views

सीधा सवाल। चित्तौड़गढ़। श्री साधुमार्गी जैन श्रावक संघ, चित्तौड़गढ़ की ओर से स्थानीय सेंती स्थित अरिहंत भवन में आयोजित धर्मसभा में महासती विद्यावती ने कहा कि क्रोध एक खतरनाक जहर है, जो जन्म–जन्मान्तर तक पीछा नहीं छोड़ता। क्रोध भव को बढ़ाता है, इसलिए क्रोध के समय संयम और मौन धारण करना चाहिए। सहनशीलता और सहिष्णुता का भाव रखने से जीवन में समता आती है।
महासती ने स्वाति नक्षत्र की बरसात का उदाहरण देते हुए कहा कि जिस प्रकार सीप में गिरी बूंद मोती बन जाती है और वही बूंद सर्प के मुख में जाकर जहर बन जाती है, ठीक वैसे ही शुद्ध भाव से किया गया दान महान फल देता है। दान, तप, शील और भावना का जीवन पर गहरा प्रभाव होता है। उन्होंने कहा कि गुप्त और करुणाभाव से किया गया दान सर्वोत्तम होता है।
धर्मसभा को संबोधित करते हुए महासती नमनश्री ने कहा कि स्वप्रेरणा से धर्मकार्य में जुड़े रहना ही श्रेष्ठ है। उत्साह से जीना और उत्साह बढ़ाना जीवन की सबसे बड़ी पूंजी है।
महासती मर्यादाश्री ने आचार्य शिवलाल जी म.सा. के जीवन को संयम और तप का अनुपम उदाहरण बताया। उन्होंने कहा कि तपस्या से मन के विकार शांत होते हैं और इच्छाओं पर नियंत्रण संभव होता है।
धर्मसभा में एकासन, आयंबिल, उपवास और दयाव्रत आदि के प्रत्याख्यान हुए। संचालन विमल कोठारी ने किया। इस अवसर पर महासती पुष्पलता जी सहित ठाणा-4 शास्त्रीनगर में विराजमान रही।