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सीधा सवाल। चित्तौड़गढ़। महापुरुषों का सत्संग मिलना भी व्यक्ति के अच्छे कर्मों का ही फल है संसार में हर व्यक्ति को समय बराबर ही मिलता है। क्योंकि दिन-रात मिलाकर 24 घंटे ही होते हैं। लेकिन समय की समझ होना जरूरी है यदि समय की समझ नहीं होगी तो जीवन व बुद्धि बिगड़ जाती है यह जीवन मनुष्य को बार-बार नहीं मिलता है कितनी ही योनियों में भटकने के बाद यह मानव देह व्यक्ति को मिलती है l व्यक्ति को भगवत प्राप्त की चाहत होना चाहिए भगवत मिलने की इच्छा ही व्यक्ति को एक दिन ईश्वर से मिला देती है l व्यक्ति को लालसा संसार की न कर, संसार बनाने वाले की करना चाहिए यही चाह भगवत को प्राप्त कराती है जिससे व्यक्ति का लोक व परलोक दोनों सुधर जाता है l भक्ति भगवान को प्रिय है l राम स्नेही संप्रदाय के अाधाचार्य श्री रामचरण जी महाराज ने अपने वाणी ग्रंथ में कहा है कि भक्ति सरल नहीं होनी चाहिए भक्ति जितनी कठोर होगी फल उतना ही अच्छा मिलता है अतः व्यक्ति को स्वभाव सरल रखना चाहिए और भक्ति कठोर होनी चाहिए l व्यक्ति की चतुरता से यह संसार रीज सकता है परंतु भगवान नहीं l तुलसीदास जी ने कहा है की "कह रघुपति सुनु भामिनि बाता l मानउ एक भक्ति कर नाता l l अर्थात भगवान रघुनाथ जी शबरी से कहते हैं भामिनि में तो केवल एक भक्ति का ही संबंध मानता हूं मेरे लिए जाति-पाति कुल धर्म यह सब घोण विषय है एक भक्ति का ही संबंध मेरे लिए सबसे ऊपर है l भगवान कुल , विद्या, रूप, धन, चतुराई से नहीं मिलते हैं, क्या था सुदामा के पास कौन सा धन था केवल एक ईश्वर के प्रति सच्चा भाव था l ईश्वर हमेशा सच्चा प्रेम ही देखते हैं ईश्वर को केवल भक्ति ही प्रिय है, जो भगवान की भक्ति करता है उसको भगवान दर्शन देते हैं l कथा में जब व्यक्ति भाव विभोर होकर नाचता है तो व्यक्ति शरीर नहीं नाचता व्यक्ति का अंतःकरण नाचता है l प्रभु से हमेशा संसार की तुच्छ वस्तुएं ने मांग कर ईश्वर के चरणों की भक्ति मांगना चाहिए l श्री रामचरण जी महाराज ने कहा था कि--- हे ईश्वर मुझको स्वर्ग लोक का सुख नहीं चाहिए केवल आपके चरणों की भक्ति चाहिए यदि मेरा पुन: जन्म हो तो आपके चरणों की भक्ति ही देना, रिद्धि सिद्धि और लक्ष्मी की कामना मेरे को नहीं है यदि देना है तो आप हर जन्म में मुझे अपने चरणों की सेवा भक्ति देना l

