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पर्यटन स्थल के रूप में भी है पहचान
सीधा सवाल। छोटीसादड़ी। नवरात्रा को मां आदिशक्ति की आराधना का पर्व माना जाता है। विविध रूपों में मां आदिशक्ति की आराधना की जाती है। ऐसा ही एक जनमानस का आस्था शक्तिपीठ भंवर माता है। जहां दूर-दूर से श्रद्धालु मां के दर्शन करने पहुंचते है। छोटीसादड़ी उपखंड मुख्यालय से 3 किलोमीटर दूरी पर स्थित मेवाड़-मालवा और कांठल क्षेत्र का प्रमुख व प्रसिद्ध शक्तिपीठ भंवर माता मंदिर है, जो अरावली पर्वत माला कि पहाड़ियों के उप भाग के बीच स्थापित है। मंदिर की प्राचीनता का सहज ही जानकारी इस बात से किया जा सकता है कि यहां 547 संवत का एक शिलालेख मौजूद है, जिसमें असुर संहारिणी शूल धारिणी मां दुर्गा की आराधना की गई है। इस शिलालेख में मां पार्वती द्वारा शिव के प्रति भक्ति और श्रद्धा से अभिभूत होकर शिव का आधा शरीर बन जाने का उल्लेख है। यह मान्यता है कि मंदिर परिसर के सामने स्थित प्राकृतिक और पवित्र बड़े कुंड में स्नान करने से कोढ़ और लकवे जैसे लाइलाज रोगों से निजात मिलती है। वही, धीरे-धीरे यह मंदिर परिसर अपने झरने और प्राकृतिक वातावरण के चलते एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल का रूप लेता जा रहा है।जिसकी आभा को देखने के लिए दूर दूर तक के पर्यटक चले आते है।
भक्त शेर के कान में कहते हैं अपनी मन्नत
यहां कई सालों से मेला भी लगता है। यहां भक्तों के प्रेत दोष या पितृ दोष को दूर किया जाता है। साथ ही, जिन दंपत्तियों के संतान नहीं होती है। वह अपने पति के साथ मंदिर के पवित्र कुंड में डुबकी लागकर माता के मंदिर की सात परिक्रमा करके मां को प्रणाम करके अपनी मन्नत को शेर के कान में कहने पर मां आशीर्वाद स्वरूप भक्तों की सभी कामनाएं पूर्ण करती हैं।
सत्तर फिट से गिरने वाला जलप्रपात
ऐसी सुंदरता और धार्मिक स्थल का संगम दूर-दूर तक देखने को नहीं मिलता है। मुख्य मंदिर में विराजमान तीन देवियों का संगम और यहां प्राकृतिक छटाओं के बीच 70 फिट से गिरने वाला जलप्रपात और पवित्र कुंड लोगों को सुकून और आनंद देता है।
शिव का आधा शरीर बन जाने का उल्लेख
भंवर माता मंदिर में संवत् 547 का एक शिलालेख उपलब्ध है, जिसमे असुर-संहारिणी, शूलधारिणी दुर्गा की आराधना की गई है। इस शिलालेख में पार्वती द्वारा शिव के प्रति भक्ति और श्रद्धा से अभिभूत होकर शिव का आधा शरीर बन जाने का उल्लेख भी किया हुआ है। जानकारों की माने तो भंवरमाता मन्दिर से मिले इस शिलालेख में देवी दुर्गा को महिसासुर राक्षस मर्दन के लिए उग्र सिंहों के रथ पर सवार होकर जाने का वर्णन है।
राजा गौरी ने बनवाया था मंदिर, हरियाली अमावस्या पर लगता है मेला
लोकमान्यता अनुसार यशगुप्त के पुत्र राजा गौरी ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। उन्होंने किसी प्राचीन देवालय के भग्नावशेषों पर देवी भंवरमाता (दुर्गा) के इस मंदिर को बनवाया था। जनश्रुति के अनुसार वर्षों पहले मंदिर के सामने वाली पहाड़ी पर राजलगढ़ नामक एक किला था, यहां के राजपरिवार की ये कुलदेवी थीं। एक खुले विशाल चौक के भीतर भंवरमाता का यह मंदिर है।
जिसके प्रवेश द्वार पर देवी का वाहन सिंह बना है।सिंह के पास भैरव स्थापित है। मंदिर के पास केवड़े की नाल है और शिव मंदिर भी बना है। नैसर्गिक सौन्दर्य युक्त यह स्थान बहुत सुरम्य और मनभावन है। नवरात्र में देवी भंवर माता के मंदिर में श्रद्धालु काफी संख्या में यहां आते हैं और माता के दर्शन कर मनवांछित फल पाते हैं। हरियाली अमावस्या के दिन मन्दिर प्रांगण में विशाल मेला लगता है।
मां ब्राह्मणी की बरसती है कृपा
राजस्थान सहित मध्यप्रदेश के नीमच, रतलाम, मंदसौर, इंदौर सहित कई प्रदेशों के लोग यहां माता के प्रति आस्था के चलते पहुंचते हैं।नवरात्रों में तो भक्तों पर माता की कृपा रहती है लेकिन ऐसा माना जाता है कि भंवरमाता पवित्र तीर्थ स्थान पर श्रावण मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मां ब्राह्मणी की कृपा बरसती है।