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भुवनेश व्यास (अधिमान्य स्वतंत्र पत्रकार)
लाॅकडाउन के बाद देश भर में बढ़ी कोरोना मरीजों की संख्या के बाद अब सरकारों के जहां हाथ पांव फूलने लगे हैं तो आम जनता सिर पर मंडरा रहे खतरे को जानने के बावजूद भी अंजान बन बेखौफ विचरण कर रहे हैं। हालात यह है कि सरकारें अपने राजस्व की चिंता में तो आमजन रोजी रोटी की लालसा में कोरोना को नजर अंदाज कर रहे हैं जो आने वाले समय में और घातक रूप में सामने आ रहा है और अब निरंतर मौतों का आंकड़ा डरा रहा है।
केंद्र सरकार ने मार्च में कोरोना के फैले डर के चलते देश भर में लाॅकडाउन का निर्णय लिया और तीन माह बाद इसे शनेः शनेः खोल दिया, लाॅकडाउन खोलने के पीछे केंद्र की मंशा से ज्यादा राज्य सरकारों ने अपने राजस्व की चिंता और अंदरखाने राजनीति की मंशा के चलते अपने दम पर कोरोना से निपटने का दावा किया। तीन माह तक अपने व्यवसाय बंद रहने के चलते व्यापारियों ने भी अपनी कमाई का रोना रोया तो दिहाड़ी मजदूरों को भी सरकारें घर बैठे खिला खिलाकर एक तरह से तंग आ चुकी और आखिरकार सब कुछ खोल दिया। सब कुछ खुलने के पंद्रह दिनों तक कोरोना गाहे बगाहे सामने आता रहा लेकिन इसके बाद कोरोना को रास्ते मिल गये और वह भी बेखौफ हो चुके लोगों के शरीर में प्रवेश करने लग गया। एक माह के भीतर घर घर में कोरोना की उपस्थिति दर्ज होने लगी और अब हालात यह हो गये कि जिस घर में कोरोना उस घर में किसी ना किसी की मौत का सिलसिला चल पड़ा है। मौतों की स्थिति यह हो गई है कि लाॅकडाउन के बाद बढ़ी कुल मृत्यु दर में से शुद्ध कोरोना से मरने वालों की दर जहां 5 से 8 प्रतिशत थी वह दर बढ़कर अब तीस प्रतिशत तक पहुंच गई है, शेष तो किसी ना किसी गंभीर बीमारी से पहले ही ग्रस्त रहें है और कोरोना के कारण उनकी असमय ही मृत्यु हो गई। स्थिति भयावह होती जा रही है जिससे सरकारों में व लोगों में डर बैठ रहा है लेकिन अब हालात यह हो गये कि सरकार या आमजन करें तो क्या करें ।
राज्य सरकारों ने लाॅकडाउन खोलने के साथ केंद्र सरकार को अपने स्तर पर कोरोना से निपटने का आश्वासन दिया और प्रयास कर भी रही हैं लेकिन सरकार को अधिकारी गुमराह कर रहे हैं और मौतों का आंकड़ा मरीजों के मुकाबले एक से डेढ़ प्रतिशत बता रहे हैं लेकिन वे यह नहीं बता रहे हैं कि इनमें कोरोना से ही मरने वालों की संख्या की दर 30 प्रतिशत हो गई है। इसमें भी कई मरीज तो 50 वर्ष से भी कम आयु के हैं। इस भयावह स्थिति को सामान्य बताकर नकारा नहीं जा सकता है। राज्य सरकारें अब गंभीर कोरोना मरीजों के लिए ना आॅक्सीजन उपलब्ध करवा पा रही है और ना ही अस्पतालों में बिस्तर की व्यवस्था कर पा रही है। सभी बड़े शहरों में सरकारी अस्पतालों के साथ निजी अस्पतालों को वहां की आबादी के लिहाज से रिजर्व कर दिया गया है जिसके चलते आसपास के छोटे, मध्यम शहरों व गांवों से आने वाले गंभीर मतरजों के लिए पैसा देने के बावजूद कोई व्यवस्था नहीं है क्योंकि छोटे व मध्यम आबादी वाले शहरों में अवस्थित राजकीय व निजी अस्पतालों में ना तो पर्याप्त आॅक्सीजन और ना ही वेंटीलेटर की व्यवस्था है जिसके कारण वहां से मरीजों को बड़े शहरों में रैफर कर दिया जाता है और वहां बेड रिजर्व के चलते उपचार के अभाव में मरीज दम तोड़ रहे है। वहीं चिकित्सकों की माने तो कोरोना ने अब एक बार फिर से अपना स्वरूप बदला है और अब वह पकड़ में आने से पहले ही लोगों को अपना शिकार बना रहा है।
कोरोना को इस मजबूत स्थिति में पहुंचाने के लिए हमारे जन प्रतिनिधि और आम जनता खुद जिम्मेदार है। हमारे जनप्रतिनिधि अपनी राजनीतिक लालसा के चलते खुद कोरोना संक्रमण झेलने के बावजूद भी सबक नहीं ले रह है और धरना प्रदर्शन व अन्य कार्यक्रमों का आयोजन कर खुद सहित अपने कार्यकर्ताओं को कोरोना के खुले मुंह के सामने परोस रहे हैं, यही नेता जब खुद संक्रमित हो रहे हैं तो वे अपने प्रभाव के चलते बड़े शहरों के उच्च सुविधा सम्पन्न अस्पतालों में जाकर उपचार करवा ठीक हो रहे हैं जबकि अगर यह नेता भी अपने क्षेत्र के कोविड सेंटरों में उपचार करवाए तो उन्हें अपनी ही सरकारों की हकीकत देखने को मिल जाएगी कि इन सेंटरों में आम जनता के लिए क्या व्यवस्थाएं है। यही हाल संक्रमित हो रहे अधिकारियों व चिकित्सकों का है जो अपने ही बनाए सेंटरों पर उपचार के लिए नहीं जाना चाहते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि हम कोई व्यवस्थाएं नहीं कर पा रहे हैं। बदहाल सरकारी व्यवस्थाओं के बीच आमजन भी कोई सबक सीखने को तैयार नहीं है और बेखौफ होकर वे भी सामाजिक कार्यक्रमों के नाम पर भीड़ का हिस्सा और आयोजक बन रहे हैं, इतना ही नहीं बल्कि आमजन की कोरोना को आमंत्रण देने की करतूतें थम नहीं रही और कोरोना संक्रमित व्यक्ति होम कोरंटाईन के नाम पर घर के एक कोने में भी कैद नहीं रह घर में व आसपास खुले विचरण कर अपने घर के अन्य सदस्यों के साथ साथ आस पड़ौस के लोगों में भी कोरोना प्रसाद की तरह वितरित कर रहे है।
दिनों दिन विकराल रूप लेते जा रहे कोरोना और इससे निपटने में लाचार हो चुकी सरकारों भरोसे अब नहीं रहा जा सकता है, अब जैसा सरकारें कह रही है वैसा खुद जनता को ही अपना बचाव करना होगा। व्यवसायी अपने व्यापारिक संस्थाओं को खुला रखने की समय सीमा को स्वयं ही सीमीत करें और जनता सामाजिक कार्यक्रमों को छोटे स्वरूप में बल्कि सांकेतिक स्वरूप में करने का निश्चय करें अन्यथा ऐसा ना हो कि सामाजिक प्रतिष्ठा व ज्यादा कमाने के फेर में हम अपनों की ही तस्वीरों पर माला चढ़ाने तक ना पहुंच जाए।