इकोसिस्टम की पुनः बहाली
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डॉ हेमलता मीणा

एसोसिएट प्रोफेसर, इतिहास, उच्च शिक्षा विभाग, राजस्थान सरकार

महात्मा गांधी जी ने कहा था कि " पृथ्वी सभी मनुष्यों की जरूरत पूरी करने के लिए पर्याप्त संसाधन प्रदान करती है लेकिन लालच पूरा करने के लिए नहीं " इससे यह स्पष्ट है कि पृथ्वी पर जितने भी प्राणी है उन सब को पृथ्वी पर्याप्त संसाधन प्रदान करती रही है लेकिन आधुनिक युग में हम देख रहे हैं कि सब प्राणियों में से सिर्फ मनुष्य लालच की सारी सीमाएं पार कर गया है और पृथ्वी के सीमित संसाधनों का दोहन अत्यंत ही गलत तरीके से कर रहा है। संसाधनों के असंतुलित उपयोग के कारण हमारा पर्यावरण आज संकट में है और इस पर्यावरण की खराबी के कारण बहुत सारी आपदाएं पैदा हो रही है जिन्हें मानव झेल भी रहा है। उदाहरण के लिए तूफान और चक्रवातो की आवृत्ति में तेजी, कोरोना वायरस जैसी महामारीयों का पदार्पण इत्यादि ऐसी ही आपदाएं हैं जिनके लिए मानव स्वयं जिम्मेदार है।
ज्ञात इतिहास में पर्यावरण को मानव ने कभी भी इतना दूषित नही किया था जितना पिछले कुछ 100 सालों में किया है।यह भी एक तथ्य है कि हमे ज्ञात इतिहास में विश्व की इतनी ज्यादा जनसंख्या का भी कोई सबूत नहीं मिलता।पिछली कुछ शताब्दियों में जैसे जैसे मानव की जनसंख्या में वृद्धि हुई हैं वैसे वैसे ही पृथ्वी के पर्यावरण का मानव ने अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए अंधाधुंध दोहन बढ़ाया है। इसका दुष्प्रभाव यह हुआ है कि आज भले ही मानव विज्ञान और तकनीकी रूप से समृद्ध दिखाई देता है लेकिन दूसरी तरफ नई नई परेशानियों के सामने लाचार नज़र आता है।उदाहरण के लिए COVID19 को ही लीजिए:-पिछले डेढ़ साल से दुनिया बुरी तरह इस वायरस के कारण त्रस्त है।लाखो लोग इस महामारी की भेंट चढ़ गए है।दुनियाभर के देशों की अर्थव्यवस्था चौपट हो चुकी हैं जिसे उबरने में अभी कई साल लग सकते है और सच यह है कि अभी तक कोई कारगर इलाज इस बीमारी का नही ढूंढा जा सका है।यह सब पर्यावरण की नैसर्गिक व्यवस्था में मानवीय हस्तक्षेप का परिणाम है। हम जानते हैं कि पर्यावरण की रक्षा हमसे ठीक से नहीं हो रही है ।किसी भी प्राणी का इस पृथ्वी पर अस्तित्व पर्यावरण की शुद्धता पर निर्भर करता है। औद्योगिकरण और पूंजीवाद के कारण कुछ सालों से हम देख रहे हैं कि दुनिया का पर्यावरण तेजी से बदल रहा है जिसके कारण दुनिया में कई जीवों की प्रजातियां विलुप्त हो चुकी है और कई विलुप्ति के कगार पर हैं ।कई पशु पक्षीयों की प्रजातियां खतरे में है इसका सीधा अर्थ है कि यदि पशु पक्षियों को खतरा होगा तो आने वाले समय में मानव पृथ्वी पर सुरक्षित कैसे रहेगा?वास्तव में तो पक्षी पर्यावरण के संकेत हैं ।यदि वे खतरे में है तो यह हमें भी जानना चाहिए कि हम भी जल्द ही खतरे में होंगे ।हम गलती यह कर रहे है कि हमने पृथ्वी को सिर्फ अपना मान लिया पर सच यह है कि पृथ्वी हमारी नहीं है बल्कि हम पृथ्वी के हैं।अगर हम पर्यावरण का इसी तरीके से नाश करेंगे तो निश्चित रूप से हमारे पास भविष्य में हमारा समाज नहीं बचेगा ।
आने वाले समय मे पृथ्वी के संसाधनों के दोहन की तस्वीर यही रही तो न जंगल बचेंगे,न ही खनिज संपदा और न ही जल व स्वच्छ आबोहवा जो मानव ही नही बल्कि सभी प्राणियों के अस्तित्व को बनाये रखने के लिए अत्यंत जरुरी है।ऐसी स्थितियों से चिंतित होकर ऑल्डो लियोपोल्ड ने तो कहा कि "मैं खुश हूं कि मैं ऐसे भविष्य में युवा नहीं होऊंगा जिसमें जंगल ना हो।"उनका कहने का अर्थ यह है कि भविष्य में जंगल नहीं बचेंगे तो पृथ्वी पर मानव के अस्तित्व के लिए गंभीर संकट पैदा हो सकता हैं । अतः हमे वैश्विक स्तर पर ठोस उपाय तत्काल करने की आवश्यकता है ।
