सीधा सवाल। निम्बाहेडा। एक कहावत है ‘‘करे कौन और भरे कौन’’ कहावत राजस्थान रोडवेज पर सटीक बैठती है, क्योंकी देखा जाऐ तो आज राजस्थान रोडवेज की लापरवाही का खामियाजा आम जनता को आर्थिक नुकसान के साथ उठाना पड रहा है और यह पीड़ा उपखण्ड में निवासरत हर मजदुर, किसान औेर आम जनता की है, विगत 4-5 सालो से रोडवेज की उदासिनता व लापरवाही का नतीजा ही कहा जा सकता है कि राजस्थान राडवेज की सेवाऐं बद से बद्तर हो गई है जिसके परिणाम स्वरूप आम जनता की जेब पर नित्य डाका पड रहा है। 90 के दशक में निम्बाहेडा - उदयपुर रोड पर काफी कम आवागमन था और रोडवेज भी काफी कम थी और समय भी अधिक लगता था तो ऐसे में उस वक्त संचालित जीपों में आम जनता बस के किराये में ही सफर करती थी, लेकिन समय अन्तराल में जीपो में दूघर्टना होने के भय से जनहित में सकारात्मक निर्णय लेते हुऐ रोडवेज की बसे बढाई गई जो कि बढते बढते प्रति दिन के 23 बस फेरे तक संचालित होने लगी, उसके बाद भी हालात यह थे कि सभी बसों में अत्यधीक भीड के चलते चित्तौडगढ के साथ उदयपुर , झालावाड, कोटा डिपो ने भी इस रूट पर रोडवेज के परमिट जारी किये जो कारोनो तक 19 बसो के फेरे संचालित होते थे।
रोडवेज की दो, लोक परिवहन 33 बसे है संचालित
वर्ष 2019 तक भी उदयपुर से निम्बाहेडा होकर अन्यत्र जाने के लिये 19 रोडवेज बसे संचालित थी लेकिन कोरोनो के समय सवारी भार नहीं के बराबर होने से इस रोड पर रोेडवेज ने बंद कर दी और वर्तमान में सिर्फ 2 बसे संचालित है एक उदयपुर निम्बाहेडा व एक उदयपुर से कोटा इसके अलावा प्रातः पोने छः बजे से रात्रि 8 बजे तक करीब 33 बसे लोक परिवहन की सचांलित है यानी कहा जाये तो हर 15 से 20 मिनट में उदयपुर के लिये लोक परिवहन की बस तैयार है और ऐसा नही की लोक परिवहन के वाहन नुकसान में सचालित हो रहे है वह भी अच्छी खासी कमाई कर ही रहे है लेकिन सवाल यह उठता है कि रोडवेज के पास परमिट वाहन सभी उपलब्ध होने के बाद भी क्यों कर इस रूट पर रोडवेज संचालित नहीं की जा रही है जबकि अब तो रोड की हालत भी पहले के मुकाबले काफी अच्छी है और वाहन भार भी उपलब्ध है। इसके पीछे रोडवेज की लापरवाही कहंें या लोक परिवहन के मालिको से साठ गांठ यह भी जांच का विषय है।
65 बसों के संचालन के लिये एक बुकिंग क्लर्क
चित्तौडग डिपो की उदासीनता का एक नुमना यह भी हे कि राजस्थान के विभिन्न डिपो की विभिन्न रूटो पर बसें संचालित है जिसमें से प्रमुख बांसवाडा डिपो की सर्वाधिक 8 बसे भीलवाडा से बांसवाडा, अजमेर, चित्तौड, जयपुर, धोलपुर आदी स्थानो के लिये 8 रोडवेज की बसे प्रति दिन फेरा करती है। वहीं प्रतापगढ डिपो से अजमेर, पाली, बांसवाडा - अजमेर, जयपुर व भीलवाडा आदी स्थानो के लिये करीब 6 रोडवेज बस प्रतिदिन लगी रिटर्न चक्कर लगाती है। भीलवाडा डिपो की इन्दौर, मन्दौर, रतलाम, नीमच आदी स्थानो के लिये करीब 6 बसे रिर्टन चक्कर लगाती है। वही चित्तौडगढ डिपो की बांसवाडा, भीलवाडा, दाहोद, बडोदा के लिये 6 रिर्टन फेरे बसे संचालित है इसी प्रकार कोटा, पाली, टोंक झालावाडा व उदयपुर डिपो की बसे भी संचालित है इस प्रकार से वर्तमान में मध्य प्रदेश, गुजरात व राजस्थान के विभिन्न जिलों को जोडने के