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सीधा सवाल। चित्तौड़गढ। पूरे भारतवर्ष ने स्वतंत्रता के 79 वर्ष पूरे होने पर जहां राष्ट्रीय पर्व धूमधाम से मनाया, वहीं संत निरंकारी मिशन ने इसे मुक्ति पर्व के रूप में आत्मिक स्वतंत्रता और भक्ति का संदेश देते हुए श्रद्धा व समर्पण के साथ मनाया।
दिल्ली स्थित निरंकारी ग्राउंड नं. 8, बुराड़ी रोड पर आयोजित इस भव्य समागम की अध्यक्षता निरंकारी राजपिता रमित ने की। दिल्ली और एनसीआर से हज़ारों श्रद्धालुओं ने शामिल होकर उन संत विभूतियों को श्रद्धांजलि अर्पित की, जिन्होंने अपना जीवन मानवता की सेवा और ब्रह्मज्ञान के प्रचार में समर्पित कर दिया।
मीडिया सहायक सागर सोलंकी ने बताया कि चित्तौड़गढ़ ब्रांच में भी मुखी महात्मा धीरज पारेता की उपस्थिति में सत्संग हुआ। सत्संग संचालन महक जैनानी ने किया। इस दौरान ब्रह्मलीन महात्माओं को याद किया गया और उनके जीवन से प्रेरणा लेने का संदेश दिया गया।
राजपिता रमित ने अपने प्रवचनों में कहा कि जैसे देश का झंडा और देशभक्ति गीत आज़ादी के प्रतीक हैं, वैसे ही भक्त का जीवन सेवा, समर्पण और भक्ति की सुगंध से महकता है। उन्होंने कहा कि सद्गुरु का दिया ब्रह्मज्ञान ही असली स्वतंत्रता है, जो हमें अहंकार और ‘मैं’ की जकड़न से मुक्त करता है।
इस अवसर पर श्रद्धालुओं ने शहनशाह बाबा अवतार सिंह, जगत माता बुद्धवंती, राजमाता कुलवंत कौर, माता सविंदर हरदेव, भाई साहब लाभ सिंह सहित अनेक संत विभूतियों को स्मरण कर उनके तप, त्याग और सेवा से प्रेरणा ग्रहण की।
इतिहास की दृष्टि से यह पर्व 15 अगस्त 1964 को जगत माता बुद्धवंती की स्मृति में शुरू हुआ था। बाद में 1970 से इसे ‘जगत माता-शहनशाह दिवस’ कहा जाने लगा और 1979 में प्रथम प्रधान भाई साहब लाभ सिंह के ब्रह्मलीन होने के बाद इसे ‘मुक्ति पर्व’ का नाम मिला। 2018 से माता सविंदर हरदेव को भी इस दिन श्रद्धा सुमन अर्पित किए जाते हैं।