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सीधा सवाल। चित्तौड़गढ़। सत विचारों की बाड़ लगाएंगे तो भक्ति रूपी पौधा बढ़ेगा और पौधा सुरक्षित रहेगा मानव जीवन की नश्वरता सामने दिखती है , मानव जीवन कई योनियों में भटकने के बाद दुर्लभता से मिलता है गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामायण में लिखा है 'बड़े भाग मानुष तन पावा सूर दुर्लभ सब ग्रंथ ही गावा' अर्थात यह मनुष्य का शरीर बड़े भाग्य से प्राप्त होता है यह शरीर देवताओं को भी दुर्लभ है और यह मोक्ष प्राप्ति का साधन माना है सभी ग्रंथो का यही सार है अपने आराध्या का भजन व सुमरीन करके इस मानव जीवन को सफल करना चाहिए हर जीव को डर इस बात का होना चाहिए कि वापस 84 लाख योनियों में भटकना नहीं पड़े उसके लिए उसको भगवत भजन व चिंतन जीवन में करना चाहिए l भगवान का सबसे बड़ा उपहार यह अनमोल देह है लेकिन फिर भी मानव संतुष्ट नहीं होता है राम नाम लेने से यह जीवन सफल हो जाता है l सीदधा एवं साधना दोनों अवस्था में सत्संग आवश्यक है मानस के उत्तराखंड में तुलसीदास जी ने लिखा है- बार-बार बर मांगूउ हरषि देहू श्रीरंग l पद सरोज अनपायनी भगति सदा सत्संग अर्थात भगवान शिव राम से कहते हैं प्रभु में आपसे बार-बार यही वरदान मांगता हूं कि मुझे आपके चरण कमल की अचल भक्ति और आपके भक्तों का सत्संग सदा प्राप्त हो , है लक्ष्मीपति हर्षित होकर मुझे यह वरदान दीजिए l राजा भर्तृहरि जब वनवास जाने पूर्व अपनी माता से मिलने गए तो माता ने कहा चार बातों का ध्यान रखना -- किले में रहना दूसरा अमृत भोजन करना तीसरा फूलों की सेज पर सोना और चौथा उदर साधना इन चारों बातों का अर्थ इस प्रकार है ---- किले में रहने का अर्थ संतों का सानिध्य करना , कुसंगत में नहीं रहना , अमृत भोजन से तात्पर्य था जब बहुत भूख लगे तब भगवत कृपा से जो प्राप्त हो जाए उसको सहर्ष ग्रहण करना फूलों की सेज पर सोने का तात्पर्य था जब बहुत निंद्रा आए और शरीर थक जाए तब सोने की सोचना अर्थात पुरुषार्थ एवं भजन करना, उदर साधना से तात्पर्य उदर को भक्ति रूपी जल से साफ करना चाहिए l नाभा जी महाराज ने भक्त माल ग्रंथ में बहुत कम शब्दों में भक्तों के चरित्र का वर्णन किया है यही भक्तमाल का स्वरूप है। 13 अगस्त 25 से 21 अगस्त 25 तक श्री संत श्री दिग्विजय राम जी महाराज के मुखारविंद से श्री राम कथा का रसपान कराया जाएगा।
