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सीधा सवाल। चित्तौड़गढ़। मेवाड़ के प्रसिद्ध कृष्ण धाम श्री सांवलियाजी मंदिर में आने वाली चढ़ावे की राशि को अब मनमाने तरीके से बाहर खर्च करने पर रोक न्यायालय ने स्थाई रोक लगा दी है। इस संबंध में सोमवार को सिविल न्यायाधीश मंडफिया विकास कुमार अग्रावत ने फैसला सुनाया है। न्यायालय में प्रार्थी मदन जैन, कैलाशचंद्र डाड, श्रवण तिवारी, शीतल डाड आदि ने वाद पेश किया था। इसमें बताया कि प्रतिमाह करोड़ों की चढ़ावा राशि भक्तों द्वारा चढ़ाई जाती है। उक्त राशि को मंदिर मंडल द्वारा मनमाने तरीके से उपयोग किया जा रहा था, जिसको लेकर स्थानीय निवासियों और भक्तों द्वारा काफी समय से प्रयास किए जा रहे थे। अनेक ज्ञापन भी दिए गए। लेकिन राजनीतिक दबाव में और निजी हितों के चलते मंदिर मंडल की और से भक्तों की गाढ़ी कमाई के चढ़ावे की राशि का दुरुपयोग किया जा रहा था। वहीं मंदिर और आस पास के गांवों में अनेक व्यवस्थाओं का नितांत अभाव है। मंदिर के दर्शनार्थियों के लिए निःशुल्क भोजनशाला, पार्किंग, शौचालय, पीने के पानी, चिकित्सा सेवा आदि के लिए काफी समय से मांग चल रही है। मंडफिया में उच्च स्तरीय अस्पताल, विद्यालय, लाइब्रेरी, पार्क जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए भी स्थानीय लोग काफी समय से प्रयासरत है। सन् 2018 में मंदिर मंडल द्वारा मातृकुंडिया में विकास कार्यों के लिए 18 करोड़ की राशि मुख्यमंत्री की बजट घोषणा की पूर्ति के लिए जारी की गई थी, जिसके संबंध में स्थानीय लोगों द्वारा एक जनहित वाद सिविल न्यायालय, मंडफिया में संस्थित कर निवेदन किया गया था कि उक्त राशि को राजनीतिक लाभ के लिए जारी किया गया है। इस पर रोक लगाई जाए। उक्त जनहित वाद को निस्तारित करते हुए न्यायालय ने उक्त राशि जारी करने के प्रस्ताव को निरस्त कर दिया और भविष्य में मंदिर निधि की राशि के दुरुपयोग पर स्थाई रोक लगा दी। न्यायालय ने निर्णय में स्पष्ट किया कि मंदिर की संपति राज्य सरकार का खजाना नहीं होकर मंदिर के देवता की संपति है, जिसका उपयोग मनमाने तरीके से किसी राजनीतिक महत्वकांक्षा को पूरा करने के लिए नहीं किया जा सकता है, मंदिर मंडल द्वारा यदि मंदिर की संपति का दुरुपयोग किया जाता है तो ये व्यक्तिगत जिम्मेदारी का कृत्य होते हुए आपराधिक न्यासभंग के अपराध का गठन करता है। जनहित वाद में आमजन की ओर से पैरवी अधिवक्ता उमेश आगार द्वारा की गई। अधिवक्ता ने बताया गया कि न्यायालय के इस फैसले के दूरगामी परिणाम होंगे। भविष्य में इस प्रकार के मंदिर निधि के दुरुपयोग पर सिविल वाद पेश नहीं कर, न्यायालय के आदेश की अवमानना का मामला दर्ज करवाया जा सकेगा।