सीधा सवाल। निंबाहेड़ा। यदि कोई ठान ले तो कोई काम मुश्किल नहीं होता है फिर चाहे पहले ही दोषियों को बचाने के लिए जिम्मेदार भी आंखें मूंद कर बैठ जाए लेकिन संघर्ष करने वाले का संघर्ष रंग लेकर आता है। ऐसा ही मामला निंबाहेड़ा पंचायत समिति की उनखलिया ग्राम पंचायत में सामने आया है जहां एक व्यक्ति ने विद्यालय के खेल मैदान के लिए आवंटित भूमि को लेकर अतिक्रमण से मुक्त कराने के लिए एक दशक से भी अधिक समय तक संघर्ष किया और आखिरकार विद्यालय के खेल मैदान की भूमि को अतिक्रमण से मुक्त करा कर ही दम लिया। दरअसल ग्राम पंचायत क्षेत्र के रहने वाले बोत लाल धाकड़ को जानकारी मिली कि विद्यालय के खेल मैदान के लिए ग्राम पंचायत क्षेत्र में आवंटित की गई भूमि पर अतिक्रमण कर निर्माण कार्य किए जा रहे हैं तो उन्होंने सभी जिम्मेदार अधिकारियों को शिकायत की लेकिन उसकी शिकायतों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया तो बुजुर्ग ने हिम्मत नहीं हारी और न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और न्यायालय ने खेल मैदान की भूमि पर अतिक्रमण मानते हुए अतिक्रमण हटाने के आदेश दिए। इसके बावजूद भी अधिकारियों ने खेल मैदान की भूमि से अतिक्रमण नहीं हटवाया तो बुजुर्ग ने फिर से न्यायालय की अवमानना को लेकर जिला कलेक्टर, उपखंड अधिकारी और तहसीलदार को पार्टी बनाते हुए मामले में अवमानना याचिका दायर की जिसकी सुनवाई पर न्यायालय ने तत्काल जिला कलेक्टर को खेल भूमि से अतिक्रमण हटवा कर कार्रवाई के फोटो वीडियो न्यायालय में प्रस्तुत करने के निर्देश दिए जिस पर प्रशासन ने दो दिन तक कार्रवाई करते हुए सालों से खेल मैदान की भूमि पर अतिक्रमण कर बैठे अतिक्रमियो के अतिक्रमण को दो दिन तक अभियान चलाकर ध्वस्त कर दिया। हालांकि अब भी बुजुर्ग का कहना है कि कुछ प्रभावशाली लोगों को इस कार्रवाई से बचा लिया गया है। लेकिन इस मामले ने साफ कर दिया कि निचले स्तर पर भले ही जिम्मेदार अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ ले लेकिन न्यायालय और विशेषकर उच्च न्यायालय अब भी सार्वजनिक भूमियों और अतिक्रमण के मामले को लेकर गंभीर है।
खुद के नहीं संतान गांव के बच्चों के लिए किया संघर्ष
जानकारी के अनुसार निंबाहेड़ा पंचायत समिति की उंखलिया ग्राम पंचायत में 3 बीघा 4 बिस्वा भूमि पर प्रभावशाली लोगों के साथ साथ कई लोगों ने अतिक्रमण कर लिया था। ऐसे में गांव के बुजुर्ग बोतलाल धाकड़ जिनकी खुद की कोई संतान नहीं है लेकिन गांव के स्कूल में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के भविष्य को लेकर चिंतित होते हुए इस भूमि से अतिक्रमण हटाने का बीड़ा उठा लिया, लगातार शिकायत और लंबी कानूनी जटिल प्रक्रिया के बाद जब न्यायालय ने अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया तो बुजुर्ग ने इस मामले में अधिकारियों से न्यायालय की पालना करवाने का प्रयास किया लेकिन मामला प्रभावशाली लोगों से जुड़ा होने के कारण न्यायालय के आदेश की पालना नहीं हुई जिस पर पुन: अवमानना की याचिका दायर करने के बाद बुजुर्ग ने अतिक्रमण हटवाने की कार्रवाई करवाने में सफलता हासिल की। लेकिन बुजुर्ग धाकड़ का कहना है कि अब भी कुछ प्रभावशाली लोगों को इस कार्रवाई से बचा लिया गया है। संपूर्ण भूमि मुक्त होने तक उनका संघर्ष जारी रहेगा, अपने खुद के खर्च पर लंबी कानूनी लड़ाई लड़ कर इस बुजुर्ग ने मिसाल पेश की है वही न्यायालय ने भी साबित कर दिया कि सरकारी भूमियों को अपनी समझने वालों की खैर नहीं है।
