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सीधा सवाल। चित्तौड़गढ़। भगवान् को प्राप्त करने के लिए भक्ति, ज्ञान और वैराग्य के अतिरिक्त स्वधर्म का पालन करते हुए तन-मन-धन से भगवान् के लिए समर्पण-भाव की प्रधानता आवश्यक है । खामोर में महामण्डलेश्वर श्री श्री 1008 श्री चेतनदासजी महाराज (सांवलिया धाम आश्रम, मुंगाणा) के आशीर्वाद व महंत श्री 1008 श्री राम सागर दास जी महाराज हमीरगढ़ के पावन सानिध्य में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन व्यासासन को शोभायमान कर रहे सन्त श्री अनुजदासजी महाराज ने बताया कि ग्रन्थ हमारे गुरु हे धर्म की जागृति के लिए ग्रन्थ का आश्रय आवश्यक हे आज हमारे देश में लवजिहाद के सी घटनाएं अगर घटित होती हे तो विचारकरण चाहिए कि कमी कहा हे अपने बच्चों को अच्छै संस्कार अवश्य दे राम के चरित्र कृष्ण के चरित्र अपने बच्चों को अवश्य अवश्य प्रदान करे यह संसार असार है, दिया हुआ दान और लिया हुआ नाम ही आगे काम आने वाला साधन है, भगवान् चित्र में नहीं चरित्र में बसते है, इसलिए अपने जीवन का निर्माण अपने चरित्र से करें । 'गोविन्द मेरो है, गोपाल मेरो है' के कीर्त्तन पर मन्त्र-मुग्ध श्रोता नृत्य करने के लिए विवश थे । बुद्धि को पवित्र करने के साधन पर चर्चा करते हुए व्यासजी ने बताया कि हरि-स्मरण करते हुए तल्लीन हो जाने पर हरि-विरह में प्रेमाश्रु बहने लग जाएं तो समझ लें- आप भगवान् को प्राप्त करने की राह पर बढ़ रहे हैं । महाभारत में वर्णित एकलव्य के उपाख्यान के माध्यम से गुरु-कृपा के महत्त्व को दर्शाते हुए महाराज-श्री ने बताया कि जीवन में गुरु के सहारे के बिना जीवन को सफल नहीं बनाया जा सकता है । गुरु ही हमारी बुद्धि को पवित्र कर सकने में समर्थ हैं । कथा के दौरान विभिन्न प्रसंगों पर भजनों का समावेश अत्यन्त सार्थक प्रतीत हुआ । ब्रह्मलीन महंत श्री रामेश्वर दास जी महाराज की पुण्य स्मृति में मूर्ति व चरण पादुका प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव एवं विशाल भंडारा संत सम्मेलन ग्राम खामोर होगा एवम् अन्य सन्तों का इस अवसर पर शुभागमन सौभाग्यप्रद है