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श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय निंबाहेड़ा के विभागाध्यक्ष ज्योतिष डॉ. मृत्युञ्जय कुमार तिवारी ने बताया कि भारतीय पंचांग के अनुसार नारद जयंती प्रति वर्ष ज्येष्ठ माह में कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाई जाती है, जो कि इस बार 27 और 28 मई को पड़ रही है। ऋषि नारद भगवान नारायण के भक्त हैं, जो भगवान विष्णु जी के रूपों में से एक हैं। साथ ही नारद मुनि को देवताओं के संदेशवाहक के तौर पर भी जाना जाता है। नारद मुनि कई बार आवश्यक सूचनाओं का आदान-प्रदान भी करते थे। वह तीनों लोकों में संवाद का माध्यम बनते थे। ऐसे में कई स्थानों पर उन्हें पहले पत्रकार की संज्ञा भी दी गई है। नारद जयंती सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है, जो सैकड़ों हजारों सनातनी भक्तों द्वारा मनाया जाता है। भगवान के दूत नारद के जन्म दिवस के उपलक्ष में नारद जयंती मनाई जाती है। उन्हें देवताओं का दिव्य दूत और संचार का अग्रणी माना जाता है। ऋषि नारद या देवर्षि नारद मुनि विभिन्न लोकों में यात्रा करते थे, जिनमें पृथ्वी, आकाश, और पाताल का समावेश होता था ताकि देवताओं और देवताओं तक संदेश और सूचना का संचार किया जा सके। उन्होंने गायन के माध्यम से संदेश देने के लिए अपनी वीणा का उपयोग किया। ऋषि नारद भगवान विष्णु के सबसे बड़े भक्तों में से एक थे, ऋषि नारद मुनि भगवान विष्णु के अनन्य भक्त हैं। वे परमपिता ब्रह्मा जी की मानस संतान माने जाते हैं। ऋषि नारद मुनि प्रकाण्ड विद्वान थे। वह हर समय नारायण-नारायण का जाप किया करते थे। नारायण विष्णु भगवान का ही एक नाम है। उनके स्वरूप की बात करें तो उनके एक हाथ में वीणा और दूसरे हाथ में वाद्य यंत्र है। पुराणों की कथा के अनुसार नारद मुनि का जन्म सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी की गोद से हुआ था। ब्रह्मवैवर्तपुराण के मतानुसार ये ब्रह्मा के कंठ से उत्पन्न हुए थे। इसीलिए नारदमुनि को ब्रह्मा का मानस पुत्र माना जाता है। एक अन्य कथा के अनुसार दक्षपुत्रों को योग का उपदेश देकर संसार से विमुख करने पर दक्ष क्रुद्ध हो गए और उन्होंने नारद का विनाश कर दिया। फिर ब्रह्मा के आग्रह पर दक्ष ने कहा कि मैं आपको एक कन्या दे रहा हूं, उसका कश्यप से विवाह होने पर नारद पुनः जन्म लेंगे।
पुराणों में ऐसा भी उल्लेख मिलता है कि राजा प्रजापति दक्ष ने नारद को शाप दिया था कि वह दो मिनट से ज्यादा कहीं रुक नहीं पाएंगे। यहीं वजह है कि नारद अक्सर यात्रा करते रहते हैं। अथर्ववेद में भी अनेक बार नारद नाम के ऋषि का उल्लेख है। भगवान सत्यनारायण की कथा में भी उनका उल्लेख है। एक कथा के अनुसार दक्ष प्रजापति के 10 हजार पुत्रों को नारदजी ने संसार से निवृत्ति की शिक्षा दी जबकि ब्रह्मा उन्हें सृष्टिमार्ग पर आरूढ़ करना चाहते थे। ब्रह्मा ने फिर उन्हें शाप दे दिया था। इस शाप से नारद गंधमादन पर्वत पर गंधर्व योनि में उत्पन्न हुए। इस योनि में नारदजी का नाम उपबर्हण था। यह भी मान्यता है कि पूर्वकल्प में नारदजी उपबर्हण नाम के गंधर्व थे। कहते हैं कि उनकी 60 पत्नियां थीं और रूपवान होने की वजह से वे हमेशा सुंदर स्त्रियों से घिरे रहते थे। इसलिए ब्रह्मा ने इन्हें शूद्र योनि में पैदा होने का शाप दिया था। इस शाप के बाद नारद का जन्म शूद्र वर्ग की एक दासी के यहां हुआ। जन्म लेते ही पिता के देहान्त हो गया। एक दिन सांप के काटने से इनकी माताजी भी इस संसार से चल बसीं। अब नारद जी इस संसार में अकेले रह गए। उस समय इनकी अवस्था मात्र पांच वर्ष की थी। एक दिन चतुर्मास के समय संतजन उनके गांव में ठहरे। नारदजी ने संतों की खूब सेवा की। संतों की कृपा से उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ। समय आने पर नारदजी का पांचभौतिक शरीर छूट गया और कल्प के अन्त में ब्रह्माजी के मानस पुत्र के रूप में अवतीर्ण हुए। नारद जयंती के दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें। वस्त्र धारण करें और पूजाघर की साफ-सफाई करें। साथ ही व्रत का संकल्प लेवे, इसके बाद ऋषि नारद का ध्यान करते हुए पूजा-अर्चना करें। नारद मुनि को चंदन, तुलसी के पत्ते, कुमकुम, अगरबत्ती, पुष्प, धूप चढ़ाएं । साथ ही अपनी सामर्थ्य के अनुसार जरूरतमंदों को दान दें। ऋषि नारद मुनि भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार नारद जी ब्रह्मा जी के मानस पुत्र हैं। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन नारद जी की पूजा आराधना करने से भक्तों को बल, बुद्धि और सात्विक शक्ति की प्राप्ति होती है। पुराणों के अनुसार नारद मुनि न सिर्फ देवताओं, बल्कि असुरों के लिए भी आदरणीय हैं। इस दिन व्रत रखने से पुण्य की प्राप्ति होती है और साथ ही भक्तों की हर प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, नारद जयंती सभी को मनानी चाहिए परंतु पत्रकारिता से जुड़े हुए लोगों को विशेष रूप से आयोजन कर के इसका लाभ लेना चाहिए ।