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सीधा सवाल। चित्तौड़गढ़। शहर में निंबाहेड़ा मार्ग स्थित ओछड़ी चौराहे पर चेतक स्मारक की जमीन नीलामी को लेकर मंगलवार को हुवे प्रदर्शन के बाद नगर परिषद सभापति ने बुधवार को प्रेस कांफ्रेंस की है। इसमें उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ जनप्रतिनिधियों को निजी लाभ नहीं मिला, जिसके कारण 14 साल बाद यह मुद्दा उठाया गया। वह भी गलत जानकारी देकर। उन्होंने बताया कि 2009 में बोर्ड बैठक में ओछड़ी चौराहे पर मूर्ति लगाने का निर्णय लिया गया था। लेकिन उसमें ना तो आराजी नंबर बताया गया और ना ही कोई जमीन आरक्षित की गई। जिसे चेतक के लिए जमीन बताया जा रहा है उस जमीन पर कुछ भू माफियाओं ने कब्जा कर रखा है। उस जमीन को नगर परिषद द्वारा नीलामी की गई। इसके कारण उन्होंने समाज और संगठनों को भड़काया। सभापति संदीप शर्मा ने दावा किया कि कुछ लोगों ने सिविल कोर्ट चित्तौड़गढ़ और हाईकोर्ट जोधपुर में पिटिशन दायर की थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया।
नगर परिषद सभापति ने बुधवार दोपहर में प्रेस कांफ्रेंस में बताया कि 10 सितंबर 2009 में तत्कालीन नगर पालिका चेयरमैन रमेशनाथ योगी की अध्यक्षता में हुई बोर्ड बैठक में ओछड़ी चौराहे पर चेतक की भव्य मूर्ति लगाने का प्रस्ताव किया गया था। लेकिन वहां पर ना तो आराजी नंबर का उल्लेख किया गया और ना ही कोई जमीन का आवंटन किया गया। कोई मूर्ति की स्थापना करने का जब प्रस्ताव लिया जाता है तो राज्य सरकार के नियम के अनुसार संभागीय स्तर पर एक कमेटी गठित बनती है, जिसके पास जिला कलेक्टर के माध्यम से वह प्रस्ताव भेजा जाता है। उस प्रस्ताव को फिर स्वीकार किया जाता है। सभापति ने बताया कि इस समय ओछड़ी चौराहे के वहां पर राष्ट्रीय राजमार्ग शुरू हो गया था, जिसके कारण वहां पर मूर्ति स्थापित करने की कार्यवाही नहीं की गई। सभापति शर्मा का कहना है कि 14 सालों तक किसी भी संगठनों ने या किसी भी समाज जनों ने इसको मुद्दा नहीं बनाया था। 14 साल बाद यह मुद्दा इसलिए उठा क्योंकि आराजी नंबर 1756 की नगर परिषद द्वारा नीलामी की जा रही थी। वहां सब साफ सफाई करने गए तो वहां कुछ भू माफियाओं ने अपनी केबिने स्थापित की हुई थी। जब उन केबिनों को हटाया गया तो दशरथ मेनारिया, शंकर मेनारिया, देवीलाल राठौड़ ने प्रेशर डाला कि इसे ना हटाया जाए। हमने फिर भी हटाया तो वह जिला कलेक्टर अरविंद पोसवाल और आयुक्त रविंद्र यादव से मिले और यह बताया कि 1975 में पंचायत द्वारा उन्हें पट्टे दे दिए गए थे। जब जिला कलेक्टर और नगर परिषद ने इसकी जांच करवाई तो वह फर्जी पट्टे पाए गए। इस मामले में उन्होंने हाईकोर्ट में दो बार पिटीशन दायर की लेकिन दोनों बार रिजेक्ट कर दिया गया। जब उनकी दाल नहीं गली तो उन्होंने उनके स्वीकृत कॉलोनी पर 40 फीट का रास्ता मांगा जो नियमों के खिलाफ था, उनके जब कॉलोनी अप्रूव हुई तभी उन्हें पर्याप्त रास्ता दे दिया गया था।