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सीधा सवाल। कनेरा। स्थानीय उपतहसील कनेरा घाटा क्षैत्र के अजोता चल रही कथा में प्रवक्ता जयमाला दीदी वैष्णव ने कहा
यदि जीवन में संतुष्टि का सुख नहीं तो बड़ी से बड़ी सफलता भी प्रसन्नता नहीं दे सकती है। निश्चित ही अपने जीवन में जो संतुष्ट है वह मुक्त भी है। संतुष्टि, व्यक्ति को जीते जी मुक्त करा देती है। संतों का मत है कि इच्छाओं का शेष रहना और श्वासों का खत्म हो जाना ही मोह एवं इच्छाओं का खत्म हो जाना और श्वासों का शेष रहना ही मोक्ष है। अपने जीवन में कितनी संतुष्टि रही ,यही संतुष्टि मुक्ति का मापदंड तय करती है।महापुरुषों का जीवन इसलिए सफल अथवा वंदनीय नहीं माना जाता है कि उन्होंने बहुत कुछ पा लिया हो अपितु इसलिए सफल और वंदनीय माना जाता है, कि उन्होंने जो और जितना पाया है, बस उसी में संतुलन बनाना और संतुष्ट रहना सीख लिया है। संतुष्टि का अर्थ निष्क्रिय हो जाना नहीं अपितु परिणाम के प्रति अपेक्षा रहित हो जाना है। एक संतुष्ट जीवन ही सुखी जीवन व सफल जीवन भी कहलाता है कथा में जयमाला दीदी ने नरको की कथा, अजामिल नरसिंह अवतार ,एक जड़ भरतजी आदि सनातन काल के भक्तो के जीवनी पर प्रकाश डाला एवं मानव जाति को संदेश दिया। हमे अपने जीवन में हमेशा परमात्मा को नहीं भूलना चाहिए सदैव उनसे दयापूर्वक कहे हे प्रभु मे आपको कभी विस्मृत नहीं करू बस यही कृपा सदैव रखना। कथा में आसपास क्षैत्र के सेकडो भक्त कथा पांडाल में मनुष्य जीवन शैली की कथा सुनकर भाव विभोर होकर आनंदित हुए इस पर अजोता के भुरादान आलग्या शंभुदान हादा ने आभार माना।