लिये राजस्थान रोडवेज के विभिन्न जिलो की करीब 65 से अधिक बसे निम्बाहेडा बस स्टेण्ड पर होकर आती जाती है जिनकी बुंकिंग बस स्टेण्ड पर रोडवेज द्वारा संचालित बुकिंग विण्डो पर किया जाता है। जिससे प्रति दिन करीब 20 हजार का कलेक्शन होता है। इस प्रकार देखा जाये तो निम्बाहेडा बुकिंग विण्डो से महिने का करीब 6 लाख से अधिक का राजस्व प्राप्त होता है और उसके एवज में बुकिंग क्लर्क सिर्फ एक ही नियुक्त कर रखा है जबकि तीन - चार साल पहले चार बुकिंग विण्डो संचालित थी और पांच से सात का स्टाफ भी रोडवेज द्वारा नियुक्त था। जिले का सबसे बडा बस स्टेण्ड और मध्य प्रदेश व गुजरात, महाराष्ट्र को जोडने वाला जंक्शन भी ऐसे में स्टाफ को बढाने के बजाय कम करना समझ से परे है। आपको बतादे पहले दो शिफट में संचालित होती विण्डो वर्तमान में प्रातः 8 से सांय 5 बजे तक एक शिफट में ही संचालित होती है। और हालात ऐसे ही रहे तो जल्द ही विण्डो ही बंद होने के कगार पर पहूंच जाएगा। जिला प्रशासन एवं रोडवेज प्रशासन को जनहित में विचार जरूर करना चाहिये।
जोखिम के साथ ही आम जनता की जेब पर पड रहा दुगना भार
राज्य सरकार द्वारा रोडवेज का संचालन कमाई के लिये नहीं बल्कि आम जन की सेवा के लिये किया जा रहा है ऐसे में रोडवेज द्वारा बंद की गई रोडवेज बसों की वजह से आम जनता को अपनी जान जोखिम में डालकर अन्धाधुन चलने वाली लोक परिवहन की बसों में यात्रा करनी पड रही है जिससे एक तरफ उनकी जान माल को भी खतरा है वही दुसरी तरफ उनकी जेब पर भी भार पड रहा है। आपको बतादे रोडवेज बस में साधारण व्यक्ति का किराया 105 रूपया है वही महिलाओ का मात्र 85 रूपया वहीं लोक परिवहन की बसो में 150 रूपया किराया वसुला जा रहा है। जो रोडवेज के मुकाबले करीब दुगना है साथ में आम जन को लोक परिवहन के स्टाफ की गुण्डागर्दी भी सहनी पडती है वह अलग, आलम यह है कि लोक परिवहन की बसो के चालक, परिचालक रोडवेज के आगे लगाकर उसमें से सवारियां उतारने से भी गुरेज नही करते और बेचारे रोडवेज कर्मचारी उनकी गुण्डा गर्दी और दादागीरी के सामने मन मसोस कर रह जाते है।
कहीं रोडवेज को घाटे का सौदा बताते हुऐ बंद करने की साजीश तो नहीं ?
सरकार का सरंक्षण प्राप्त रोडवेज डिपो जिसके पास पर्याप्त संसाधान, अनुभवी स्टाफ आदी सब होते हुऐ भी रोडवेज की बसो को घाटो का सौदा साबित करते हुऐ उनके स्थान पर हर रूट पर लोक परिवहन की बसे लगाने के पिछे रोडवेज की बसो को बंद करने की कोई सोची समझी साजीश तो नही? कि धिरे धिरे आम जनता लोक परिवहन की बसो से आदी हो जाऐ और रोडवेज को आसानी से बंद कर दिया जाऐं।
रूट का आंकलन कर जन हित में करना चाहिये पुनः विचार
रोडवेज प्रशासन को प्रत्येक रूट का आंकलन कर जन हित में पुनः विचार करना चाहिये कि अत्यधिक आमदानी वाले व यात्री भार वाले रूट पर लोक परिवहन के स्थान पर रोडवेज बसे संचालित करना चाहिये साथ ही जिन रूटो पर यात्री भार कम है वहां पर लोक परिवहन की बसो को परमिट देवे, जिससे वह अपने सेवाऐं सुधारते हुऐ ग्रामीण लोगो को अच्छी यात्री सेवाऐं मुहैया करा सके। साथ ही निगरानी के लिये ईमानदार निरीक्षक भी तैनात किये जाऐं जिससे घाटे के सोदे को फायदे में बदला जा सके।