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छोटीसादड़ी। कोरोना के समय जहां सरकार लोगों को फ्री में राशन अन्य सहयोग सामग्री पैसा खातों में डाल कर दे रही है। वही दिन रात लगभग 13 वर्षों से सरकार की सेवा कर रहे पंचायत सहायक इस महामारी के समय भी 3 माह से अधिक समय से अपने मानदेय के लिए भटक रहे हैं। जिले में ग्राम पंचायतों में न्यूनतम मानदेय में नौकरी कर रहे पंचायत सहायकों को 3 माह का वेतन नहीं मिला है। कोरोना काल में जहां सरकार प्रवासी मजदूर, ठेला गाड़ी,बीपीएल महिला श्रमिकों के खाते में मुफ्त में राशि दे रही है,वही कोरोना जैसी महामारी के समय लॉकडाउन में भी कभी सर्वे तो कभी चेक पोस्ट पर दिन में और रात में बहादुरी से अपनी ड्यूटी दे रहे पंचायत सहायकों को प्रोत्साहन राशि तो ठीक है, अपनी मेहनत की मजदूरी भी 3 माह से नहीं मिल पाई है।
तनाव और आर्थिक परेशानियों का सामना करने पर मजबूर....
जहां उनको अपने वेतन के लिए अधिकारियों विधायकों सरकार तक ज्ञापन देने पड़ रहे। जिससे एक तरफ तो कोरोना महामारी के लिए लड़ना है। वही वेतन से मोहताज पंचायत सहायक आर्थिक परेशानियों का सामना कर रहे हैं। घर खर्च भी चलाना मुश्किल हो रहा है जिससे पंचायत सहायक तनाव में है।
सरकार व ग्राम पंचायतों के बीच में बीच में फँसे.....
दरअसल प्रदेश के सरकारी स्कूलों में वर्षों से विद्यार्थी मित्र के रुप में कार्य कर रहे हजारों संविदा शिक्षक अन्य युवा वर्ष 2017 से ग्राम पंचायतों में पंचायत सहायक के रूप में नियुक्त हैं। सरकार की ओर से पंचायत सहायकों का प्रतिवर्ष कार्यकाल बढ़ाकर पंचायतों को अतिरिक्त बजट का आवंटन कर उन्हें प्रतिमाह 6 हजार रुपये वेतन दिया जाता है। मार्च 2020 में कार्यकाल समाप्त होने के बाद सरकार ने पंचायत सहायकों का 1 वर्ष का कार्यकाल तो बढ़ा दिया। लेकिन बजट नहीं होने का हवाला देकर पंचायत समितियों को आदेश दिए कि ग्राम पंचायतें पंचायत सहायकों का वेतन निजी आय या अन्य किसी में मद से भुगतान करें। सरकार के आदेश के बाद ग्राम पंचायतों में निजी आय शून्य है जिससे इनका वेतन भुगतान नहीं हो पा रहा है। सरकार व ग्राम पंचायतों के बीच में फँसे होने के कारण पंचायत सहायकों का वेतन अटक गया और उनके सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया। वेतन समस्या संबंधी समस्या को लेकर पंचायत सहायक संघ ने सहकारिता मंत्री को ज्ञापन देकर अपनी समस्या भी बताई। उन्होंने भी आश्वस्त किया कि महामारी के समय आपको वेतन जल्दी ही दिलाएंगे। वर्तमान में रक्षाबंधन का त्योहार निकट आ गया है। बच्चों की पढ़ाई भी ऑनलाइन चल रही है। उनके लिए पुस्तकें ऑनलाइन रिचार्ज आदि का खर्च करना मुश्किल हो रहा है। राशन सामग्री भी दुकानदार से कब तक उधार ले बड़ी समस्याएं पैदा हो रही है।
- क्या-क्या है पंचायत सहायकों की जिम्मेदारी
