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हरिनारायण मीना, आईआरएस व योग प्रशिक्षक
योग भारत की आत्मा में रचा बसा है। योग महज व्यायाम का नाम नही है। योग अत्यंत गहन विद्या है। योग शरीर को संपूर्णता से साधने की भारत मे विकसित विधा है।मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के कल्याण के लिए मानव के पास पूरी दुनिया मे योग जैसी कला और कोई नहीं है। यह हमारा सौभाग्य है कि भारत के आदि निवासियों ने, यहां के प्राचीन लोगो ने सदियों में योग जैसी एक अत्यंत वैज्ञानिक और असरदार विधा को विकसित किया जो शताब्दियों से भारत के लोगो को लाभान्वित करती आ रही है।
महर्षि पतंजलि ने ज्ञात इतिहास में पहली बार योग विद्या को अपने योग सूत्रों में आज से लगभग ढाई हजार साल पहले व्यवस्थित रूप दिया। पर योग पतंजलि से पहले से भी हज़ारो वर्षो से चली आ रही विधा है। योग विद्या के उपस्थित होने के प्राचीनतम ऐतिहासिक प्रमाण हमें सिन्धु घाटी सभ्यता के अवशेषों में मिलते है। सिंधु घाटी सभ्यता से पहले भी योग विद्या के अस्तित्व को नकारने के कोई प्रमाण हमारे पास नही है। इसका मतलब यह है कि योग हज़ारो वर्षो से भारत में विकसित विधा है,जो मानवता के कल्याण के लिए ही है। योग में मानवता को शारीरिक ही नही मानसिक रूप से भी स्वस्थ रखने की शक्ति है। योग की इसी शक्ति की पहचान आज के वैज्ञानिक युग मे भी वैश्विक स्तर पर स्वीकार की जा चुकी है। आज योग की कला एक विश्व धरोहर में बदल चुकी है। विश्व समुदाय ने संयुक्त राष्ट्र संघ के मंच के माध्यम से योग के प्रभावों और इसकी मानव जीवन में उपयोगिता को देखते हुए सन 2015 से प्रत्येक वर्ष 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाना शुरू किया ताकि दुनिया भर में लोग योग से परिचित हो सके और विश्व के लोग अपने स्वास्थ्य की बेहतर उन्नति में इसको अपने जीवन का हिस्सा बना सके। इस वर्ष की अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की थीम भी "कुशलक्षेम के लिए योग" है।
जैसा कि हम सब जानते है कि सन 2019 के अंत से दुनिया कोरोना वायरस महामारी से जूझ रही हैं। विश्व ने कोरोना से सिर्फ अपनो को ही नही खोया। बल्कि करोड़ो लोगो ने जीविकोपार्जन भी खोया है। जिसकी वजह से कोरोना वायरस ने मानव सभ्यता पर इतिहास की अब तक की सबसे दर्दनाक चोट की है। मानव आज सिर्फ शारीरिक रूप से ही नही मानसिक तनाव से भी जूझ रहा है।कोरोना महामारी से जूझते संसार के सम्पूर्ण कल्याण के लिए योग से बेहतर कोई विधा नही है। योग के आठ अंग है। लेकिन लोग आज दुर्भाग्य से कई लोग योग के सिर्फ तीसरे अंग 'आसन' को ही योग मानने की भूल कर प्रचारित कर रहे है। योग सिर्फ कलाबाजी नही है जैसा कि आज के तथाकथित योगी दर्शा रहे है। योग के आसन वाले अंग तक पहुंचने से पहले यम और नियमो को साधना होता है। जहां सत्य, अहिंसा, शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय ,अस्तेय जैसी सीढ़ियों को पार करने के बाद आसन तक पहुंचने का मार्ग व्यक्ति तय करता है। यदि इनको सही में साध लिया तो उस योग साधक को चिंता,भय और लालच जैसे विकार छू भी नही सकते। जहां आसन व प्राणायाम शारीरिक शुद्धि के लिए आवश्यक है। वही, यम, नियम, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा और समाधि व्यक्ति की आत्मिक उन्नति के लिए अत्यंत आवश्यक है।
योग इन आठो अंगों से भी गहरी विधा है। लेकिन आम व्यक्ति यदि इन आठो अंगों को भी साध ले तो उसे शारीरिक और मानसिक व्याधियों से निश्चय ही मुक्ति मिल सकती है।
योग का मानसिक स्वास्थ्य को दुरूस्त करने में चमत्कारिक योगदान है जिसे देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपने ग्लोबल एक्शन प्लान 2018-2030 के लिए भी योग को विशेष रूप से उल्लिखित किया है।
योग के मानव स्वास्थ्य के लिए लाभ किसी से छुपे नही है। हज़ारो वर्षो से भारत मे विकसित इस वैज्ञानिक विधा का अभ्यास अब तक अनगिनत लोगो ने किया है।मानव सभ्यता के सामने कोरोना जैसी कई महामारियां और आपदाएं भारत के लोगो ने देखी और झेली है। लेकिन योग जैसी एक सर्व कल्याणकारी विद्या के यहां मौजूद होने से हमने सबका मुकाबला सफलता पूर्वक किया और अपना अस्तित्व भी बचाये रखने में हम अब तक कामयाब रहे हैं। भारत की विशाल जनसंख्या दुनिया में कोरोना जैसी महामारी का मुकाबला करने में आज भी आधुनिक स्वास्थ्य संसाधनों में काफी पिछड़ी हुई हैं। लेकिन हमारे पास सौभाग्य से योग और आयुर्वेद जैसी परंपरागत विधाएं है। जिनकी वजह से हम कठिन दौर का भी मुकाबला कर पा रहे है। कोरोना महामारी के इस मुश्किल दौर में कई एलोपैथिक डॉक्टर्स व विशेषज्ञों ने यह पाया है कि योग के नियमित अभ्यास करने वालो में कोरोना का संक्रमण बहुत कम हुआ और यदि हो भी गया तो उन पर वायरस का असर बहुत ही कम हुआ। इसी कारण ज्यादातर डॉक्टरों ने दवाओं के साथ साथ कोरोना मरीजो कों योग व प्राणायाम करने की सलाह दी और कई अध्ययन इस बात की पुष्टि भी करते है कि योग का अभ्यास जिन मरीजो ने किया वे जल्द स्वस्थ होने में सफल रहे और वे अपने मानसिक स्वास्थ्य का भी प्रबंधन योग के माध्यम से बेहतर तरीके से कर पाए। आज योग एक सार्वभौमिक धरोहर है। संयुक्त राष्ट्रसंघ का भी मानना है कि योग सिर्फ एक व्यायाम नही है बल्कि यह खुद का अस्तित्व, विश्व को पहचानने व प्रकृति से जुड़ने की एक विद्या है। भारत के महान योगाभ्यासी स्व. बी के एस आयंगर का भी कहना था कि योग दैनंदिन जीवन मे संतुलित एटीट्यूड को जन्म देने का रास्ता है व इससे हमें किसी कार्य को निष्पादित करने की बेहतर स्किल इससे मिलती हैं। आज योग के अंतरराष्ट्रीय दिवस के इस पावन पर्व पर मेरा यही निवेदन है कि हम योग को उसके सही रूप में जाने और लोगों में योग और मानव कल्याण में इसके योगदान को प्रचारित प्रसारित करे ताकि अधिकतम लोग योग का फायदा उठाकर अपने जीवन को शारीरिक और मानसिक रूप से और बेहतर बना सके।