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निम्बाहेड़ा।
निंबाहेड़ा के शांति नगर स्थित नवकार भवन में आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए जैन संत मुनिश्री युगप्रभ जी महाराज साहब ने श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पावन अवसर पर अत्यंत प्रेरणादायी विचार रखे।
मुनिश्री ने कहा कि जैन दर्शन में तीन प्रकार के पुरुषों की परिकल्पना की गई है, धर्म पुरुष, भोग पुरुष और कर्म पुरुष। तीर्थंकर भगवान धर्म पुरुष होते हैं, चक्रवर्ती सम्राट भोग पुरुष माने जाते हैं और वासुदेव कर्म पुरुष होते हैं।
श्रीकृष्ण वासुदेव थे, परंतु वे केवल पुरुष ही नहीं, बल्कि महापुरुषों की श्रेणी में आते हैं।
मुनि श्री ने कहा कि जब धरती पर अनैतिकता, अराजकता और धर्म की अवहेलना अपने चरम पर थी, तब ऐसे कठिन समय में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। उन्होंने स्पष्ट किया कि जब पुण्यवान आत्मा घर में जन्म लेती है, तो बिगड़े हुए कार्य भी सुधर जाते हैं, और जब पापी आत्मा जन्म लेती है तो अच्छे कार्य भी बिगड़ जाते हैं। श्रीकृष्ण की आत्मा पुण्यवान थी, उनके जन्म के साथ ही कारागृह के द्वार खुल गए, हथकड़ियाँ टूट गईं, यमुना ने रास्ता दे दिया, यह सब उनके दिव्य पुण्य का परिणाम था।
मुनिश्री ने कहा कि कृष्ण का जन्म ऐसे हुआ जहाँ न कोई तालियाँ बजाने वाला था, न मृत्यु के समय पानी पिलाने वाला, फिर भी उन्होंने ऐसा जीवन जिया कि आज वे हर भक्त की आत्मा में रमे हुए हैं।
उन्होंने कहा कि अष्टमी तिथि हमें अपने कर्मों को सुधारने और सिद्धों के आठ गुणों को आत्मसात करने की प्रेरणा देती है। जैसे श्रीकृष्ण ने अपने जीवन में दुर्योधन, दु:शासन, जरासंध, कंस, पूतना, कालिया नाग आदि दुष्टताओं से समाज को मुक्त किया, वैसे ही हमें भी अपने अंतर्मन में बसे दुष्कर्मों और अवगुणों से आत्मा को मुक्त करना चाहिए। मुनिश्री ने विशेष रूप से कहा कि "बनना हो तो कृष्ण की तरह सारथी बनो, मगर स्वार्थी मत बनो।"
श्रीकृष्ण ने अर्जुन के सारथी बनकर धर्म की रक्षा की, न्याय की स्थापना की। उनके जीवन में माता-पिता के प्रति मान, मित्रों के प्रति समर्पण, और दुखियों के प्रति करुणा जैसे श्रेष्ठ गुण निहित थे। यदि हम उनके गुणों को अपनाते हैं, तभी हमारा जन्माष्टमी उत्सव सार्थक बन सकता है। धर्मसभा में श्रीमती ममता बंब ने 26 उपवास एवं अशोक ने 13 उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किया। यह तपस्या समाज के लिए प्रेरणा स्रोत है।
धर्मसभा में चित्तौड़गढ़, चिकारड़ा, सांवलिया जी, पुणे, सतखंडा, शंभूपुरा, उदयपुर आदि क्षेत्रों से पधारे श्रावक-श्राविकाओं ने उत्साहपूर्वक भाग लेकर धर्मलाभ प्राप्त किया।