views

सीधा सवाल। चित्तौड़गढ़। रामद्वारा चित्तौड़गढ़ में चल रहे रमताराम जी महाराज के शिष्य संत दिग्विजय राम महाराज द्वारा चातुर्मास में चल रहे भक्तमाल ग्रंथ के अन्तर्गत नाभादास महाराज ने पहले भगवान के चौबीस अवतारों का वर्णन किया। नाथ जी महाराज ने सोचा कि भक्तों, प्रिय भगवान को याद किया तथा उनकी लीलाओं का वर्णन किया ताकि भगवान के गुणगान से उनके भक्त प्रसन्न होते हैं।
वेदों की रक्षा के लिए भगवान का मत्स्य अवतार हुआ। पृथ्वी को हिरणाक्ष्य नामक दैत्य रसातल में ले गया तो वराह अवतार में भगवान ने उसका वध कर पृथ्वी को वापस अपनी जगह स्थापित किया। दिन भाद्रपद की शुक्ल पंचमी का था। समुद्र मंथन के समय मंदराचल पर्वत को समुद्र में रखा तब वह डूबने लगा तो भगवान ने विशाल कश्छप का अवतार रूप लेकर मंदराचल पर्वत को अपनी पीठ पर धारण किया। भगवान को जब कश्छप अवतार में नींद आने लगी और सांसे तेज चलने लगी, समुद्र में लहरे उठी, उसे ही संतो ने ज्वार और भाटा कहा।
भक्त प्रहालाद की रक्षा के लिए नृसिंह अवतार हुआ। हिरणाकश्यपु को वरदान मिला कि वह न नर से मरे न देव से, रात में मरे न दिन में, अस्त्र से मरें न शस्त्र से, अन्दर मरे न बाहर, ऊपर मरे न जमीन पर तो नृसिंह भगवान ने संध्या के समय अधिक मास में दहलीज पर अपनी जंगा पर लेकर उसे नाखुनों से मारा।
नाग पंचमी के प्रवचन पर बताया कि एक बार गरूड़ भगवान और पुण्डरीक नाग के बीच में झगड़ा हुआ तो पुण्डरीक नाग काशी में मनुष्य रूप में रहने लगे। जब मानव रूप में पुण्डरीक की पत्नी को बताया ओर उसने पनघट पर सभी स्त्रियों को बता दिया कि मेरे पति ही नाग है। वहाँ गरूड़ जी ने सुन लिया और उसके मटके पर बैठक कर उनके घर पहुंच कर पुण्डरीक नाग को लेकर चलने लगे तो पुण्डरीक ने गरूड़ जी से कहा कि मैं तुम्हें ज्ञान की बता बताता हूँ कि नारी को कोई भेद नहीं बताना चाहिये। पुण्डरीक नाग ने गरूड़ जी को बोला कि मैंने तुम्हें ज्ञान दिया है इसलिए मैं तुम्हारा गुरू हुआ और गुरू को मारने से तुम्हें गुरू हत्या का दोष लगेगा। तो गरूड़ जी ने उसको छोड़ दिया और आपस का बैर भी मिट गया। पंचमी का ही दिन होने से नागपंचमी का दिन कहलाया।
