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छोटीसादड़ी। खेतों में इनदिनों वतावरण में मादकता की गंध फैलाते अपने पूरे योवान पर आई अफीम की फसल में किसानों ने शुभ मुहूर्त में विधि विधान से मां काली की पूजा अर्चना के साथ अफीम की फसल के डोडे की लुआई-चिराई शुरू कर दी। अफीम को यूं ही काला सोना नहीं कहा जाता है। किसानों को बुआई से लेकर तौल तक इसे सोने की तरह ही सहेजना पड़ता है। अफीम की फसल को किसान कड़ी मेहनत से पाल-पोसकर बड़ी करते हैं। उपखंड क्षेत्र में अफीम ख़ेतो में फूल के बाद डोडे आने के बाद काला सोना कही जाने वाली अफीम फसल यौवन पर आने के बाद अफीम किसानों ने इनदिनो शुभ मुहूर्त में अफीम लेने के लिए डोडों पर चीरा लगाने उसके दूध को संग्रहण करने का काम शुरू कर दिया है। जानकारी अनुसार क्षेत्र में रविवार को कुछ किसानों ने चिराई लुआई का काम शुरू कर दिया है। शेष किसान भी मुर्हुत में यह कार्य शुरू करेंगे। क्षेत्रिय भाषा में नाणा कही जाने वाली परंपरा में किसान परिवार खेत पर शुभ दिशा में नवदुर्गा की स्थापना कर माता को रोली बांधकर घी तेल के दीपक जला अगरबत्ती लगाकर पूजा अर्चना कर नारियल चढ़ाया गया। इसके बाद पांच पौधों पर रोली बांधकर उनके डोड़ो पर चीरा लगाकर शुरुआत की। अंत में सभी को गुड़-धनिया नारियल का प्रसाद बांटा गया।
खेतो पर गुजर रहे किसानों के दिन और रात
कई किसानों ने तो खेतों पर झोपडिय़ां बना ली हैं, जहां रहकर दिन-रात रखवाली कर रहे हैं। गौरतलब है कि माता की पूजा अर्चना करने की परंपरा लंबे समय से चल रही है। इसके बाद ही अफीम डोड़ो में सुबह लुवाई (दुग्ध संग्रहण) दोपहर को नक्खों से चिरा लगाया जाता है। डोडों से रोज निकलने वाले दूध को एकत्र कर बाद में सरकार को दिया जाएगा। काला सोना माने जाने वाली अफीम की फसल पर कोई बुरी नजर नहीं लग जाए इसके लिए इन दिनों किसान रात-दिन रखवाली के साथ कई टोटके भी कर रहे हैं। क्षेत्र के कई गांवों में अफीम किसानों ने माताजी की पूजा अर्चना कर फसल में चिराई लुवाई का काम शुरू कर दिया। अफीम उत्पादकों के डोडों पर चीरा लगाने से उनकी दिनचर्या बदल गई है। उपखंड के उत्पादकों का अधिकांश समय इन दिनों खेतों पर बीत रहा है। बच्चे भी खेल के बजाय फसल की रखवाली में लगे हुए हैं। अधिकांश जगह डोडा चिराई का काम शुरू हो चुका है,तो कुछ स्थानों पर देरी से फसल की बुवाई करने से चिराई अब शुरू होगी।
ऐसे होती है अफीम की फसल
रबी की फसल में अफीम की खेती शुमार होती है। अक्टूबर से नवम्बर तक इसकी बुवाई की जाती है। दिसम्बर -जनवरी में यह फसल यौवन पर रहती है एवं डोडियों से पौधे लद जाते हैं। फरवरी से लेकर मार्च तक इसमें चीरा लगता है। डोडे में लगे चीरे से जो दूध निकलता है वही अफीम कहलाता है। बुवाई होने के बाद से चीरा लगने एवं तुलाई नहीं होने तक किसानों की कड़ी मेहनत होती है। डोड़े तैयार होने के बाद विशेष औजार के द्वारा इनको चीरा लगाकर उससे निकलने वाले दूध को भी विशेष तरीके से एकत्रित किया जाता है। यही एकत्रित दूध काला सोना यानि अफीम होती है,जो कि एक निर्धारित मात्रा में इकट्ठी कर नारकोटिक्स विभाग को तुलवाई जाती है। मादक पदार्थ की श्रेणी में आने के कारण इस अफीम की सुरक्षा इंतजाम को लेकर काश्तकारों में विशेष चिंता नजर आती है।