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पर्यावरण संरक्षण- चिंता, चुनौती एवं उपाय
भावेश बम्ब "अंश"
बचपन के समय दादी ने एक प्रेरक प्रसंग बताया था कि एक बार महात्मा गांधी जी ने दातुन के लिए नीम की डाली का एक टुकड़ा मंगवाया लेकिन किसी व्यक्ति ने नीम की पूरी डाली तोड़कर गांधीजी को लाकर दे दी। तो गांधीजी ने उनसे डांटते हुए कहा, "जब एक छोटे से टुकड़े से मेरा काम चल सकता था तो तुमने पूरी डाली क्यों तोड़ी? न जाने यह कितने व्यक्तियों के काम आ सकती थी।" यही पर्यावरण संरक्षण एवं प्रबंधन का मुख्य स्रोत है कि प्रकृति से हमे उतना ही लेना चाहिए, जितने से हमारी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके। साथ ही ये प्रसंग प्रकृति के प्रति हमारी भावना एवं संस्कृति को दर्शाती है।
हमारी संस्कृति में प्रकृति, जल, जंगल, जमीन का हमेशा से उच्च स्थान रहा है। हमारे घर के आंगन में तुलसी के पूज्यनीय पौधे से लेकर घर के बाहर घने वृक्षो तक को नित्य पानी देना एवं उनकी पूजा हमारी संस्कृति का अंग रहा है। पर्यावरण के संरक्षण हेतु हमारी ऐसी कई परम्पराए भी है जिनसे वृक्ष की पूजा को प्रोत्साहन मिलता है। तमिल रामायण के अनुसार यही कोई मनुष्य अपने जीवनकाल में 10 आम के वृक्ष लगा देता है तो उसे निश्चित रूप से स्वर्ग की प्राप्ति होती है। अन्य मान्यताओं के अनुसार पीपल, अशोक, आंवला आदि के वृक्षो को पानी देने से सभी कष्टों का निवारण होता है। संरक्षण को धर्म एवं परंपराओं के साथ जोड़ देने के फलस्वरूप पीपल, अशोक, वटवृक्ष, आम, नीम आदि के कई वृक्ष बाध्यता स्वरूप सुरक्षित रह गए है।
किंतु अफसोस कि आधुनिकता, विलासिता, महत्वाकांक्षा एवं कथित विकास के स्वार्थ में हम अपने धर्म एवं हमारी परंपराओं से विमुख हो चुके है। हम आधुनिकता एवं कथित विकास के नाम पर अंधाधुंध पेड़ो की कटाई का काम कर रहे है। तो पुनः उस अनुपात ने वृक्षारोपण का कार्य नही हो पा रहा। विलासिता में एसी व रेफ्रिजरेटर से निकलने वाली हानिकारक गैसें हो या बिना कारण ही चलने वाली गाड़ियों से होने वाला पर्यावरण प्रदूषण हो। ऐसे सैकड़ो कारणों से हम पर्यावरणीय रूप से लगातार क्षीण होते जा रहे है। यही कारण है कि भारत समेत समूचा विश्व पर्यावरणीय एवं जलवायु असंतुलन, प्रदूषण, आपदाएं एवं तापमान वृद्धि जैसी कई समस्याओं से झूझ रहा है। दिन-प्रति-दिन बढ़ रहे पर्यावरण प्रदूषण के कारण पर्यावरण संरक्षण विश्व में सभी के लिए चिंता और चुनौती का विषय बन गया है, चाहे वह आम आदमी हो, उद्योगपति हो, गैर सरकारी संगठन हो, पर्यावरणविद् हो या सरकार हो। पृथ्वी पर मानव जीवन और जैवविविधता को बचाने और सुरक्षित करने हेतु पर्यावरण को सुधारने एवं उसका संरक्षण करने के लिए पूरे जोर-शोर से विश्व स्तर पर प्रयास किये जा रहे हैं परन्तु अभी तक कोई ठोस परिणाम नहीं मिल पायें हैं।
वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, मृदा प्रदूषण के साथ-साथ पिछले 50-60 वर्षों में पृथ्वी का तापमान भी 0.8 से 1.0 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि बढ़ती हुई ग्लोबलवार्मिंग को रोकने के लिए कारगर कदम नहीं उठाया गया तो प्रति दशक 2.0 डिग्री सेल्सियस तक तापमान बढ़ेगा। बढ़ते तापमान को रोकने के लिए विश्व के सभी देशों को ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए दृढ़ संकल्पित होना पड़ेगा तभी पृथ्वी के बढ़ते तापमान के खतरे को 50 से 85 प्रतिशत तक कम करना संभव हो पायेगा। विश्व स्तर पर बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के अन्तर्गत वर्ष 1972 में 5 जून का विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में गठन सबसे सकारात्मक प्रयास है जो विश्व स्तर पर पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ाने तथा ध्यानाकर्षण के लिए किया गया तथा वर्ष 1973 से प्रतिवर्ष 5 जून को पूरे विश्व में मनाया जाता है। विश्व पर्यावरण दिवस के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम, पर्यावरण संबंधी मुद्दों को चिन्हित करने तथा सतत् एवं एक समान विकास के लिए प्रत्येक व्यक्ति को न केवल उसकी जिम्मेदारी से अवगत कराता है बल्कि उसकी सामर्थ्य को भी अनुभव कराने में सक्षम है।
इसके साथ ही, हम सभी नागरिकों को अब व्यक्तिगत रूप से भी पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में आगे आना होगा। समझदारी इसी में है कि समय रहते चेता जाए। हम अपने आस-पास को भी देखे एवं पर्यावरण को प्रदूषण होने से बचाए। साथ ही साथ अधिकाधिक वृक्ष लगाए। वृक्षारोपण और उनकी देखरेख पर्यावरण और पृथ्वी बचाने का सबसे सस्ता, सुलभ और त्वरित उपाय है। हमें यह भी समझने की आवश्यकता है कि मनुष्य को पर्यावरण की रक्षा के लिए अपनी विकासात्मक गतिविधियों को रोकना जरूरी नही है, किंतु इतना ज़रूर है कि हमें पर्यावरण की क़ीमत पर विकास नही चाहिए क्योंकि विकास से अभिप्राय समग्र विकास होता है, केवल आर्थिक उन्नति नही। हम सभी को ये भी ध्यान रहे की ये पेड़-पौधें, नदिया, तालाब, वन, वन्य-जीव जो हमारी पिछली पीढ़ियों ने हम तक सुरक्षित पहुँचाया है। अतः हमारा भी दायित्व है की हम इनकी रक्षा कर के आने वाली पीढ़ी के लिए सुरक्षित करे। आज ही हमें ये प्रण भी लेना होगा की अपने जीवन काल में कम से कम 25 वृक्ष लगा कर उन्हें बड़ा करना है। हमें अपने जन्मदिवस पर या हर उत्सव के दिन एक-एक पौधा लगा कर उसे बड़े करने की ज़िम्मेदारी उठानी होगी। इसी से हमारा पर्यावरण सुंदर व संतुलित बनेगा और पृथ्वी दिवस मनाने का मूल लक्ष्य भी प्राप्त होगा।