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डॉ हेमलता मीना,एसोसिएट प्रोफेसर,इतिहास
योग पूर्णतया भारत में विकसित विद्या है। योग की शुरुआत इतिहास के किस कालखंड में हुई होगी यह किसी को पता नहीं है लेकिन सबसे प्राचीन ऐतिहासिक साक्ष्य इस और इशारा करते है कि सिंधु घाटी सभ्यता के समय भी योग की अनुशासित पद्धति विद्यमान थी। मोहनजोदड़ो से मिली सील इसका प्रमाण है जिसमे योगिनी भद्रासन में बैठी दर्शायी गई है। सिंधु घाटी सभ्यता के क्षेत्र गुजरात के कच्छ इलाको की महिलाएं आज भी इस आसन में बैठी देखी जा सकती हैं।इससे यह भी लगता है कि योग का अविष्कार महिलाओं द्वारा किया हो सकता है।योग दर्शन में साँख्य की तरह प्रकृति की महत्ता है।आधुनिक काल के महान योगी रामकृष्ण परमहंस माँ काली के भक्त थे और माँ प्रकृति का ही रूप है।वह जन्मदात्री है ,वह सृजन की सूत्रधार है। प्राचीन ग्रंथो में उल्लेख मिलता है कि योग और साँख्य एक ही है ।साँख्य ईश्वर को नही मानता। योग दर्शन पर साँख्य का प्रभाव है जो अस्तित्ववादी, प्रयोगवादी व अनुभववादी है। सिंधु घाटी सभ्यता के अगले चरण वैदिक व उत्तर वैदिक काल के कई साक्ष्य योग की परंपरा को अनवरत रखते आये है।उत्तर वैदिक काल मे छठी शताब्दी ई पूर्व योग के साक्ष्य मिलते है ।योग अपने शरीर व मन को नियंत्रित करने की वैज्ञानिक कला है।योग परंपरा में योग दर्शन मानता है कि जो ब्रह्मांड में है वही शरीर मे है इसलिए योग में मनुष्य अपने आपको साधता हैं ।वह ब्रह्मांड को अपने भीतर खोजता है। छठी शताब्दी ई पूर्व के आसपास दो महान योगी हुए है ।महात्मा बुद्ध और महावीर स्वामी। महात्मा बुद्ध से भी पहले महावीर ने योग के बल पर ही इंद्रियों को जीतकर कठोर तप करके महावीर कहलाये थे उनके बाद महात्मा बुद्ध ने भी सत्य की खोज योग के बल पर ही समाधि लगाकर की। महर्षि पतंजलि ने जिस योग का वर्णन अपने योग सूत्र में किया है वह जैन धर्म और बौद्ध धर्म दोनों से प्रभावित है। योग में शांत शुद्ध व एकाग्रता पर बल दिया गया है।
महर्षि पतंजलि के योग में आसान, ध्यान और समाधि बौद्ध धर्म से प्रभावित है वही यम व नियम जैन धर्म से प्रभावित है। योग सूत्र के प्रणेता महर्षि पतंजलि नाग जनजाति के थे और उन्होंने तीन ग्रंथ लिखे व्याकरण भाष्य, योग सूत्र व आयुर्वेद संहिता। वाणी को साधने के लिए व्याकरण भाष्य, चित्त को शुद्ध रखने के लिए योग सूत्र व शरीर को निरोग रखने के लिए उन्होंने आयुर्वेद की रचना की। महर्षि पतंजलि का समय यवन आक्रमण का समय होना चाहिए क्योंकि उन्होंने अपने व्याकरण भाष्य में इसका उल्लेख किया है। भारत पर आक्रमण कर यवनों ने माध्यमिका जो कि वर्तमान का चित्तौड़गढ़ है पर 184 ई पूर्व से 148 ई पूर्व तक घेरा डाल रखा था।
योग के इतिहास में पतंजलि का योगसूत्र मील का पत्थर है।पतंजलि अकेले ऐसे व्यक्ति है जिन्होंने मानव चेतना के रहस्यों को शुद्ध विज्ञान में बदल दिया। भारत मे बाद में योग का इतिहास भारत के दर्शन, यहाँ की कला और विज्ञान में छुपा हुआ है।भारत के योग का गहन अध्ययन यह बताता है कि योग अस्तित्ववादी,प्रयोग वादी व अनुभववादी है।
योग की इतिहास यात्रा में योग की कोई निश्चित परिभाषा नही है।महर्षि पतंजलि योग को अनुशासन व चित्त वृत्ति निरोध की अवस्था बताते है तो महाभारत में योग कर्मो में कुशलता का नाम है।परंतु इसमें कोई दो राय नहीं कि योग को इतिहास के हर कालखण्ड में कही भी कमतर नहीं आंका गया। महाभारत के मोक्षधर्म पर्व में कहा गया है कि साँख्य के समान ज्ञान नही है और योग के समान बल नही है। आधुनिक युग मे जो योग का रूप देख रहे है वह स्वात्माराम की हठयोग प्रदीपिका में वर्णित योग का ही स्वरूप है। योग की महत्ता शरीर को ही नही चित्त को भी शुद्ध करती है।ध्यान की बहुत सारी विधाएं जो आधुनिक युग में लोकप्रिय हो रही है योग की ही देन है।वर्तमान में मानव शरीर को शारीरिक व मानसिक संतापों से बचाये रखने के लिए योग एक आवश्यक कला है। अच्छी बात यह है कि अब योग की वैज्ञानिकता को पश्चिम भी मान्यता दे रहा है ।योग को पश्चिम में ले जाने का श्रेय स्वामी विवेकानंद को जाता है। योग के मानव शरीर पर सकारात्मक प्रभावों का वैज्ञानिक अध्ययन स्वामी विवेकानंद की अमेरिका यात्रा के बाद ही शुरू हुआ ।धीरे धीरे पश्चिम को भी लगने लगा कि वाकई योग शरीर को निरोग व चिंतारहित रखने का एक वैज्ञानिक तरीका है जिसे भारत के लोगो ने हज़ारो वर्ष पहले ही विकसित कर लिया था।
संयुक्त राष्ट्र संघ ने इसी कड़ी में सन 2015 से हर वर्ष की 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने का निश्चय किया था जिसका उद्देश्य योग को मानवता के कल्याण हेतु उसका दुनियाभर में प्रचार प्रसार करना है ।आज भारतीयों को कोरोना जैसी महामारी के समय योग की आवश्यकता और इसके महत्व को समझने की जरूरत है।