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सीधा सवाल। चित्तौड़गढ़। सारा संसार आज आनंद की खोज में है , व्यक्ति धन से मजा ले सकता है लेकिन आनंद नहीं, मजा कभी-कभी सजा में भी बदल जाता है और आनंद सदा स्थाई होता है l भगवान आनंद के सागर हैं और सागर से आप कितना प्राप्त कर सकते हैं यह आप स्वयं पर निर्भर करता है l निर्गुण राम सगुण रूप धारण कर इस धरा पर अवतार लेकर आए थे l व्यक्ति जैसा सोचता है वैसा ही लौट कर वापस उसके पास आता है l हमारी परंपरा सदा प्रणाम या राम-राम करने की रहीं हैं लेकिन इस पाश्चात्य शिक्षा ने हमारी सनातन संस्कृति को समाप्त कर दिया यदि हम अपने बच्चों को संस्कार देंगे तो यह सनातन संस्कृति जिंदा रहेगी और हमारे बच्चों में संस्कार आएंगे l राम नाम की साधना मिलने पर व्यक्ति का जीवन सफल हो जाता है यदि जीवन में अनुकूलता है तो यह राम कृपा मानकर स्वीकार करना चाहिए और यदि प्रतिकूलता आती है तो प्रभु इच्छा मानकर इसको स्वीकार करो l प्रभु श्री राम पर ब्रह्म है जो इस सारी सृष्टि का संचालन करते हैं l भजन करने की कोई उम्र नहीं होती जब तक व्यक्ति के हाथ पांव चलते हैं यानी युवा अवस्था में व्यक्ति को भजन व देव दर्शन कर लेना चाहिए, राम शब्द सारे संसार को चलाता है केवल प्रणाम करने से विद्या, आयु, यश व कीर्ति बढ़ जाती है आज हर परिवार में धुंधकारी पैदा हो रहे हैं क्योंकि बच्चों को हमने चरण छूने की शिक्षा नहीं दी l भारतीय सनातन का एक-एक कार्य विज्ञान की कसौटी पर खरा उतरता है जैसे शिखा रखना,तिलक करना ,यज्ञोपवित धारण करना आदि इन सब का वैज्ञानिक महत्व है l संत दिग्विजय राम जी ने राम कथा के दौरान कहा कि आज परिवार में हर बच्चा हर बात पर अपने माता-पिता से तर्क वितर्क करता है और बच्चा अपने माता-पिता की सिख को दरकिनार करता रहता है यदि समाज में यही कर्म चला रहा तो हमारे समाज का स्तर कहां तक गिरेगा हम सोच भी नहीं सकते हैं इसलिए बच्चों को संस्कारवान बनाओ ताकि हमारी संस्कृति जिंदा रह सके घर में माता-पिता गुरु का सम्मान हो सके रामचरितमानस व्यक्ति में संस्कारों का बिजा रोपण करती है l संसार के सारे दरवाजे जब बंद हो जाते हैं तो परमात्मा का दरवाजा व्यक्ति के लिए खुल जाता है संसार व्यक्ति के अवगुण देखता है लेकिन भगवान व्यक्ति के अवगुण नहीं देख केवल भाव देखते हैं l भगवान ने मिट्टी में है ना पत्थर में है ना लकड़ी में प्रभु केवल भक्त के भाव में निवास करते हैं भाव की ही प्रधानता है l संत चमत्कार को तराजू पर नहीं तोलना चाहिए जीवन में संत चमत्कार नहीं बताते हैं बल्कि उनका जीवन ही चमत्कार है l गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में लिखा है प्रातः काल उठी के रघुनाथा l मातू पिता गुरु नावही माथा ll अर्थात सुबह उठकर रघुनाथ प्रभु श्री राम अपने माता-पिता और गुरु को प्रणाम करते हैं यह है. हमारे सनातन धर्म की परंपरा है l
आज भगवान श्री कृष्ण का जन्मों उत्सव बड़ी धूमधाम के साथ मनाया गया
आज ब्रह्मलीन परम पूज्य गुरुदेव भगत राम जी की पुण्यतिथि पर समाधि पूजन का किया गया संत संत रमता राम जी एवं संत दिग्विजय राम जी द्वारा समाधि पूजन कर आरती की गई l रामद्वारा में हजारों की संख्या में भक्तजन राम कथा का आनंद ले रहे हैं I