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सीधा सवाल। चित्तौड़गढ़। जिला मुख्यालय पर गठित नगर सुधार प्रन्यास के बीते चार सालों में शहर व पेराफेरी क्षेत्र में करीब सौ कॉलोनियां बस गई लेकिन प्रन्यास की आधिकारिक बात माने तो प्रन्यास ने इन चार वर्षो में एक भी कॉलोनी को स्वीकृति नहीं दी गई है। तीन सालों से पदेन कलेक्टर अध्यक्ष है, लेकिन ठेके पर चल रहे नगर नियोजन से उन्हें भी कोई लेना देना नहीं है।
जानकारी के अनुसार वर्ष 2018 में गठित प्रन्यास पर बीते तीन सालों से सरकार ने कोई भी अध्यक्ष मनोनीत नहीं किया है। जिसके चलते जिला कलेक्टर स्वयं अध्यक्ष है, लेकिन इन तीन वर्षों में जो भी कलेक्टर आया उसे नगर नियोजन के नाम पर प्रन्यास के नाम से ठेका कार्मिक गुमराह करते रहे है। सबसे बड़ी अनियमितताएं इन तीन वर्षो में बेतरतीब रूप से बसी कॉलोनियों में है। शहर व प्रन्यास के पेराफैरी क्षैत्र में लगभग सौ कॉलोनियां बस गई जहां पर लगे साईन बोर्ड में बाकायदा कॉलोनियों का नाम लिखने के साथ यूआईटी से स्वीकृत होना भी दर्शाया गया है, जबकि वास्तविकता में तीन वर्षों में प्रन्यास के दस्तावेज बताते हैं कि इनकी तरफ से एक भी कॉलोनी को स्वीकृत नहीं किया गया है। प्रथमदृष्टा इन कॉलोनियों में सुविधाओं का जिस तरह अभाव दिखता है, उससे साफ जाहिर होता है कि वास्तविकता में ये कॉलोनियां प्रन्यास द्वारा स्वीकृत नहीं है। क्योंकि अगर प्रन्यास की स्वीकृति होती तो इन कॉलोनियों में नगर नियोजन नियमों के अनुसार जन सुविधाएं विकसित होती। पहले से बेतरतीब बसे शहर के आसपास बसाई गई ये कॉलोनियां आने वाले समय से यहां भूखंड खरीदने वालों के लिए सुविधाओं के अभाव में तकलीफदेह साबित हो सकती है।
इन कॉलोनियों के बारे में प्रन्यास के दस्तावेज जो बोलते हैं वे एकदम सही है कि उन्होंने ऐसी कोई कॉलोनी स्वीकृत की ही नहीं है, तो प्रन्यास इन कॉलोनियों को हटा भी नहीं रही है। जिससे प्रन्यास की दाल काली है और यहां पर कार्यरत ठेकाकर्मिर्यों सहित राज्य सरकार से मनोनीत एक पार्षद की भूमिका संदिग्ध है। जिसे दिन भर प्रन्यास कार्यालय की भूमि शाखा पर जमावड़ा जमाए देखा जा सकता है। पदेन अध्यक्ष जिला कलेक्टर को भी यही ठेकाकर्मी गुमराह करते है, जिसके कारण उन्हें यह भी नहीं पता कि बिना स्वीकृति के कॉलोनियां बसाई जा रही है। बिना स्वीकृति के कॉलोनियां बसा दी गई है लेकिन प्रन्यास अपनी दूसरी जिम्मेदारी से भागता दिख रहा है, जिसमें इन कॉलोनियों को सुविधाओं के अभाव में ध्वस्त किया जाना होता है। हालात यह है कि नदी नालों के साथ सड़क व बड़े हादसों वाले भू-भाग पर भी कॉलोनियां बसा दी गई है। इस तरह बिना स्वीकृति के बस रही कॉलोनियों से राज्य व केंद्र सरकार दोनों को ही बड़ा राजस्व नुकसान हो रहा है तो आम लोगों की जान जोखिम में फंसी हुई है।