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                                            सीधा सवाल। बस्सी। बदलते दौर में जहाँ मशीनों ने हस्तकला की परंपरा को पीछे छोड़ दिया है, वहीं बस्सी तहसील के प्रख्यात स्वर्णकार गणपत सोनी आज भी अपनी निपुण कला से इस परंपरा को जीवित रखे हुए हैं। गणपत सोनी सोने-चांदी के आभूषण बनाने में अपनी बेमिसाल कला के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने अपने हाथों से भगवानों की पोशाक, तलवार, छत्र, भाला, कुण्डल सहित अनेक धार्मिक आभूषण तैयार किए हैं। उनकी विशेषता यह है कि वे हर आभूषण को बारीकी और परंपरा के साथ गढ़ते हैं।
गणपत सोनी ने सांवरिया सेठ मंदिर, मण्डपिया में चढ़ने वाले कई अनोखे आभूषण जैसे सिलाई मशीन, पिकअप, पेट्रोल पंप, डम्पर, अफीम का पौधा आदि चांदी और सोने से तैयार किए हैं, जो उनकी रचनात्मक सोच और कौशल का प्रतीक हैं।
हाल ही में बेंगू में आयोजित गणपति महोत्सव में मेवाड़ क्लब द्वारा भगवान गणपति को 3 किलो चांदी के आभूषणों से सजाया गया था, जिन्हें गणपत सोनी ने ही तैयार किया था। यही नहीं, उनके बनाए आभूषण उदयपुर, कोटा, दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों तक की शोभा बढ़ा रहे हैं। वर्तमान में उन्होंने चित्तौड़गढ़ स्थित रुणंडेश्वर महादेव मंदिर के लिए 1.5 किलो चांदी का मुकुट भी तैयार किया है, जो उनकी कला की उत्कृष्टता को दर्शाता है। गणपत सोनी का कहना है कि आज पूरे चित्तौड़ जिले में मात्र पाँच कारीगर ही बचे हैं जो हाथ से पारंपरिक आभूषण बनाने की इस कला को संजोए हुए हैं। उन्होंने कहा कि अगर नई पीढ़ी इस कला की ओर आकर्षित हो, तो यह परंपरा आने वाली पीढ़ियों तक जीवित रह सकती है।
 
                         
                         
                                                 
                                                     
                                                     
                                                         
                                                         
                                                         
                                                         
                                                        