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किसी आंगन की बगिया को मैं महकने वाली कलियों को अपनी कुत्सित मानसिकता के चलते रौंद देने वाले एक हैवान या यूं कहें कि इंसान के भेष में एक राक्षस को कोर्ट ने मृत्युदंड की सजा सुनाई है। यह एक फैसला नहीं है बल्कि एक नजीर है जो लिखी गई है। यह निर्णय बताता है कि समाज में इंसान के वेश में भेड़िया बनकर घूम रहे ऐसे राक्षसों के लिए समाज में कोई जगह नहीं है। उनके लिए केवल और केवल मौत ही ऐसी सजा है, उसके ही ऐसे राक्षस हकदार हैं। एक ढाई साल की मासूम को अपने गंदे इरादों को अमलीजामा पहनाने के लिए ले जाकर मौत के घाट उतारने के बाद हत्या कर देने का यह मामला इंसानियत को शर्मसार करने वाला है। वह मासूम जिसे दुनिया के अच्छे बुरे का भान नहीं है, अपने पराए की पहचान नहीं है, उसे मौत के घाट उतार देने का यह अमानवीय कृत्य करने वाले इस इस भेड़िए को दी गई सजा न केवल एक निर्णय है, अपितु समाज को एक संदेश है, कि इंसान बनकर घूम रहे ऐसे राक्षसों के लिए अब यह समाज फिर चाहे वह पुलिस प्रशासन हो या न्याय व्यवस्था सबने सामूहिक निर्णय ले लिया है कि, उन्हें न केवल समाज को बल्कि इस दुनिया को छोड़ कर जाना होगा। इस पूरे मामले में माननीय न्यायालय ने निर्णय देकर अपना पक्ष स्पष्ट किया है वहीं इस पूरे मामले में पुलिस की भूमिका भी कुछ कम नहीं रही है। जहां पुलिस के सामने एक बड़ी चुनौती होती है कि ऐसा अपराध जिसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता उसके लिए ठोस सबूत इकट्ठे करना और उसके बाद लगातार यह प्रयास करना कि कानून के शिकंजे से किसी तरह से ऐसा अपराधी बच नहीं पाए। मानवता को शर्मसार कर देने वाला यह घटनाक्रम लगभग 11 महीने पहले हुआ था। जहां एक मासूम का शव एक खेत पर बने कुएं से बरामद हुआ था। लोगों ने जानकारी मिलते ही आक्रोश व्यक्त करना शुरू कर दिया लेकिन पुलिस ने मामले में पूरी गंभीरता दिखाते हुए आरोपी को गिरफ्तार किया और उसके बाद महज 9 दिन में न्यायालय के समक्ष तथ्यों के साथ चालान पेश कर दिया। इस पूरे मामले में सभी धन्यवाद के पात्र हैं, जिन्होंने मानवता को शर्मसार कर देने वाले इस घटनाक्रम में अपनी अपनी भूमिका का पूरी तत्परता से निर्वहन किया है। न्याय व्यवस्था के जरिए लगातार ऐसे निर्णय सामने आ रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद समाज में कुत्सित मानसिकता के लोग अपराध करने से बाज नहीं आते हैं। ऐसे में सामने आया निर्णय साबित करता है कि न्याय मिलने में थोड़ा विलंब हो सकता है, लेकिन न्याय मिलकर ही रहता है। न्यायालय का निर्णय और पुलिस की तत्परता उस परिवार के दुख को पूरी तरह से समाप्त तो नहीं कर सकती लेकिन जीवन भर ना भरने वाले घावों पर मरहम तो लगा ही सकती है। निर्णय सुनाए जाने के बाद पिता की आंखों की वह नमी और जुड़े हाथ परिणाम है उस व्यवस्था का कृतज्ञता है उन लोगों के प्रति जिन्होंने न्याय की इस परीक्षा में खरे उतरने का प्रयास किया है। सभी का साधुवाद धन्यवाद लेकिन अब विचार करने की जरूरत है की व्यवस्था से जुड़े प्रत्येक अंग अपना काम सही ढंग से कर रहा है लेकिन फिर भी ऐसे भेड़िए समाज में है जो किसी न किसी बगिया की मासूम कली को अपनी कुत्सित मानसिकता से रौंदने को तैयार बैठे हैं। हमें जरा भी आभास हो तो हमारी भी जिम्मेदारी बनती है कि समाज के ताने-बाने को बिगाड़ने वाले ऐसे लोगों को उनके अंजाम तक पहुंचाने में अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करें। जिससे कि हमारे समाज की बेटी जो कभी देश की पहली आईपीएस किरण बेदी बनती है, तो कभी आसमान से परे जाकर अंतरिक्ष में परचम फहराने वाली कल्पना चावला बनकर राष्ट्र और समाज का नाम रोशन कर सकें किसी मासूम कली को बगिया में महकने से पहले ही ऐसे नर पिशाच नुकसान पहुंचाने की हिमाकत ना कर सके। न्याय की परीक्षा में खरे उतरे सभी जिम्मेदारों का आभार साधुवाद।