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सीधा सवाल। छोटीसादड़ी। यौवनता पर आई अफीम की फसल का रविवार व गुरुवार से किसानों ने शुभ मुहूर्त में धार्मिक विधि विधान से मां काली की विशेष पूजा अर्चना के साथ अफीम की फसल के डोडे की लुवाई-चिराई का कार्य शुरू कर दिया। किसानों का मानना है कि फसल पकने पर पौधे पर लगने वाले डोडे में दूध की अच्छी आवक व सुख समृद्धि की मनोकामना से शुभ मुहूर्त में मां कालिका की पूजा अर्चना कर लूवाई-चिराई की परंपरा है। इसे स्थानीय भाषा में (नाणा) भी कहते हैं। सुबह किसान अपने घरों से पूजा-अर्चना का सामान लेकर खेतों में पहुंचे। वहां शुभ-दिशाओं में फसल की क्यारे की पाल पर नवदुर्गा अर्थात नो प्रतिमाओं की स्थापना की तथा रोली बांधकर घी और तेल का दीपक जलाकर और अगरबत्ती लगाकर मां काली की पूजा अर्चना नारियल चढ़ाया। उसके बाद पांच अफीम के पौधों पर लच्छा अर्थात रौली बांधकर पर डोडो पर चीरा लगाकर मां काली से अच्छी पैदावार होने की मन्नत मांगी।अंत में प्रसाद वितरित किया गया। किसानों ने बताया कि नाणा करने से पूर्व मां कालिका की पूजा अर्चना की परंपरा लंबे समय से चली आ रही है। अफीम के डोडे दिन के समय (नक्का) यानी विशेष प्रकार की ओजार से चिरई करते हैं। उसके बाद अगले दिन सुबह माताजी को अगरबत्ती लगाने के बाद छरपलो से अफीम का दूध एकत्रित किया जाता है। लुवाई चिराई खत्म होने के बाद सुखे डोडो से पोस्त दाना निकाला जाता है।

जोड़े से करते हैं पूजा अर्चना

अफीम लुवाई चिरई से पूर्व मां काली का पूजन जोड़े से किया जाता है। पूजा अर्चना के दौरान पूरा परिवार मौजूद रहता है। पूजन में धूप बत्ती (अगरबत्ती), कपूर, केसर, पन्ना, कुंकु, चावल, अबीर, गुलाल, रुई, रोली, सिंदूर, सुपारी, पान के पत्ते, पुष्पमाला आदि का उपयोग किया जाता है।

कई गांवों में शुरू हुआ लुवाई-चिराई का काम

अफीम की खेती करने वाले चोहानखेड़ा गांव के किसान प्रेमचंद जणवा ने बताया कि रविवार व गुरुवार के बाद अगले रविवार को भी कई गांवों में किसानों ने अपने खेतों में यौवन पर आई अफीम की फसल में विधि विधान के साथ लुवाई-चिराई का कार्य शुरू किया है।

पशु पक्षी व मवेशियों से बचाव के किसानों ने किये पुख़्ता प्रबंध

अफीम किसानों ने फसल को पशु पक्षी, मवेशियों एवं अनजान लोगों से बचाने के लिए अफीम प्लाट के चारों ओर लोहे की जाली के तालाबंदी तथा ऊपर पक्षियों से बचने के लिए विशेष प्रकार की जालियां लगा रखी है एवं अफीम पौधा इधर-उधर या टूटकर ना गिरे उसके लिए भी क्यारीयों में भी जालियां बिछा रखी है। वही इस वर्ष मौसम ठंडा रहने से अफीम फसल में अभी तक कोई रोग का प्रकोप नहीं हुआ है, इधर किसानों ने समय-समय पर काली मस्सी एवं अन्य दवाइयां का छिड़काव करने से अफीम फसल तंदुरुस्त खड़ी है। पूर्णिमा के बाद मौसम परिवर्तन होने से गर्मी का एहसास होने लगा है जिससे किसानों ने अफीम फसल पर सफेद मस्सी के प्रकोप से बचाने के लिए दवाइयां का स्प्रे जारी कर रखा है।

किसानों ने अफीम प्लाट के समक्ष डाला डेरा

अफीम फसल परिपक्व होकर लुवाई चिरई का कार्य प्रारंभ हो चुका है इस दौरान किसानों द्वारा अफीम प्लाट के समक्ष ही रहने, खाने, पीने की सारी सुविधाएं उपलब्ध होकर दिन रात लगे हुए हैं। इन दोनों गर्मी बढ़ने से अफीम सिंचाई के लिए पानी की कमी भी किसानों को सता रही है।

गर्मी से किसानों में चिंता

इन दिनों गर्मी बढ़ने से किसानों में चिंता की लकीरें साफ दिखाई देने लगी है। अफीम फसल के लिए 26 डिग्री सेल्सियस तापमान रहना चाहिए लेकिन तापमान में अचानक बढ़ोतरी होने से फसल में नुकसान होने लगा है। गर्मी लगातार बढ़ती रही तो अफीम डोडे बड़े नहीं हो पाएंगे जिससे पैदावार प्रभावित होगी।





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