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वीरेन्द्र बहादुार सिंह
पति के स्वास्थ्य-सुरक्षा और लंबी आयु की कामना के लिए रखा जाने वाला करवा चौथ या छठ का व्रत आज तमाम शिक्षित स्वतंत्र और आत्मनिर्भर महिलाएं भी करती हैं। यह देख कर मन में यह सवाल उठता है कि एक तरफ जहां व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक बंधनों से मुक्तजीवन की बातें की जाती हैं, वहीं दूसरी ओर पति के लिए इस तरह के व्रत रख कर दीर्घ आयु की कामना की जा रही है। आखिर दोनों को किस तरह उचित कहा जा सकता है।एक तरफ समानता के लिए रेस और दूसरी तरफ पति के लिए अनोखा समर्पण--- मन में सवाल पैदा होना स्वाभाविक हैै। तमाम महिलाए पूछती हैं कि पति के स्वास्थ्य-सुरक्षा और लंबी आयु के लिए पत्नियां ही क्यों व्रत रखती हैं? पति तो कोई उपवास-व्रत या प्रार्थना करता नहीं। केवल महिलाओं को ही यह सब क्यों करना पड़ता है? मन में इस तरह के सवाल पैदा होने के बावजूद केवल गांव की ही नही, शहरों की भी तमाम महिलाएं चली आ रही इस परंपरा के श्रद्धा की वजह से करवा चौथ, छठ या तीज जैसे व्रत खुशी-खुशी रखती हैं।पति द्वारा शोषित और पति के प्रेम के अभाव में जीने वाली महिलाएं भी जब पति के जीवन की मंगल कामना रती हैं तो सवाल यह उठता है कि आखिर भारतीय महिलाएं किस मिट्टी की बनी हैं। आज की पढ़ी-लिखी और स्वतंत्र मिजाज की बुद्धिशाली महिलाएं भी किस तरह पौराणिक किस्से-कहानियों पर विश्वास कर लेती हैं? इसमें उनको कौन सा लॉजिक दिखाई देता है? इस तरह के अनेक सवाल पति के लिए व्रत-जप-तप करने वाली महिलाओं से पूछा तो उनके जवाबों से जो निष्कर्ष निकल का आया, वह सचमुच मजेदार है।शिक्षित या अशिक्षित किसी भी प्रकार की महिलाएं अगर इस तरह का कोई