें बीज बोता है और बीज उग कर पौधा बन जाता है तो माली का काम है कि समय-समय पर उसमें खाद पानी देता रहे जिससे वह पौधा बड़ा हो जाए, इसी प्रकार व्यक्ति के जीवन में सद्गुरु साधक को भक्ति का बीज मंत्र देते हैं और भक्त के हृदय में अपने वचनों उसके हृदय को पवित्र करते हैं ताकि उसमें भक्ति रूपी बीज अंकुरित हो सके, सद्गुरु बीज मंत्र देने से पूर्व साधक की पात्रता की जांच करते हैं तभी वह साधक को अपना शिष्य बनाते हैं l राम चरित्र मानस में तुलसीदास जी ने लिखा है' उमा कहूं मैं अनुभव अपना सत हरि भजनु जगत सब सपना इसका अर्थ है , है उमा (पार्वती) में अपने अनुभव से कहता हूं कि सत्य तो हरि का भजन ही है और बाकी यह संसार सब एक सपने के समान है l जिस प्रकार व्यक्ति की अंजलि में से जल धीरे धीरे खाली हो जाता है उसी प्रकार व्यक्ति का पूरा जीवन कब बीत जाता है व्यक्ति को मालूम ही नहीं पड़ता l ज्ञान भी पात्र व्यक्ति को देना चाहिए अपात्र व्यक्ति को ज्ञान देकर अपना ही नुकसान होता है जिस प्रकार संन्यास लेने से पूर्व दीक्षा लेने वाले की पात्रता देख कर ही सतगुरु उसको गुरु मंत्र देते हैं और यही मंत्र उसको भक्ति की ओर अग्रसर करता है l नास्तिक व नुगरा व्यक्ति ने तो भक्ति करता है और नहीं करने देता देता है अतः नास्तिक या नुगरे व्यक्ति की संगत व्यक्ति को नहीं करना चाहिए क्योंकि नुगरे व्यक्ति का उद्देश्य केवल खाओ पियो मौज करो होता है ठीक इसके विपरीत सत्संगी कहता है कि यह जीवन बार बार नहीं मिलता है अतः अच्छे सत्कर्म करें तथा जीवन को सफल बनाये l जीवन में कुसंगत से बचना चाहिए व माया के प्रभाव में नहीं आना चाहिए व्यक्ति का संकल्प हमेशा कठोर होना चाहिए तथा ध्यान रहे कि संकल्प पर माया का प्रभाव नहीं पड़े l व्यक्ति को धर्म करते हुए माया की गोद में ने बैठकर ईश्वर की गोद में बैठने का प्रयास करना चाहिए l भक्त भगवान के पीछे भागता है और माया भक्त के पीछे भागती है यह माया केवल एक मर्ग तृष्णा है l जीवन में माया रुपी बकरी से अपने भक्ति रूपी पौधे को बचाकर रखें l