ग्राम पंचायतों में नियुक्त पंचायत सहायकों पर वर्तमान में चल रहे कोविड-19 को लेकर प्रचार प्रसार के साथ ही सर्वे वाली जिम्मेदारियां हैं। इसके साथ ही चेक पोस्ट पर भी ड्यूटी लगाई गई है। प्रधानमंत्री आवास योजना, स्वच्छ भारत मिशन शौचालय निर्माण के साथ ही इजी ऑफ लिविंग सर्वे की जिम्मेदारी भी दे रखी है। नरेगा संबंधी कार्य भी कर रहे हैं। साथ ही समय-समय पर ग्राम विकास अधिकारी, सरकार द्वारा निर्देशित कार्यों का संपादन कर रहे हैं।
- सरकार की तरफ टकटकी लगाए बैठे हैं
हाल ही में सरकार ने गरीब परिवारों को 1हजार रुपये की अनुग्रह राशि की घोषणा की। लेकिन दिन-रात सरकारी कार्यों में लगे इन अल्प वेतनभोगी कर्मचारियों को 3 माह का अल्प वेतन भी नहीं मिला। यह सरकार की तरफ टकटकी लगाए बैठे हैं। कब सरकार इन पर ध्यान दें और आर्थिक रूप से परेशान इनकी समस्या का समाधान करें।
- मूलभूत आवश्यकताओं की सता रही चिंता
अल्प वेतन में कार्य करने वाले इन पंचायत सहायकों को प्रतिमाह समय पर वेतन नहीं मिलने से वह वेतन अल्प होने से गरीबी रेखा से भी नीचे जीवन यापन करने पर मजबूर है। जीवन यापन की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करना भी संभव नहीं हो पा रहा है। बढ़ती महंगाई में दैनिक आवश्यकताओं की वस्तु भी नहीं खरीद पा रहे हैं। नरेगा श्रमिकों से भी कम वेतन मिलता है। वह भी समय पर नहीं मिलता। सरकार की विभिन्न योजनाओं में भी सरकारी लाभ नहीं मिल पा रहा है।
ठगा सा महसूस कर रहे हैं पंचायत सहायक------
सरकारें आती है और चली जाती है चुनाव के समय अनेक बार इनसे वादे किए गए। लेकिन सीट पर बैठने के बाद वादे भुला दिए जाते हैं। सरकार ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में इन्हें नियमित कर्मचारी बनाने का वादा किया था। लेकिन सरकार बनने के डेढ़ साल बाद भी नियमित तो ठीक है कार्यकाल वृद्धि और वेतन के लिए भी इन्हे ज्ञापन देने पड़ रहे हैं। जिसके कारण यह अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। पूरे राजस्थान राज्य में लगभग 27000 पंचायत सहायक अपनी सेवाएं दे रहे हैं, जो सरकार से कंधे से कंधा मिलाकर सरकार की विभिन्न जन कल्याणकारी योजनाओं का प्रचार प्रसार कर रहे हैं। कोरोना जैसी महामारी के समय भी लगातार अपनी सेवाएं बड़ी बहादुरी से दे रहे हैं। इन पंचायत सहायकों में किसी किसी की उम्र तो 45 से 50 वर्ष के लगभग हो गई है। इतने कम वेतन में भी वेतन का समय पर नहीं मिलना। इनके परिवार का पालन पोषण करना भारी पड़ रहा है। पिछले 13 वर्षों से अनुशासन में रहकर पूर्ण निष्ठा से सरकार का कार्य कर रहे हैं। और सरकार तक अपने नियमितीकरण संबंधी मांगे पहुंचाने के लिए गांधीवादी तरीके से अनशन, धरना,ज्ञापन दे रहे हैं। लेकिन हर बार इन्हें सिर्फ आश्वासन मिलता है। सरकारे बदलती जाती है। लेकिन इनका भविष्य नहीं सुधरा, हर बार आश्वासन से ही संतोष करना पड़ा। विपक्ष में रहते हुए हर राजनेता को इनका दुख दर्द नजर आता है। इनकी सभाओं को संबोधित करते हुए वह कहते हैं कि हम अगर सरकार में आए तो आपके पीड़ा को समझेंगे और और आपकी सेवाओं को नियमित करेंगे। लेकिन सरकार में आने के बाद भूल जाते है।