कई जगह उठाते हैं फायदा लंबी कानूनी प्रक्रिया के चलते नहीं हो पाती कार्रवाई
इधर जानकारी में यह भी सामने आया है कि केवल ग्रामीण क्षेत्र ही नहीं बल्कि शहरी क्षेत्रों में भी मिलीभगत कर नियमों को तोड़ मोड़ कर अपने निजी फायदे के लिए रसूखदार लोग अपनी मनमानी कर लेते हैं और निचले स्तर पर अधिकारी प्रभाव में रहकर कार्रवाई करने से परहेज करते हैं लेकिन माननीय उच्च न्यायालय के निर्देश पर हुई कार्रवाई के बाद साफ हो गया कि अब सरकार की भूमि को यदि कोई गलत तरीके से उपयोग करना चाहे तो न्यायपालिका में उसके लिए कोई जगह नहीं है।
सड़के, चारागाह सब अतिक्रमण की जद में
माननीय उच्च न्यायालय के निर्देश पर हुई कार्रवाई के बाद अब यह भी संभावना प्रबल हो चली है कि जिले में अलग-अलग स्थानों पर नियम विरुद्ध हो रहे भूमि रूपांतरण, सड़कों की भूमि के अतिक्रमण, चारागाह, खेल मैदान सहित विभिन्न मामलों में न्यायालय का रुख स्पष्ट है। निचले स्तर पर भले ही मिलीभगत कर स्वीकृति करा ली जाए लेकिन जब न्यायालय का डंडा चलेगा तो अधिकारियों को भी कार्रवाई करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। साथ ही इस मामले ने साफ कर दिया है कि कानूनी प्रक्रिया लंबी और जटिल हो सकती है लेकिन न्यायालय जब कार्रवाई करता है तो किसी भी स्तर के अधिकारी को कोई रियायत या राहत नहीं दी जाती है। जानकारों का कहना है कि निंबाहेड़ा क्षेत्र में भी कहीं ऐसे मामले और हैं जिनमें नियमों को परे रखकर सरकारी और सार्वजनिक उपयोग की भूमियों को निजी फायदे के लिए नियमों को तोड़ मरोड़ कर कार्रवाई की गई है। ऐसे में यह संभावना प्रबल है कि आने वाले समय में ऐसी और कोई कार्रवाई होगी जिससे कि सुनियोजित विकास और सार्वजनिक उपयोग की भूमियों का संरक्षण किया जा सके।
न्याय और नियमों की हुई जीत
अवैध अतिक्रमण ध्वस्त होने के मामले में बुजुर्ग बोतलाल धाकड़ ने कानूनी सलाहकार अधिवक्ता के रूप में सहयोगी रहे पूर्व बार संघ अध्यक्ष लक्ष्मण सिंह बडोली का भी आभार व्यक्त किया है। वही पूरे मामले में कानूनी सलाहकार और मार्गदर्शक के रुप में कार्य करने वाले पूर्व बार संघ अध्यक्ष अधिवक्ता लक्ष्मण सिंह बडोली ने बताया कि सार्वजनिक क्षेत्र के मामलों में निर्णय होने में देरी लग सकती है अधिकारी भी अपनी जवाबदेही से बचने के लिए न्याय प्रक्रिया को जटिल बनाने का प्रयास करते हैं लेकिन माननीय उच्च न्यायालय के इस निर्णय ने साबित कर दिया है कि तथ्यों के साथ कानूनी संघर्ष करने वालों और सार्वजनिक क्षेत्र की भूमियों को लेकर न्यायालय का दृष्टिकोण बिल्कुल स्पष्ट है, साथ ही यह निर्णय और कार्रवाई उन लोगों के लिए भी एक सबक है जो कानूनी पर पेचीदगियों का फायदा उठाकर अपने निजी फायदे के लिए सार्वजनिक उपयोग की भूमियों को खुर्द बुर्द करने की दृष्टि से काम करते हैं।