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सीधा सवाल। चित्तौड़गढ़। कथा प्रसंग में हनुमान जी का चारु चरित्र भक्तों को संत दिग्विजय राम जी द्वारा कराया गया संत कहते हैं कि व्यक्ति को हमेशा निस्वार्थ भाव से सेवा करना चाहिए l हनुमान जी ने अपने जीवन के प्रत्येक कार्य में प्रभु श्री राम के नाम का आसरा लिया है l जीवन में सेवा एवं दान इस संसार को दिखा कर नहीं करना चाहिए दान ऐसा हो कि एक हाथ से करें तो दूसरे हाथ को मालूम नहीं पड़े l मनुष्य को हमेशा निस्वार्थ भाव से सेवा करना चाहिए लेकिन आज संसार में बिल्कुल उल्टा हो रहा है सेवा करने के बजाय फोटो संस्कृति आ गई है I मनुष्य सेवा भाव से सेवा नहीं करता है केवल वह अपनी ख्याति चाहता है l प्रभु कब किससे कैसा कार्य करा लेते हैं इसकी कल्पना हम नहीं कर सकते हैं संसार में सब कार्य प्रभु की इच्छा से होता है l हनुमान जी ने हमेशा अपने द्वारा किए गए कार्यो को प्रभु को समर्पित किया है स्वयं हनुमान जी कहते हैं कि ना मे श्रेष्ठ हूं ना में बलवान हूं मैं तो केवल प्रभु चरणों का दास हूं I व्यक्ति को अपने भक्ति का अहंकार कभी नहीं करना चाहिए क्योंकि अहंकार आने से भक्ति चली जाती है l समय आने पर ईश्वर अपने भक्तों का अहंकार हृदय से समाप्त कर देते हैं l हनुमान जी आज भी इस पृथ्वी पर चिरंजीवी है इस पृथ्वी जागृत देव हैं l
भक्तमाल ग्रंथ का श्रवण रमता राम जी के सानिध्य में भक्तों को श्रवण कराया जा रहा है
भक्तमाल में हनुमान जी के चारु चरित्र का प्रसंग सुनाया गया।