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चिकित्सकों की देख रेख में दादी ने रखा 2 साल की पोती का ध्यान
सीधा सवाल । चित्तौड़गढ़। कोरोना...यानी मौत को हराने और जिंदगी को जिताने की सबसे बड़ी जंग। जिले की छोटी कोरोना मरीज दो साल की बच्ची सावी बोडाना ने यह जंग फतह कर ली है। दो साल की सावी ने अपनी दादी सुमित्रा बोडाना के साए में रहकर यह जंग जीती है। लगभग 27 दिनों बाद घर लौटने पर घर वालों के चेहरे पर खुशियां देखते ही बन रही थी। घरवालो ने स्वागत के लिए घर को पूरी सजाया और उसके बाद केक काटा। सावी के चेहरे पर अनोखी रौनक थी।
हालांकि यह जंग सावी के लिए आसान नहीं थी और ना ही उसके परिवार के लिए। कोरोना पॉजिटिव होने के 27 दिनो बाद 4 मई को उसकी रिपोर्ट निगेटिव आई है। दुनिया भर में हजारों लोगों की जान ले चुके इस घातक वायरस ने जब इस मासूम को अपनी चपेट में लिया था तो घर वालों का भी कलेजा कांप गया। बाकी घरवालों के भी सैम्पल लिया गया लेकिन सभी की रिपोर्ट नेगेटिव ही रही। निम्बाहेड़ा के माहेश्वरी मोहल्ले में रहने वाली 2 साल की मासूम सावी 27 दिनों तक अपने माता-पिता सौरभ बोडाना और आकांक्षा बोडाना से दूर रही। कई दिनों से याद कर कर वह रोई लेकिन दादी ने अपनी रोती पोती को देख हौसला नहीं खोया। अपनी पोती की पूर्ण देखरेख की। अंतर्राष्ट्रीय बाल सुरक्षा दिवस के अवसर पर ये सभी के लिए एक बहुत बड़ा उदाहरण है। जानकारी के अनुसार सावी की 4 मई को रिपोर्ट पॉजिटिव पाकर एक बारगी घर वाले भी डर गए। बच्ची को तुरंत 13 दिनों के लिए क्वॉरेंटाइन किया गया। उसके संपर्क में आने वालो के भी जांच हुई। माता, पिता और दादाजी सुरेश बोडाना को भी क्वॉरेंटाइन कर दिया गया। हालांकि परिवार में सावी के अलावा किसी की भी रिपोर्ट पॉजिटिव नहीं आई। 13 दिनों के बाद सावी 14 दिन और होम क्वॉरेंटाइन में रही। वह अपने दूसरे मकान में होम क्वॉरेंटाइन में रही। घर लौटी तो इसके परिवार की खुशियां भी लौट आई। निंबाहेड़ा के जिस क्षेत्र में बोडाना परिवार रहता है उस क्षेत्र में सबसे ज्यादा कोरोना के मरीज सामने आए थे। यहां पर यह क्षेत्र अभी भी रेड जोन एरिया में शामिल है और कर्फ्यू की घोषणा है। ऐसे में अधिकांश लोग घरों में बंद होकर सभी के स्वस्थ होने का इंतजार कर रहे हैं। इन सबके बीच मकान के खुले दरवाजे से यह लोगों को आते जाते या खिड़कियों से झांकते लोगों को देख अपने अस्पताल में बिताए दिनों की याद ताजा हो जाती है। जानकारी में सामने आया कि बोडाना जैन समाज में आते हैं तथा क्वॉरेंटाइन के शुरुआती दिनों में इन्हें भारी दिक्कत का सामना करना पड़ा था। यह परिवार लहसुन व प्याज का सेवन नहीं करते हैं। ऐसे में भोजन को लेकर भी भारी दिक्कत हुई थी। इसे लेकर प्रशासनिक अधिकारियों से आग्रह किया था। वहीं अस्पताल में भर्ती सावी को लेकर भारी दिक्कत हो गई। 2 वर्ष की आयु में बच्चे चॉकलेट, कुरकुरे, चिप्स आदि खाने में ही समय निकालते हैं। खिलौना में रमते पूरा दिन निकल जाता है लेकिन अस्पताल में जहां इन्हें भर्ती किया वहां ऐसी कोई सुविधा नहीं थी। अस्पताल के बेड पर ही सारे दिन निकल गए। दादी की बातें और कहानियां में रम कर ही सावी ने 27 दिन निकाले।
इनका कहना है-
कोरोना के एपिक सेंटर बने निम्बाहेड़ा में दो साल की बालिका कोरोना पॉजिटिव आई तो उसकी देखभाल को लेकर चिंतित थे। इसकी दादी ने इसके साथ रहने का निर्णय किया। बहुत अच्छे से इसे रखा। इस बालिका के परिवार और पड़ोस में कोई पॉजिटिव नहीं था। बड़ी बात यह रही कि संक्रमित के साथ रह कर भी दादी कोरोना पॉजिटिव नहीं आई। बहुत अच्छे से इसकी देखभाल हुई और इन्होंने कोरोना को मात दी।
डॉ मंसूर खान, पीएमओ, उप जिला चिकित्सालय निम्बाहेड़ा
डॉ मंसूर खान, पीएमओ, उप जिला चिकित्सालय निम्बाहेड़ा