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ठेकेदार और अधिकारी मिलकर लगा रहे किसानों को चुना
सीधा सवाल। चित्तौड़गढ़। किसानों के हित के लिए बनाया गया चित्तौड़गढ़ डेयरी का संयंत्र भ्रष्टाचार का षड्यंत्र बनकर रह गया है। इसमें हालत यह है कि अधिकारी कार्मिक और ठेकेदार मिलकर किसानों को चूना लगा रहे हैं। इस इकाई में भले ही सरकार ने जिला कलेक्टर को प्रशासक लगा दिया हो लेकिन खेत के उठकर बाड़ को खाने की स्थिति नियंत्रण में नहीं आ रही है। ठेकेदारों को फायदा पहुंचाने के लिए यहां की गई टेंडर प्रक्रिया में मध्य प्रदेश के नाम से दूध कम रेट पर लेकर ऊंची दरों में बेचा जा रहा है जिसका सीधा फायदा ठेकेदार और अधिकारियों की जेब में जा रहा है। वहीं किसानों को इसके जरिए चूना लग रहा है। चित्तौड़गढ़ से मध्य प्रदेश राज्य के इंदौर नागदा मार्ग पर 6 रुपये 90 पैसे प्रति लीटर के हिसाब से टेंडर दिया गया है। यह टेंडर राजेश काकड़ा के नाम से दिया गया है। शनिवार को गाड़ी संख्या आर जे 20 जीबी 9422 जो मध्य प्रदेश के इंदौर नागदा मार्ग पर दूध लेकर निकली लेकिन वहां जाने के स्थान पर किशनगढ़ गई। इससे पहले भी मामला सामने आया जहां मध्य प्रदेश का दूध गुजरात में भेजा गया लेकिन बिक्री नहीं होने से वापस डेयरी में आया। मीडिया में मामला आने के बाद यह रुट बंद कर दिया गया था। और बाद में इसका टेंडर किया गया जिससे धांधली पर सवाल नहीं उठाया जा सके। अब एक बार फिर महंगी रेट पर टेंडर देकर ठेकेदारों को फायदा पहुंचाने का खेल शुरू हो गया है। और इसमें यह भी समझ नहीं आ रहा है कि आखिर यह भ्रष्टाचार की पगड़ी किस-किस के माथे बंधी हुई है।
ऐसे चलता है खेल
जब लंबे रूट पर दूध दिया जाता है तो उसकी प्रति लीटर परिवहन दर अधिक होती है। और ऐसी स्थिति में ठेकेदार स्थानीय स्तर पर ग्राहक जुटाकर मोटा मुनाफा कमाते है। प्रतिदिन लाखों रुपए का मुनाफा कमाया जा रहा है। चित्तौड़गढ़ के संयंत्र से मध्य प्रदेश के इंदौर नागदा मार्ग का दूध ₹6 रुपए 90 पैसे प्रति लीटर की कमीशन की दर से रविवार को वाहन संख्या आर जे 20 जीबी 9422 में भर कर निकला जो अपने निर्धारित मार्ग पर जाने के स्थान पर किशनगढ़ की ओर चला गया। इस वाहन में 200 कैरेट दूध भरा हुआ था। उदाहरण के लिए यदि बात करें तो जो दूध बाजार में ₹64 प्रति लीटर बिक रहा है वह यदि चित्तौड़गढ़ के रूट पर ठेका लेकर बेचा जाए तो इस पर कमीशन महज एक रुपए 90 पैसे प्रति लीटर मिलता है। और प्रति कैरेट ₹24 कमिशन के रूप में बूथ संचालक को मिलता है। यानी न्यूनतम यह दूध ठेकेदार ₹62 में प्रति लीटर के हिसाब से दे सकता है। वहीं लंबे रूट पर इस कमीशन की राशि बढ़कर ₹6 रुपए 90 पैसे हो जाती है। और ऐसी स्थिति में यह दूध लंबे रूट के ठेकेदार को 58 रुपए प्रति लीटर में पड़ता है। यदि दूध को ठेकेदार ₹60 लीटर के हिसाब से भी भेजता है तो भी मावा की पनीर बनाने वाले लोग सीधा खरीद लेते हैं। क्योंकि इससे उन्हें भी फायदा हो रहा है। लेकिन डेयरी को चूना लगाया जा रहा है। और लाखों रुपए के वारे न्यारे हो रहे हैं।