इस वर्ष की पर्यावरण दिवस की थीम है इकोसिस्टम की पुनः बहाली यानी पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली।इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस को पाकिस्तान होस्ट कर रहा है और इस अवसर पर पाकिस्तान एक अभियान शुरू कर रहा है जिसके अंतर्गत 10 बिलियन पेड़ लगाए जाएंगे ।पृथ्वी के पर्यावरण को बचाने के लिए जितने जंगल विकास के नाम पर काटे गए हैं उनकी भरपाई जरूरी है।हम सब मिलकर फिर से कल्पना करें ,पुनः सृजित करे ,व पुनः बहाली करे अर्थात इकोसिस्टम का रेस्टोरेशन ही इस वर्ष के पर्यावरण दिवस की थीम है।यह थीम वास्तव में अत्यंत महत्वपूर्ण है यदि हमने सबने मिलकर इकोसिस्टम को रिस्टोर कर दिया तो हमारा पर्यावरण हमारे लिए सुखदायी बन जायेगा।
विश्व पर्यावरण दिवस संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा प्रकृति को समर्पित दुनिया भर में मनाए जाने वाला सबसे बड़ा उत्सव है और यदि इस उत्सव के उद्देश्यों को हम वास्तविक धरातल पर उतार दें तो हम वाकई पर्यावरण की पुनः कल्पना, पुनरुत्थान और फिर से उसे स्वच्छ बना सकते हैं ।संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के अनुसार रीस्टोरेशन से एक तिहाई उन समस्याओं का समान हो सकता है जो 2030 के सतत विकास के एजेंडे में ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेंटीग्रेड से नीचे रखने का तय किया गया है। रीस्टोरेशन की मदद से 60 प्रतिशत जैव विविधता जो विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी हैं को बचाया जा सकता है। इसके महत्वपूर्ण आर्थिक, सामाजिक व पारिस्थितिकीय पहलू भी है ,उदाहरण के लिए अकेले एग्रोफ़ोरेस्ट्री में 1.3 बिलियन लोगो के लिए खाद्य सुरक्षा बढ़ाने की क्षमता है। इकोसिस्टम के रीस्टोरेशन से हम सतत विकास के सभी 17 लक्ष्यों को सन 2030 तक प्राप्त कर सकते हैं, जिसमें गरीबी और भूख से मुक्ति भी शामिल है।आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि दुनिया की आधी जीडीपी प्रकृति पर निर्भर करती है तथा जंगल दुनिया की एक तिहाई आबादी को जल उपलब्ध कराते हैं ।इसके अलावा जंगल 80 प्रतिशत एम्फिबियन, 75 प्रतिशत पक्षीयों और 68 प्रतिशत स्तनधारी जीवो का घर भी है ।इकोसिस्टम पर लगभग 2 बिलियन लोग कृषि जैसे जीविका के साधनों के सहारे निर्भर है। वृक्षों की पर्यावरण को सुरक्षित रखने में भूमिका का पता इसी बात से लगा सकते हैं कि स्ट्रीट पेड़-पौधे तापमान को 0.5 से 2 डिग्री तक गर्मियों के दिनों में कम करने में मदद करते हैं जिससे करीब 68 मिलियन लोग को फायदा होता है ।पारिस्थितिकीय तंत्र के असंतुलन से कई गंभीर पर्यावरणीय खतरे पैदा हो रहे है।
इकोसिस्टम के डिग्रेडेशन से पहले ही करीब 3.2 बिलियन लोग प्रभावित हो चुके है जो दुनिया की जनसंख्या का 40 प्रतिशत है । वनों के काटने की रफ्तार बढ़ती जा रही हैं,प्रत्येक वर्ष हम करीब 10 मिलियन हेक्टेयर जंगल खोते जा रहे हैं। भूमि के अपरदन से हम दुनिया की उपजाऊ भूमि में तेजी से कमी होती जा रही है ।मृदा के अपरदन से पहले ही 3.2 बिलियन लोगो के कल्याण पर असर हुआ है जो कि विश्व जनसंख्या का 40 प्रतिशत है । हम हर साल इकोसिस्टम सेवाओं का ग्लोबल आउटपुट का 10 प्रतिशत से अधिक हम खोते जा रहे हैं । सन 1970 के बाद से लगभग 30 प्रतिशत प्राकृतिक स्वच्छ जल इकोसिस्टम से गायब हो गया है ।इकोसिस्टम में डिग्रेडेशन से मानव कल्याण बुरी तरह प्रभावित हुआ है। एक अनुमान के अनुसार 700 मिलियन लोग भूमि के अपरदन और जलवायु के बदलने से 2050 तक माइग्रेट कर सकते हैं। इकोसिस्टम के डिग्रेडेशन से मानव और जंगली जीवो का संपर्क बढ़ेगा और ये विपरीत परिस्थितियां कोविड-19 जैसी भयानक महामारियों का विस्फोट करने में अधिक सहायक बनेगी व मानव जीवन के पृथ्वी पर अस्तित्व को एक बड़ी चुनौती देगी।इसलिए बेहतर है कि हम आज से ही पारिस्थितिकीय तंत्र को ठीक करने के लिए ठोस उपाय करना शुरू कर दे अन्यथा मानव भी पृथ्वी पर अन्य कई प्राणियों की तरह विलुप्त होकर एक इतिहास बन सकता है।


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