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.... गैर हिंदी भाषी राज्य कर्नाटक में विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं। विधानसभा चुनावों से ज्यादा चर्चा राजनीतिक हलकों में कांग्रेस के घोषणा पत्र में किए गए बजरंग दल को प्रतिबंधित संगठन घोषित करने की चुनावी घोषणा से है। एक और देश में पुरजोर तरीके से हिंदूवादी विचारधारा को लेकर प्रबल समर्थन मिल रहा है, वहीं दूसरी ओर सीधे-सीधे बजरंग दल को प्रतिबंधित संगठन घोषित करने की चुनावी घोषणा कांग्रेस के लिए आत्मघाती कदम हो सकती है। येन केन प्रकारेण सत्ता में आने के लिए तात्कालिक घोषणा की जा सकती है लेकिन संभव है कि इस चुनावी घोषणा को लेकर कांग्रेस को दूरगामी नुकसान हो सकते हैं। देश में एक बड़ा वर्ग और कई ऐसे राज्य हैं जो विशुद्ध तौर पर हिंदूवाद का प्रबल समर्थन करते हैं और ऐसे में यह चुनावी घोषणा संभव है कि तात्कालिक फायदा दे लेकिन प्रबल हिंदुत्व का समर्थन करने वाले राज्यों में निश्चित तौर पर नुकसान करने वाली साबित हो सकती है। प्रबल हिंदुत्व का समर्थन करने वाले राज्यों में कॉन्ग्रेस लगभग पूरी तरह से देश के मानचित्र से गायब हो चुकी है फिर वह गुजरात हो या उत्तर प्रदेश हर जगह कांग्रेस को तुष्टीकरण और गैर हिंदूवादी विचारधारा का साफ तौर पर नुकसान झेलना पड़ा है। ईसी के साथ एक और जहां कांग्रेस के कई नेता सार्वजनिक तौर पर हिंदुत्व के साथ होने का दावा करते हैं हिंदुत्व को सार्वजनिक मंचों से परिलक्षित करने का स्पष्ट प्रयास करते हैं उन्हें इस तरह की घोषणाओं का नुकसान होने की पूरी पूरी संभावना है। कई प्रदेशों में जहां हिंदू मतदाताओं की संख्या कम है वहां इस सोच का लाभ भी हुआ है इसका प्रत्यक्ष उदाहरण पश्चिम बंगाल के रूप में देखा जा सकता है। लेकिन वहां कांग्रेस की जगह क्षेत्रीय दलों को इसका फायदा अधिक हुआ है ऐसे में पूरे देश में इस घोषणा को लेकर जहां राजनीतिक बवाल मचा हुआ है वहीं इस घोषणा का फायदा उठाने की सोच कांग्रेस के स्थान पर क्षेत्रीय दलों के लिए अधिक फायदेमंद हो सकती है। इस प्रकार की घोषणा को चुनावी घोषणा पत्र में शामिल करना कांग्रेस के लिए अन्य राज्यों में नुकसानदायक हो सकता है क्योंकि हिंदूवाद की प्रबल सोच जनमानस में काफी हद तक हिंदी भाषी क्षेत्रों में घर कर चुकी है। वही केंद्र में भाजपा सरकार लगातार इस तरह के प्रयास कर रही है कि इस सोच को बढ़ावा दिया जा सके। राम मंदिर को लेकर केंद्र सरकार के प्रयास चुनावी फायदे के रूप में उत्तर प्रदेश में साफ तौर पर दिखाई दिए हैं ऐसे में आगामी समय में जहां मध्य प्रदेश और राजस्थान में चुनाव होने हैं उस परिस्थिति में कर्नाटक में की गई घोषणा कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले बड़े नेताओं के लिए भी नुकसानदायक साबित हो सकती है जो सार्वजनिक रूप से हिंदुत्व का दंभ सार्वजनिक मंचों से भरते दिखाई देते हैं। अब तक कांग्रेस हिंदू मुस्लिम भाईचारे को लेकर चुनावी मैदान में उतरती रही है लेकिन जब से प्रबल हिंदुत्व का समर्थन कर भाजपा ने चुनावी चौसर पर खेलना शुरू किया है तो कांग्रेस को लगातार नुकसान उठाना पड़ रहा है। भाजपा देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को हिंदुत्व के प्रबल चेहरे के रूप में चुनाव में उतारकर लगातार कांग्रेस को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा रही है ऐसी परिस्थितियों में हिंदुत्व का परिचायक बन कर सामाजिक क्षेत्र में काम कर रहे संगठन बजरंग दल को प्रतिबंधित करने की घोषणा साफ तौर पर मतदाताओं को गैर हिंदूवादी सोच के लिए कांग्रेस की मानसिकता का इशारा करेगी और इसका नुकसान आम तौर पर होने की संभावना प्रबल है। खैर चुनाव में सत्ता वापसी के लिए या सत्ता में जाने के लिए तात्कालिक मुद्दों पर अधिक जोर दिया जाता है। ऐसे में कांग्रेस के रणनीतिकारों को यह अधिक फायदेमंद लगा होगा कि कर्नाटक जैसे गैर हिंदी भाषी राज्य में इसका फायदा उठाया जा सकता है और संभव है कि इसी सोच को लेकर कांग्रेस ने अपने परंपरागत वोट बैंक को मजबूत करने के लिए इस पेतेरे को आजमाया है और संभावनाएं यह भी बनती है कि जिस तरह से कर्नाटक से 1500 किलोमीटर दूर राजस्थान में इस घोषणा को लेकर बयानबाजी हो रही है ऐसे में किसी ऐसी चुनावी घोषणा का राजस्थान और मध्यप्रदेश में भी चुनावी प्रयोग किया जा सकता है इसका फायदा या नुकसान तो चुनाव के नतीजे आने के बाद साफ हो जाएगा लेकिन कांग्रेस को लेकर एक गैर हिंदूवादी सोच जिसे लगातार भाजपा अपना निशाना बनाते रही है उसे एक बार फिर यह मौका मिल गया है कि कर्नाटक के चुनाव नतीजे जो भी रहे लेकिन प्रबल हिंदुत्व का समर्थन करने वाले राज्यों में और खासतौर पर हिंदी भाषी राज्यों में भाजपा इसका भरपूर फायदा उठाएगी। कांग्रेस में सक्रिय कई बड़े नेताओं को भी सोचने पर मजबूर होना पड़ेगा कि जिस तरह के राजनीतिक परिदृश्य और राजनीतिक समीकरण के बीच चुनावी चौसर पर घोषणाओं की चाल चली जा रही है उसे लेकर भविष्य में राजस्थान में किस तरह के प्रयास होते हैं और यदि ऐसे ही किसी घोषणा या चुनावी वादे को लेकर कांग्रेस अन्य राज्यों में चुनावी समर में दांव आजमाती है तो नुकसान होना जाहिर तौर पर दिखाई दे रहा है। साथ ही जनता के बीच जाकर मतदाताओं से वोट लेकर जीतने वाले नेताओं की भी यह मजबूरी रहेगी कि चुनावी घोषणा पत्र में शामिल मुद्दों पर काम करना अवश्यंभावी होगा और ऐसी परिस्थितियों में उन्हें आम जनमानस का आक्रोश भी झेलना पड़ेगा। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण चित्तौड़गढ़ जिले के कपासन में देखने को मिला है जहां भगवान राम पर की गई टिप्पणी को लेकर दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री को भारी आक्रोश का सामना करना पड़ा और राज्य सरकार के एक राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त बोर्ड उपाध्यक्ष के विरुद्ध ही सत्ता में रहते हुए प्रकरण दर्ज हुआ है। ऐसी परिस्थितियों में हिंदू मतदाताओं के बीच इस चुनावी घोषणा का कहीं ना कहीं असर कर्नाटक में भले ही पड़े या ना पड़े लेकिन हिंदी भाषी राज्यों में अवश्यंभावी रूप से पड़ेगा और साफ तौर पर चुनावी समर में इसका नुकसान भी उठाना पड़ेगा। आम जनमानस हिंदी भाषी राज्यों में आस्था का प्रबल समर्थक रहा है ऐसी परिस्थितियों में कर्नाटक में की गई घोषणा के तात्कालिक लाभ भले ही मिल जाए लेकिन दूरगामी नुकसान प्रतीत हो रहे हैं।