अफीम से भी मोटी कमाई का सौदा दूध की तस्करी
पुलिस और सरकार से बचकर जानलेवा अफीम तस्करी से भी मोटी कमाई दूध की तस्करी से हो रही है। जिसमें ना तो पकड़े जाने का डर है और ना ही किसी बड़ी कार्रवाई की चिंता है। जहां लोग भुगतान कर रहे हैं और उस पर लाखों रुपए का कमाई का खेल ठेकेदार और अधिकारी खेल रहे हैं। लंबे रूट पर गाड़ी भेजने पर स्टाफ का खर्चा टोल टैक्स और डीजल का खर्च होता है। लेकिन फैक्ट्री में यह दूध सस्ती दरों पर देकर एक और जहां सरस ही सरस का गला काट रहा है वहीं दूसरी ओर सिर्फ और सिर्फ ठेकेदारी और अधिकारी चांदी कूट रहे हैं।
इन्हीं हालातो के चलते बनाया जिला कलेक्टर को प्रशासक
सहकारिता के इस उपक्रम में अनियमितता के कथित आरोपो को लेकर जिला कलेक्टर को राज्य सरकार ने प्रशासक नियुक्त किया है। लेकिन चित्तौड़गढ़ डेयरी में जिला कलेक्टर केवल औपचारिक साबित हो रहे हैं। उनके प्रशासक नियुक्त किए जाने के बाद भी डेरी में सालों से जमी भ्रष्टाचार की जड़े टस से मस नहीं हो रही है ऐसे में डेयरी के अधिकारी जिला कलेक्टर को भी बरगलाने से बाज नहीं आ रहे है। और ऐसे में यह सवाल खड़ा हो रहा है कि आखिर भ्रष्टाचार को शरण कौन दे रहा है। और किसके इशारे पर यह सबकुछ चल रहा है।
ऑनलाइन बिल वर्क आर्डर सब कुछ फिर भी ठेकेदार का इनकार
शनिवार को सामने आये मामले में जहां ठेकेदार राजेश काकड़ा के नाम पर ऑनलाइन 200 कैरेट का बिल जारी किया गया जिसमें उसके वाहन का नंबर भी दर्ज है और रूट भी अंकित किया गया है। जब इस गाड़ी के अजमेर संघ में होने की जानकारी मैच कई गई तो गाड़ी से ही इनकार कर दिया गया। ऐसे में साफ है कि भ्रष्टाचार बड़े स्तर पर है। जिसका प्रशासनिक जांच से ही खुलासा हो सकता है।
टोल पर्चियो से खुल जाएगा खेल
जिस मार्ग पर यह वाहन संचालित किया जा रहे हैं उन मार्गो के टोल नाको की पर्चियां यदि ठेकेदारों से मांगी जाए तो अपने आप सारा खेल खुलकर सामने आ जाएगा। क्योंकि इन पर्चियो में टोल का स्थान अंकित होता है। और वाहनों पर टोल टैक्स वसूल किया जाता है। सारे वाहन व्यावसायिक श्रेणी के हैं जो टोल की श्रेणी में आते हैं। लेकिन मध्य प्रदेश गुजरात के मार्गों पर जाने वाले वाहन कम दूरी पर दूध बेच रहे हैं। जो दर में सस्ता पड़ेगा और मुनाफा होगा। इसलिए इस भ्रष्टाचार को अधिकारी भी शरण दे रहे हैं क्योंकि उन्हें भी फायदा हो रहा है।
बदले अध्यक्ष वही ठेकेदारी गड़बड़ियों पर कार्यवाही शून्य
यह पहली बार नहीं है जब चित्तौड़गढ़ डेयरी में इस तरह का भ्रष्टाचार सामने आया हो लंबे समय से यह खेल चल रहा है पूर्व में कार्रवाई का ठेकेदारों को दोषी पाए जाने पर जुर्माना और ब्लैक लिस्ट करने की कार्यवाही का दम भरने वाली प्रबंधक भी मामले में चुप्पी साधे हुए हैं। इससे साफ है कि चाहे प्रबंधक बदल दिए जाएं प्रशासक नियुक्त कर दिया जाए लेकिन भ्रष्टाचार पूरे संयंत्र को खोखला कर रहा है। और बहती गंगा में हाथ धोने से कोई भी पीछे नहीं है। केवल पद और नाम बदल रहे हैं भ्रष्टाचार का धंधा फल फूल रहा है।