चित्तौड़गढ़ - ‌विनयभाव से की गई सेवा सफल होती है - महासती विद्यावती
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सीधा सवाल। चित्तौड़गढ़। स्थानीय अरिहंत भवन सेंथि में धर्मसभा को संबोधित करते हुए महासती विद्यावती ने कहा कि मनुष्य जन्म में ही धर्म ध्यान त्याग तपस्या प्रत्याख्यान धर्म आराधना हो सकती है। यदि देव चाहे कि वह धर्म करें तो उनके लिए वहां अवसर नहीं होता है। देव बन भी गए तो क्या होना मनुष्य भव के लिए तरसते हैं और पश्चाताप करते हैं कि जब वह मनुष्य जीवन में थे तो उनके पास सभी अनुकूल अवसर थे। गुरु भी मिले, दीक्षा भी ली , संयम अपनाया सभी धर्म कार्य करने के बाद में भी सफलता नहीं मिली। कमी रह गई। मोक्ष गति होनी थी पर देव गति में पहुंच गए। चिंतन मात्र ही हो पता है । फिर से देव मनुष्य जन्म पाने का इंतजार करते हैं । समझना यह है कि मनुष्य जन्म का लक्ष्य मोक्ष प्राप्त करना , जन्म मरण की प्रक्रिया को रोकना, कर्म जो बांधे हैं उन्हें समता से निर्जरा करना। लेकिन पुराने कर्म काटने के स्थान पर नए कर्म बांधना जारी रहता है इसलिए बार-बार कहा जाता है । त्याग तपस्या के लिए जीवन है । जीवन क्षण भंगूर है समय रहते धर्म ध्यान करना है । ब्रह्मचर्य के पालन से बहुत फल होता है। 180 उपवास का फल एक दिन के ब्रह्मचर्य के पालन से होता है। तपस्या के साथ सजग रहना होता है । श्रद्धा दुर्लभ है। गुरु का सहयोग मिलना , जिनवाणी का श्रवण करना , उस पर श्रद्धा होना, फिर जो सुना उसे पर आचरण करना यह सब दुर्लभ है। सुलभ होने पर नसीब की बात समझनी चाहिए। पुण्य वाणी से पुरुषार्थ सफलता है। तीर्थंकर का जन्म जब होता है कल्याणक देवों द्वारा मनाया जाता है। घनघाती कर्मों से मुक्त होने पर तीर्थंकर भगवान को केवल ज्ञान होता है । विनय धर्म को विस्तार से समझाते हुए कहा कि विनय से ही सभी क्रियाएं, सफलता मिलती है । विनयवान को ही अधिकार मिलते हैं। भगवान महावीर के जन्म के अवसर पर देव देवों द्वारा कल्याणक मानना, देवियों द्वारा व्यवस्थाएं करने का जीवंत विवरण धर्म सभा में सुनाया समझाया। महासती ने कहा कि विनय गुण होता है तब सेवा हो पाती है । विनय से सेवा करने वाले धन्य होते हैं। जिन बालक बालिकाओं में पुत्र पुत्री में विनय भाव सेवा भाव होते हैं उनके माता-पिता परिजन खूब खुशी से जीवन यापन करते हुए आशीर्वाद देते हैं । माता-पिता को कभी सताना रुलाना नहीं, परिजनों का सम्मान करना , यह गुण जीवन को आगे बढ़ाता है। सेवा भाव विनय गुण स्व को पर को शांति देता है।


 प्रवचन सभा को नमनश्री मसा. ने संबोधित करते हुए अंतगढ़ सूत्र का वाचन किया एवं महापुरुषों के प्रेरक जीवन को मार्मिक तरीके से समझाया। महासति मर्यादा श्री ने कहा कि आगम शास्त्रों में एकांत का बहुत महत्व है। एकांत में रहने से शास्त्रों के अध्ययन का अवसर मिलता है । एकांत साधना शांतिदायक, मन को प्रसन्न करने वाली होती है। महापुरुषों ने एकांत साधना का महत्व बताया जो आज भी प्रासंगिक है। महासती ने हुकुम संघ के आचार्य श्रीलाल जी महाराज साहब का जीवन वृतांत सुनाते हुए कहा कि सांसारिक अवस्था में श्रीलाल जी ने 8 वर्ष की उम्र में ही धार्मिक अध्ययन किया, रुचि जगाई और तय कर लिया कि मैं तो साधु बनूंगा। गंभीर दार्शनिक मुद्रा चेहरे पर बचपन से झलकती थी। बड़े होकर विपरीत पारिवारिक परिस्थितियों के बाद भी दीक्षा ली। संयम पालन के साथ विद्वान बने और युवाचार्य पद के दायित्व के बाद आचार्य बने और शासन की खूब प्रभावना की। मात्रा 21 वर्ष की आयु में युवाचार्य बने, आचार्य बने। आचार्यश्री चौथमल जी महाराज साहब ने उनको परखा और दायित्व दिया था। खूब धर्म प्रभावना हुई। उन्होंने जवाहरलाल जी मसा. को दायित्व प्रदान किया। हुक्म संघ के महान आचार्य के जीवन को पढ़ने समझने एवं जीवन में अपनाने से कल्याण होता है। धर्म सभा में एकासान, उपवास, आयंबिल, बेला, तेला एवं चार उपवास तथा अन्य नियम प्रत्याख्यान महासती विद्यावती ने मंगल पाठ के साथ कराए । धर्म सभा में नरेश ढाबरिया ने गीतिका प्रस्तुत की। संचालन विमल कोठारी ने किया।


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