चित्तौड़गढ़ - दुर्ग पर विकास की बाट जोहता आठवीं शताब्दी का गज लक्ष्मी मंदिर, दीपावली पर होती है महाआरती
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चित्तौड़गढ़। वर्ल्ड हेरिटेज में शुमार चित्तौड़ दुर्ग पर आजादी के बाद से अब तक कई भवनों का जिर्णोद्धार हुआ है। दुर्ग पर आबादी भी है और कई नए निर्माण भी नियम विरुद्ध करवा दिए गए। लेकिन इन सभी के बीच चित्तौड़ दुर्ग के पार्श्व भाग में स्थित आठवीं शताब्दी में निर्मित गज लक्ष्मी मंदिर आज भी विकास की राह देख रहा है। प्राचिन मंदिर पर ना तो शिखर है ना ही श्रद्धालुओं के दर्शन करने के स्थान पर छाया की व्यवस्था। पुरातत्व विभाग ने यहां के विकास को लेकर नाम मात्र का खर्चा किया है।संस्थाएं यहां अन्य मद से विकास की बात भी करती है लेकिन पुरातत्व विभाग के कड़े नियमों के चलते इस मंदिर पर छत्त तक नहीं डाली जा सकी है। वैसे तो इस मंदिर में 365 ही दिन श्रद्धालु दर्शनार्थ आते हैं लेकिन दीपावली पर विशेष आयोजन होता है। हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं की दर्शनार्थ कतारें लग जाती है। मध्य रात यहां महाआरती का आयोजन होता है।


दुर्लभ है गज लक्ष्मी मंदिर 

चित्तौड़ दुर्ग के पार्श्व भाग में प्राचिन गज लक्ष्मी का मंदिर स्थित है। पूरे देश में गज पर सवार लक्ष्मीमाता के नाम मात्र के मंदिर होकर प्रतिमा भी दुर्लभ है। इस मंदिर का निर्माण एवं प्रतिमा की स्थापना करीब 1200 वर्ष पूर्व बप्पा रावल ने की थी। यह मंदिर दुर्ग के रिंग रोड से करीब 100 मीटर अंदर है। इसके निकट ही कुबेर का मंदिर भी है जो भी उपेक्षित ही पड़ा हुआ है।


केवल पुजारी के खड़े रहने की जगह

लक्ष्मी माता मंदिर काफी प्राचिन होकर इसके विकास की दरकरार है। मुगलों के हमलों एवं पुराना होने के कारण मंदिर का अधिकांश हिस्सा तो गायब है। एक बड़ा चबूतरा है, जिस पर कक्ष बना हुआ है। इस कक्ष में मां लक्ष्मी की गज पर बिराजमान प्रतिमा स्थापित है। इस कक्ष में इतनी सी जगह है कि केवल पूजारी खड़ा रह सकता है। इसके अलावा बाहर चबुतरे पर छाया तक नहीं हैं। ऐसे में श्रद्धालु धूप में ही खड़े रह कर दर्शन करते हैं।


घर पूजन के बाद दर्शनार्थ आते हैं लक्ष्मी मंदिर 

हर वर्ष प्राचीन लक्ष्मी मंदिर में धनतेरस से दीपावली तक दर्शन के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते है। दीपावली को शाम से लेकर अगले दिन तड़के तक दर्शनों के लिए हजारों लोग पहुंचते हैं। दीपावली पर शाम को घर व प्रतिष्ठान पर पूजा के बाद शहर व आस-पास के लोग लक्ष्मी माता मंदिर दर्शनार्थ पहुंचते हैं। भारी भीड़ के चलते पुलिस बंदोबस्त भी करना पड़ता है। दीपोत्सव को लेकर प्रतिमा का विशेष श्रृंगार किया जा रहा है।


धूप एवं बरसात में परेशान श्रद्धालु

यहां मंदिर के बाहर चबूतरे पर छत भी नहीं है। करीब 15 वर्ष पूर्व मंदिर तक पहुंचने का सुलभ मार्ग नहीं था। कुछ वर्ष पूर्व यहां मार्ग का निर्माण तो हो गया लेकिन यहां दीपावली को छोड़ कर अन्य दिनों में मुख्य मार्ग से मंदिर तक आने में रोशनी का भी अभाव रहता है। मंदिर क्षेत्र में चबुतरा बना हुआ है लेकिन छाया नहीं होने से धूप व बरसात में श्रद्धालु परेशान रहते हैं। निकट ही स्थित कुबेर मंदिर में छत है लेकिन यहां पूजा नहीं होती।


सांसद से भी उठाई मांग, नहीं हुआ विकास

इस सम्बन्ध में लक्ष्मी माता मंदिर सेवा समिति के सचिव सुनील सुनील कलन्त्री ने बताया कि यह मंदिर काफी प्राचीन है यहां दीपावली के दिन दर्शन के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं यहां के विकास को लेकर चित्तौड़गढ़ शासन सीपी जोशी से भी मांग उठाई लेकिन यहां का विकास नहीं हुआ। यहां आने वाले श्रद्धालु सर्दी, गर्मी, बरसात तीनों मौसम में परेशान रहते हैं। श्रद्धालुओं के लिए सुविधाओं का विकास हो। यहां रख रखाव तो व्यवस्थित होता है लेकिन श्रद्धालुओं के लिए व्यवस्थाएं नहीं होती है। यहां शेड बने इसके लिए प्रयास किया। सांसद सीपी जोशी से भी मिले। जिला कलक्टर से भी मुलाकात की थी, फिर भी कोई व्यवस्था नहीं की गई। श्रद्धालुओं से भी बात हुई है, वे भी परेशान होते हैं। यहां विषैले जीवों का खतरा भी रहता है बरसात में। पुरातत्व विभाग से भी बात हुई लेकिन उनका कहना है कि पुरातत्व के मामले में समिति कुछ भी नहीं का सकती। 



बाइट सुनील कलन्त्री, सचिव, लक्ष्मी माता सेवा समिति


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