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सीधा सवाल। चित्तौड़गढ़। राष्ट्रीय स्तर के वीर रस के कवि, गोरा बादल कविता के रचनाकार एवं लाल किले से 18 बार मेवाड़ का प्रतिनिधित्व करने वाले नरेंद्र मिश्र का मंगलवार को निधन हो गया। उनकी अचानक तबियत बिगड़ गई थी तो तत्काल उन्हें लिए निजी चिकित्सालय ले जाया गया। यहां उन्हें मृत घोषित कर दिया। इसकी सूचना मिलने के बाद साहित्य जगत में शोक छा गया। इनकी कई कविताएं आज भी विभिन्न माध्यम से सुनी और पढ़ी जाती है।
राष्ट्रीय कवि पंडित नरेंद्र मिश्र काफी समय से अस्वस्थ हो घर ही स्वास्थ्य लाभ ले रहे थे। मिश्र की मंगलवार सुबह अचानक तबियत बिगड़ी और अचेत होकर गिर गए। परिजन उन्हें लेकर निजी चिकित्सालय पहुंचे, जहां चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। पंडित नरेंद्र मिश्र के रिश्तेदार डॉ नटवर शर्मा ने बताया कि उनका 88 साल की उम्र में निधन हो गया। इनके दो पुत्र विवेक एवं विश्वास मिश्र तथा तीन पुत्रियां श्रद्धा, डॉ निरुपमा व अनामिका तथा दो पौत्र हैं। काफी समय से वे अस्वस्थ चल रहे थे और घर ही विश्राम करते थे। मिश्र के निधन से परिवार के साथ ही पूरे साहित्य जगत में शोक छा गया। परिजनों के अलावा चित्तौड़गढ़ के साहित्यकार भी घर आना शुरू हो गए। मिश्र का मंगलवार शाम को ही चित्तौड़गढ़ डाइट रोड स्थित मोक्षधाम में अंतिम संस्कार होगा।
मेवाड़ से थे प्रभावित, बनारस के घाट छोड़ कर आए थे
डॉ नटवर शर्मा ने बताया कि पंडित नरेंद्र मिश्र का जन्म 5 मई 1937 को मुरादाबाद जिले के ठाकुरद्वारा गांव में हुआ था। उनका बचपन से ही मेवाड़ से लगाव था। इसलिए अपना गांव छोड़ कर मेवाड़ में चित्तौड़गढ़ आ गए थे। यहीं से वे कविता पाठ करने लगे। मेवाड़ और राष्ट्रीयता पर ओज की कविताएं करने लगे। इससे मेवाड़ की ख्याति को और अधिक बढ़ाने का काम किया।
कक्षा 10 में पढ़ते लिखी थी गोरा बादल कविता
वैसे तो पंडित नरेंद्र मिश्र ने कई कविताएं लिखी थी, जिन पर पांच पुस्तकें भी प्रकाशित हुई थी। मिश्र ने 10वीं कक्षा में पढ़ाई करते हुवे गोरा बादल कविता लिख दी थी। इसके अलावा मिश्र की हुमायूं की राखी, जौहर की ज्वाला अविनाशी, पन्नाधाय, हाड़ी रानी, महाराणा प्रताप पर लिखी कवि का पत्र आदि कविताएं काफी प्रसिद्ध रही। मिश्र मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर, महाराणा प्रताप कृषि विश्वविद्यालय उदयपुर, माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का कुलगीत भी लिखा था।
कई राष्ट्रीय पुरस्कार मिले, कभी नहीं किया आवेदन
डॉ नटवर शर्मा ने बताया कि मिश्र को कई राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार मिले थे। इन्होंने कभी पुरस्कार के लिए आवेदन नहीं किया था। उन्हें महाराणा कुम्भा सम्मान, निराला सम्मान, तांत्याटोपे सम्मान, दीन दयाल उपाध्याय साहित्य पुरस्कार, राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा दो बार विशिष्ट साहित्यकार सम्मान, जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ द्वारा समाज विभूति सम्मान, मोहनलाल सुखाडिया विश्वविद्यालय द्वारा स्वर्ण जयंती सम्मान आदि मिले थे।
गोरा बादल कविता सुन दी थी मेवाड़
राजवंश के राजकवि की उपाधि
शर्मा ने बताया कि मां पद्मिनी के त्याग और बलिदान को अपनी कालजयी कविता गोरा बादल के माध्यम से सदैव के लिए लोगों के मन मस्तिष्क पर मिश्र अंकित किया था। वर्ष 1976 में मिश्र ने यह कविता मेवाड़ के तत्कालीन महाराणा भगवत सिंह को यह कविता सुनाई थी। कविता सुन कर उन्होंने मिश्र को मेवाड़ राजवंश के राजकवि की उपाधि थी। साथ ही उस समय उन्हें 55 हजार रुपए की राशि दी जिसे, मिश्र ने स्वीकार नहीं किया था। मिश्र उदयपुर सिटी पैलेस में महाराणा मेवाड़ फाउंडेशन ट्रस्ट के सदस्य भी थे।
पुराने संसद भवन सहित कई स्थानों पर लिखी थी मिश्र की कविताएं
राष्ट्रीय स्तर के वीर रस के कवि पंडित नरेंद्र मिश्र ने कई बड़े मंच से कविता पाठ किया था। इनकी प्रसिद्ध कविताएं पुराने संसद भवन में लिखी हुई थी। इसके अलावा उदयपुर में मोती मंगरी, डबोक एयरपोर्ट पर महाराणा प्रताप की प्रतिमा के नीचे कविताएं लिखी गई थी। चित्तौड़गढ़ शहर में भी पूर्व नगरपालिका अध्यक्ष महेश ईनाणी ने शहर में विभिन्न स्थानों पर मिश्र की कविताओं को लिखवाया।
तीन साल पूर्व कुमार विश्वास आए थे घर, गहलोत ने भी पूछी थी कुशलक्षेम
काफी समय से राष्ट्रीय कवि पंडित नरेंद्र मिश्र घर पर भी स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं। ऐसे में तीन वर्ष पूर्व कवि कुमार विश्वास चित्तौड़गढ़ आए तो मिश्र से मिल कर उनकी कुशलक्षेम पूछी थी। इतना ही नहीं पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी दो बार मिश्र के घर जाकर उनकी कुशलक्षेम पूछ चुके थे।
दो दिन पूर्व ही वंदेमातरम पर लिखी कविता
हाल ही में वन्देमातरम को लेकर देश में विवाद छिड़ा हुआ है। दोनों ही पक्ष एक दूसरे पर आरोप भी लगा रहे हैं। वहीं जानकारी मिली कि पंडित नरेंद्र मिश्र ने दो दिन पूर्व ही वंदेमातरम पर चार पंक्तियां लिखी थी, जिसे इनके पुत्र विश्वास ने सोशल मीडिया पर साझा की थी।
" आस्था की अस्मिता की शान वन्देमातरम
भरत भू की आन की पहचान वन्देमातरम
जो तिरंगे के लिए सिर पर कफन बांधे रहे
उन अमर शहीदों का बलिदान वन्देमातरम
पं. नरेंद्र मिश्र