views
सीधा सवाल। चित्तौड़गढ़। दिगंबर जैन समाज के दसलक्षण पर्व का आठवां दिवस उत्तम त्याग धर्म के रूप में मनाया गया। इस अवसर पर दमोह से पधारे पंडित सुरेशचंद्र शास्त्री ने प्रवचन देते हुए कहा कि त्याग धर्म जीवन की बहुमूल्य निधि है। त्याग का अर्थ है त्यागना, छोड़ना और देना। उन्होंने बताया कि दान संतो के आहार, औषधि आदि के लिए किया जाता है, जिससे उनके ज्ञान, दर्शन और चरित्र की वृद्धि होती है।
शास्त्री ने कहा कि गृहस्थ जीवन चलाने के लिए धनार्जन आवश्यक है, लेकिन उसमें पाप की उत्पत्ति होती है। उस पाप का नाश करने का श्रेष्ठ साधन दान है। जैसे रक्त से सने वस्त्र को जल से शुद्ध किया जाता है, वैसे ही धनार्जन के पाप से मुक्त होने के लिए पात्रों को दान देना चाहिए। जो धन का संग्रह करते हैं, वे संसार में अयश के भागी बनते हैं, जबकि दान देने वाले लोग यशस्वी होते हैं और उनका नाम वर्षों तक गाया जाता है।
उन्होंने कहा कि दान अपनी वस्तु का देना चाहिए। तत्वार्थ सूत्र में भी दान के महत्व का उल्लेख है। दान चार संघों को चार प्रकार से करने पर अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। अंत में उन्होंने कहा कि लक्ष्मी का सदुपयोग हमेशा हर्षपूर्वक दान देकर करना चाहिए।
सकल दिगंबर जैन समाज के महामंत्री डॉ. ज्ञानसागर जैन ने बताया कि इस पर्व में श्रावक तपस्या के भाव बनाकर अपने कर्मों की निर्जरा कर रहे हैं। इसी क्रम में श्रीमती आशा अजमेरा की निरंतर तपस्या जारी है, जिसकी समाज के सभी लोग अनुमोदना कर रहे हैं।
उन्होंने बताया कि श्री 1008 मल्लीनाथ दिगंबर जैन किला मंदिर, श्री 1008 आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर ढुचा बाजार, श्री 1008 सुपार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर शास्त्री नगर, श्री 1008 पार्श्वनाथ दिगंबर जैन चैत्यालय कुंभानगर और नवनिर्मित श्री 1008 आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर मधुबन सहित सभी मंदिरों में दसलक्षण पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। यहां प्रतिदिन अभिषेक, शांति धारा, देवशास्त्र पूजा, सोलह कारण पूजा, पंचमेरु पूजा, दशलक्षण विधान, संध्याकालीन आरती, प्रवचन, धार्मिक प्रतियोगिताएं आदि धार्मिक आयोजन हो रहे हैं।